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अठारह सौ सत्तावन की गौरवमयी क्रांति का इतिहास

Author : Dr. Mohanlal Gupta
Shubhda Prakashan, Jodhpur
( customer reviews)
49 5
Category:
Book Type: EBook
Size: 60 Pages
Downloads: 17
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रानी विक्टोरिया का भारतीय उपनिवेश उत्तर में हिमालय पर्वतमाला से लेकर दक्षिण में समुद्र तट तक तथा पश्चिम में सिंध नदी से लेकर पूर्व में इरावती नदी तक विस्तृत हो गया। भारत की आत्मा परतंत्रता की बेड़ियों में बंधकर सिसक उठी। भारतवासी अपने ही देश में गुलाम हो गये। भारत वासियों ने कई आंदोलनों के माध्यम से इन बेड़ियों को काटना चाहा किंतु आंग्ल-शक्ति के समक्ष भारतीयों के समस्त प्रयास बौने सिद्ध हुए। 1857 ई. के आते-आते भारत की जनता में अंग्रेजों द्वारा किये जा रहे शोषण के विरुद्ध जनभावना का उबाल आने लगा। फिर भी 1857 की क्रांति जन भावना का विस्फोट न होकर अंग्रेजों की सेना में नियुक्त भारतीय सैनिकों तथा छोटे जागीरदारों एवं अपदस्थ राजाओं का सशस्त्र विद्रोह था। इसकी कोई निश्चित योजना नहीं थी। कई स्थानों पर जनता ने भी क्रांतिकारी सैनिकों, जागीरदारों एवं अपदस्थ राजाओं का साथ दिया किंतु देश के अधिकांश हिस्सों में भारत की जनता ने अपने आप को इस क्रांति से अलग रखा। बड़े एवं प्रभावशाली राजाओं ने इस क्रांति को कुचलने में अंग्रेजों का साथ दिया। इस कारण यह क्रांति विफल हो गई। प्रस्तुत अध्याय में 1857 ईस्वी की गौरवमयी क्रांति की प्रमुख घटनाओं, उसके कारणों एवं परिणामों को लिखा गया है।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।




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