चित्तौड़ की वीरगाथाएं सदियों से विख्यात हैं। चित्तौड़ पर गुहिलों ने आठवीं से बीसवीं शताब्दी तक शासन किया तथा मुस्लिम आक्रांताओं से जमकर मोर्चा लिया। इसी वंश में जैत्रसिंह प्रतापी राजा हुआ। उसके गद्दी पर बैठने से पहले ही ई.1206 में दिल्ली में मुसलमानों की सत्ता स्थापित हो चुकी थी तथा सम्पूर्ण हिन्दू जाति की स्वतंत्रता खतरे में थी। इस संकट काल में जैत्रसिंह का चित्तौड़ की गद्दी पर आसीन होना भारत के लिये सौभाग्य की बात थी। जैत्रसिंह ने दिल्ली के दो सुल्तानों इल्तुतमिश तथा नासिरुद्दीन की सेना को परास्त किया। जैत्रसिंह के पुत्र तेजसिंह ने दिल्ली के सुल्तान बलबन को परास्त किया। तेजसिंह के पुत्र समरसिंह ने दिल्ली के सुल्तान बलबन को पुनः परास्त करके चित्तौड़ के वैभव को और भी अधिक बढ़ा दिया। चित्तौड़ की ही तो थी महारानी पद्मिनी जिसने भारतीय नारियों के तेज को उनके चरम पर पहुंचा दिया। चित्तौड़ दुर्ग के ही तो थे गोरा और बादल। चित्तौड़ का ही तो था वीर सांगा जिसके लिये कहा जाता है- अस्सी घाव लगे थे तन में फिर भी व्यथा नहीं थी मन में। चित्तौड़ दुर्ग की ही तो महारानी थी मीराबाई। चित्तौड़ दुर्ग के ही तो थे जयमल और फत्ता।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।