मेवाड़ राजवंश को विश्व का सबसे प्राचीन राजवंश होने का गौरव प्राप्त है। भारत भूमि की जो सेवा इस राजवंश ने की है, उसकी तुलना भारत के किसी भी महान राजवंश से की जा सकती है। गुहिल के समय से ही इस राजवंश की गाथाएं किंवदन्तियों में स्थान पा गईं। आठवीं शताब्दी में अरब से आई खलीफा की सेना का रास्ता इसी राजवंश ने रोका। समरकंद से आये बाबर का रास्ता भी इसी राजवंश ने रोका। अकबर को पराजय का स्वाद चखाने वाला यही राजवंश था। औरंगजेब का मान-मर्दन इसी राजवंश ने किया। ब्रिटिश राजवंश से मेवाड़ राजवंश ने बराबरी के सम्बन्ध रखे। जब रियासतें विलुप्त हुईं और राजस्थान का निर्माण हुआ तब इसी राजवंश के महाराणा, राजस्थान के आजीवन महाराज प्रमुख बने। भारत की राष्ट्रीय राजनीति पर जितना गहरा प्रभाव इस राजवंश का रहा, उतना किसी अन्य राजवंश का नहीं रहा। बीसवीं सदी में जब बहुत से राज्य चैम्बर ऑफ प्रिंसेज की राजनीति में फंसकर एक-दूसरे को प्रतिद्वंद्वी की तरह देखने लगे तब भी मेवाड़ अपनी धीर-गम्भीर राजनीति पर अटल रहा। भारत की स्वतंत्रता का स्वागत करने वाले राजवंशों में मेवाड़ा का राजवंश सर्वाग्रणी था। राजस्थान के निर्माण में भी मेवाड़ राजवंश ने भारत के अन्य बड़े राजाओं के लिये पथ-प्रदर्शक का कार्य किया। भोपाल नवाब हमीदुल्ला और पाकिस्तान के जनक मुहम्मद अली जिन्ना की चालें यदि राजस्थान में घ्वस्त हो गईं तो उसकी पृष्ठभूमि में यही राजवंश था। आज भी मेवाड़ का राजवंश भारत की सांस्कृतिक पुनर्रचना में लगा हुआ है। भारत की स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद प्राचीन राजवंशों के त्याग और बलिदान पर इतिहासकारों की कलम या ता चली ही नहीं और यदि चली भी तो कंजूसी के साथ। प्रस्तुत ग्रंथ आधुनिक काल के चर्चित इतिहासकार डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा मेवाड़ राजवंश के राष्ट्रीय राजनीति में किये गये अवदान का पुनर्मूल्यांकन है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।