It is a history book. It describes the political history of Rajputana States in the period between 1817 to 1950. The chapters of this book are- (1.) Prologue, (2.) Loyalty of Rajputana Princes to The British Crown, (3.) British Paramountcy : Resentment in Premier States, (4.) Paramountcy to Indian Federation, (5.) Response to Federation, (6.) Federal Negotiations in Rajputana, (7.) The Federal Movement (1905-47) : Rulers' Attitude in Rajputana, (8.) Formation of Rajasthan : Tussle for Power. (9.) Appendices (A to E) (10.) Bibliography, (11.) Index.
प्रोफेसर एफ. के. कपिल का जन्म जोधपुर के एक पुष्करणा परिवार में हुआ। इनके पूर्वज मूल रूप से पोकरण के थे। इनके पिता श्री गणेशदत्त छंगाणी राजस्थान के प्रशासनिक अधिकारी थे। कपिल ने जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर में 35 वर्ष तक प्राध्यापक का कार्य किया। देशी राज्यों और राजस्थान के इतिहास पर इनकी तीन पुस्तकें प्रकाशित हुई हैं- (1.) राजपूताना स्टेट्स (1817-1950), (2.) प्रिंसली स्टेट्स: पर्सोनेजेज (3.) राजपूताना: जन जागरण से एकीकरण। इनमें देशी राज्यों और ब्रिटिश शासन के नियंत्रण में राजपूताना की जनता के प्रतिरोध का वास्तविक रूप प्रकट किया गया है। इनमें देशी नरेशों की कमियों को भी स्पष्ट किया गया है। प्रोफेसर कपिल ने इतिहास कांग्रेस और राष्ट्रीय संगोष्ठियों में आधुनिक भारतीय इतिहास और राजस्थान के बारे में अनेक शोध पत्र प्रस्तुत किये हैं। इनमें जवाहरलाल नेहरू और अम्बेडकर और अन्य पर समकालीन मत, समाजवाद पर कांग्रेस में अंतर्द्वन्द्व, सरस्वती नदी के प्रवाह क्षेत्र में तीर्थ स्थल, मारवाड़ में वैदिक सरस्वती नदी का प्रवाह, अश्व एवं अश्वारोही: ऐतिहासिक संदर्भ, 1857 में सिंधिया और तात्या टोपे की भूमिका, लोकमान्य तिलक; राष्ट्रीय जागृति के जनक, शास्त्रीय ग्रंथों में परशुराम महिमा, राजस्थान के प्रमुख राज्यों के विलय में दक्षिण भारतीय सहयोग आदि। शोध निर्देशक के रूप में प्रोफेसर कपिल ने अनेक शोध ग्रन्थों में भी सहयोग दिया है।