इस पुस्तक में मनुष्य द्वारा भारत में विकसित प्रस्तर युगीन सभ्यताओं से लेकर वर्तमान काल की सभ्यता एवं संस्कृति का इतिहास लिखा गया है। पुस्तक के प्रारम्भ में सभ्यता एवं संस्कृति की परिभाषाएं, सभ्यता एवं संस्कृति में अंतर, भारतीय संस्कृति की विशेषताएं तथा भारतीय संस्कृति के इतिहास को जानने के साधनों पर भी विस्तार से चर्चा की गई है। भारत में आर्य सभ्यता के प्रसार से पहले पाषाण, ताम्र एवं कांस्य कालीन सभ्यताओं एवं संस्कृतियों का विकास हुआ। इन सभ्यताओं के संवाहक सैन्धववासी द्रविड़ एवं वनवासी कोल, किरात मुण्डा आदि जनजातियों के लोग थे। माना जाता है कि भारत में लोहे का सर्वप्रथम परिचय आर्यों से हुआ तथा आर्यों ने ही भारत में कृष्ण-अयस अथवा लोहे की संस्कृति को जन्म दिया। सिंधु सभ्यता अत्यंत सुविकसित सभ्यता थी जिसने सुसंस्कृत समाज को जन्म दिया। इस समाज के पास धर्म, अर्थ, युद्धकौशल, धातु-विज्ञान, मूर्ति-कला, नृत्य-कला, लिपि, माप-तोल आदि का ज्ञान था। आर्यों ने जिस संस्कृति को जन्म दिया वह वैदिक ज्ञान पर आधारित थी तथा वही ज्ञान विकसित होता हुआ वर्तमान सभ्यता की आत्मा बना हुआ है। आर्यों की सभ्यता यद्यपि धर्म-प्रधान सभ्यता थी तथापि आर्य युद्ध कौशल, शिल्प, कृषि एवं पशुपालन की दृष्टि से भी श्रेष्ठ थे। उन्होंने विपुल धर्म-ग्रंथों की रचना की जो अन्य संस्कृतियों में मिलने दुर्लभ हैं। आर्यों ने वर्ण व्यवस्था को जन्म दिया जो आगे चलकर जाति व्यवस्था के रूप में विकसित हुई। आर्यों की आश्रम व्यवस्था संसार की सबसे अद्भुत सामाजिक एवं आध्यात्मिक व्यवस्था थी जो मनुष्य को आजीवन सन्मार्ग पर चलने के लिए मार्ग दिखाती थी। पुस्तक में सिक्ख धर्म एवं इस्लाम का भी समुचित विवेचन किया गया है। विश्वविद्यालयों के पाठ्यक्रमों की मांग के अनुसार पुस्तक के अंत में भारतीय कला, साहित्य, मंदिर, राजनीतिक पुनर्जागरण, भारत के प्रमुख वैज्ञानिक एवं भारतीय संस्कृति पर पाश्चात्य प्रभाव का भी विवेचन किया गया है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।