उन्नीसवीं सदी का भारत हर तरफ से द्वंद्वों एवं संघर्षों में फंसा हुआ था। देश किसानों के आंदोलन, सामाजिक सुधार आंदोलन, आदिवासियों के आंदोलन, सन्यासियों के आंदोलन, सैनिक असंतोष जैसे द्वंद्वों एवं संघर्षों में फंसा हुआ था। इन आंदोलनों एवं समाचार पत्रों में प्रकाशित होने वाले विचारों के कारण चारों ओर उत्तेजना का वातावरण बना गया था। लोग अपने पुराने विचारों को त्याग रहे थे, नई शिक्षा एवं नये विचार ग्रहण कर रहे थे। वे बेकारी और गरीबी से उबरना चाहते थे। आजादी चाहते थे। नागरिक अधिकारों में वृद्धि चाहते थे। इसलिये धार्मिक एवं सामाजिक सुधार आन्दोलन आरम्भ होने के साथ-साथ अराजनीतिक एवं राजनीतिक संस्थाओं का भी उदय हुआ। भारत के अराजनीतिक संगठनों में 1828 ई. में स्थापित अकादमिक एसोसिएशन, 1830 ई. में स्थापित कलकत्ता ट्रेड ऐसोसिएशन, 1834 ई. में स्थापित बंगाल चेम्बर ऑफ कॉमर्स आदि संस्थायें प्रमुख थीं इन संस्थाओं का भारत की राजनीति से कोई सम्बन्ध नहीं था। फिर भी इन संगठनों ने शिक्षाविदोंतथा व्यापारियों आदि प्रमुख सामाजिक वर्गों को संगठित होने का रास्ता दिखाया। शीघ्र ही भारत में राजनीतिक संस्थायें भी प्रकट होने लगीं। प्रस्तुत अध्याय में कांग्रेस के जन्म से पहले, ब्रिटिश भारत में स्थापित हुए राजनीतिक संगठनों की स्थापना, उनका कार्यक्षेत्र, उनका महत्व एवं उनके प्रभाव एवं परिणाम आदि का इतिहास लिखा गया है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।