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भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एवं हिन्दू प्रतिरोध पर विशेष छूट
07.04.2018
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भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एवं हिन्दू प्रतिरोध
साम्प्रदायिकता की समस्या युगों-युगों से धरती पर विद्यमान है, भारत भी इससे अछूता नहीं रहा है जिसके चलते लाखों-करोड़ों मनुष्य अपने प्राण गंवा चुके हैं। भारत में दो तरह के धर्म हैं, एक तो वे जिनका उद्भव भारत की धरती पर हुआ तथा दूसरे वे जो अरब, फारस एवं यूरोप से भारत में आए। साम्प्रदायिकता की समस्या सामान्यतः एक धर्म के विभिन्न सम्प्रदायों के बीच होती है किंतु आधुनिक भारत में इसका संकुचित अर्थ मुख्यतः हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच होने वाले संघर्ष से है। साम्प्रदायिकता से आशय दो सम्प्रदायों की दार्शनिक अवधारणों के वैचारिक अंर्तद्वंद्व से होता है किंतु भारत में इसका संकुचित अर्थ राजनीतिक शक्तियों एवं आर्थिक संसाधानों पर अधिकार जमाने के लिए हिन्दुओं, मुस्लिमों और ईसाइयों के बीच होने वाले संघर्षों से है। भारत के इतिहास लेखन में मध्यकाल में मुस्लिम शासकों द्वारा हिन्दुओं पर किए गए अत्याचारों तथा ब्रिटिश काल में अंग्रेजों द्वारा मुसलमानों और हिन्दुओं को एक दूसरे के विरुद्ध हथियार के रूप में किए गए इस्तेमाल को, प्रायः विस्तार से लिखा जाता रहा है किंतु हिन्दू प्रतिरोध का उल्लेख या तो होता ही नहीं है और यदि होता है तो क्षीण स्वर में। इस कारण पाठकों में ऐसी धारणा बनती है कि हिन्दू सदैव ही पराजित होने वाली जाति है। इस पुस्तक में इतिहास के विभिन्न काल खण्डों में भारत में साम्प्रदायिक समस्या के स्वरूपों एवं उनके इतिहास को लिखा गया है तथा उनके साथ ही हिन्दू प्रतिरोध को भी ऐतिहासिक तथ्यों के आधार पर रेखांकित किया गया है। यह पुस्तक इतिहास के उन दुर्लभ तथ्यों को उनकी पूरी सच्चाई के साथ प्रकट करती है कि हिन्दू जाति ने अपने ऊपर होने वाले साम्प्रदायिक अत्याचारों का सैंकड़ों साल तक पूरे उत्साह से प्रतिरोध किया। हिन्दुओं का संघर्ष, शौर्य एवं आत्मबल की ऐसी अद्भुत गाथा है जिसकी तुलना में संसार की कोई भी जाति खड़ी नहीं हो सकती।
हार्ड बाउण्ड एडीशन, सचित्र, पृष्ठ संख्या 442, मूल्य 995 रुपये।
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