बंगाल का द्वितीय विभाजन मूलतः एक शोधपत्र है जो मुगल काल में ई.1701 में पृथक् बंगाल सूबे की स्थापना से लेकर ई.1905 में प्रथम बंग-भंग, ई.1911 में बंग-भंग निरस्तीकरण एवं ई.1947 में भारत-पाक विभाजन के समय बंगाल प्रांत के मुस्लिम बहुल हिस्से को पूर्वी पाकिस्तान में सम्मिलित किये जाने तक की घटनाओं एवं ऐतिहासिक तथ्यों पर केन्द्रित है। भारत की दो सबसे बड़ी नदियों- गंगा एवं ब्रह्मपुत्र के बहाव के कारण बंगाल, भारत का सर्वाधिक उपजाऊ प्रांत था जिसमें बंगाल, बिहार एवं उड़ीसा जिले आते थे। अठारवहीं शताब्दी में जब मुगल कमजोर पड़ने लगे तब बंगाल लगभग स्वायत्तशासी राज्य बन गया था। औरंगजेब के बाद के काल में, बंगाल का सूबेदार नाममात्र के लिये मुगलों के अधीन था। पूर्व बंगाल में मुसलमानों की जनसंख्या अधिक थी तथा पश्चिमी बंगाल में हिन्दुओं की जनसंख्या अधिक थी। जनसंख्या की यह विषमता ही अंततः बंगाल के विभाजन का कारण बनी। ई.1905 में ब्रिटिश राज्य द्वारा भारत में मुस्लिम बहुल प्रांत की स्थापना कर कांग्रेस के लिये मुसीबत खड़ी करने की योजना के तहत बंगाल का विभाजन किया गया था जिसे हिन्दुओं के भारी विरोध के कारण निरस्त किया गया। ई.1930 से जब देश का स्वातंत्र्य संग्राम तेजी पकड़ने लगा तो कुछ अंग्रेज अधिकारियों के उकसावे पर मुस्लिम लीग ने अलग पाकिस्तान निर्माण की मांग की जिसका मुख्य निशाना भारत की सीमाओं पर स्थित मुस्लिम बहुत क्षेत्र थे। चूंकि पास्तिान का निर्माण अनिवार्य हो गया था, अतः समूचे पंजाब एवं बंगाल को पाकिस्तान में जाने से रोकने की योजना बनाई गई और हिन्दू नेताओं ने भारी मन से इन दोनों प्रांतों का विभाजन स्वीकार किया। इस शोधपत्र में इन्हीं तथ्यों को उजागर किया गया है।यह अत्यंत रोचक एवं खोजपूर्ण शोधपत्र है तथा इतिहास के विद्यार्थियों एवं शोधार्थियों के साथ-साथ रुचिवान पाठकों के लिये भी अत्यंत उपयोगी है। -डॉ. मोहनलाल गुप्ता
प्रो. एफ. के. कपिल जयनारायण व्यास विश्वविद्यालय जोधपुर से सेवानिवृत्त एसोसिएट प्रोफेसर हैं। डॉ. भानु कपिल बी. एन. विश्वविद्यालय उदयपुर के इतिहास विभाग के अध्यक्ष हैं।