साम्प्रदायिकता की समस्या युगों-युगों से धरती पर विद्यमान है, भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है जिसके चलते लाखों-करोड़ों मनुष्य अपने प्राण गंवा चुके हैं। भारत में दो तरह के धर्म हैं, एक तो वे जिनका उद्भव भारत की धरती पर हुआ तथा दूसरे वे जो अरब, फारस एवं यूरोप से भारत में आए। साम्प्रदायिकता की समस्या सामान्यतः एक धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के बीच होती है किंतु आधुनिक भारत में इसका संकुचित अर्थ मुख्यतः हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच होने वाले संघर्ष से है। साम्प्रदायिकता से आशय दो सम्प्रदायों की दार्शनिक अवधारणों के वैचारिक अंर्तद्वंद्व से होता है किंतु भारत में इसका संकुचित अर्थ राजनीतिक शक्तियों एवं आर्थिक संसाधानों पर अधिकार जमाने के लिए हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच होने वाले संघर्षों से है। भारत के इतिहास लेखन में मध्यकाल में मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों तथा ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा मुसलमानों और हिन्दुओं को एक दूसरे के विरुद्ध हथियार के रूप में किए गए इस्तेमाल को, प्रायः विस्तार से लिखा जाता रहा है किंतु हिन्दू प्रतिरोध का उल्लेख या तो होता ही नहीं है और यदि होता है तो क्षीण स्वर में। इस कारण पाठकों में ऐसी धारणा बनती है कि हिन्दू सदैव ही पराजित होने वाली जाति है। इस पुस्तक में इतिहास के विभिन्न काल खण्डों में भारत में साम्प्रदायिक समस्या के स्वरूपों एवं उनके इतिहास को लिखा गया है तथा उनके साथ ही हिन्दू प्रतिरोध को भी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रेखांकित किया गया है। यह पुस्तक इतिहास के उन दुर्लभ तथ्यों को उनकी पूरी सच्चाई के साथ प्रकट करती है कि हिन्दू जाति ने अपने ऊपर होने वाले साम्प्रदायिक अत्याचारों का सैंकड़ों साल तक पूरे उत्साह से प्रतिरोध किया। हिन्दुओं का संघर्ष, शौर्य एवं आत्मबल की ऐसी अद्भुत गाथा है जिसकी तुलना में संसार की कोई भी जाति खड़ी नहीं हो सकती।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।