इस उपन्यास का नायक किशनगढ़ नरेश महाराजा रूपसिंह राठौड़ है जो सत्रहवीं सदी की भारतीय राजनीति के गगन में सबसे चमकते हुए सितारों में से एक है। महाराजा रूपसिंह राठौड़ के बिना उस काल का राजनीतिक इतिहास पूर्णतः अर्थहीन हो जाता है। महाराजा ने मुगल बादशाह शाहजहाँ के लिए काबुल, कांधार, कुंदूज, बिस्त, बलख, बुखारा तथा बदखशां आदि दुरूह प्रदेश जीते तथा मेवाड़ के परम प्रतापी महाराणा राजसिंह से चित्तौड़ का दुर्ग जीत लिया। महाराजा ईश्वर का बहुत बड़ा भक्त था। उसने भगवान को समर्पित करके इतने मार्मिक पद लिखे हैं, जो किसी भक्त के हृदय से ही निकल सकते हैं। एक बार महाराजा रूपसिंह देह की सुध-बुध खोकर भगवान श्रीकृष्ण की पूजा में बैठा रहा और उसकी प्रतिष्ठा की रक्षा करने के लिए भगवान श्रीकृष्ण स्वयं उसके स्थान पर शाहजहाँ के समक्ष रूपसिंह के वेश में उपस्थित हुए। ऐसे भक्त इस संसार में बिरले ही हुए हैं जिनकी लाज बचाने के लिए भगवान स्वयं आए हैं। दारा शिकोह, शाहशुजा, औरंगजेब तथा मुराद के बीच हुए उत्तराधिकार के संघर्ष में महाराजा रूपसिंह दारा शिकोह की सेना का मुख्य सेनापति था। जिस समय शामूगढ़ के मैदान में वह औरंगज़ेब के हाथी पर रखी अम्बारी की रस्सियां काट रहा था, उस समय यदि दारा ने किंचित् भी पौरुष दिखाया होता तो औरंगज़ेब के उसी क्षण टुकड़े-टुकड़े कर दिए गए होते तथा भारत का इतिहास दूसरी तरह से लिखा गया होता। इस उपन्यास में उस अद्भुत राजा की अद्भुत कहानी बड़े रोचक ढंग से लिखी गई है। This is a historical novel based on 17th century's Maharaja Roopsingh Rathore of Kishangarh state.
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।