प्रस्तुत अध्याय में सत्रहवीं सदी में अंग्रेजों के आगमन के समय भारत की राजनीतिक स्थिति का वर्णन किया गया है। उस समय मुगलों के सिंहासन पर जहांगीर आसीन था। उसका प्रभाव दक्षिण भारत के कई बंदरगाहों तक हो गया था। जहांगीर से लेकर शाहजहां और औरंगजेब के समय में अंग्रेज शक्ति पूरी तरह व्यापारिक गतिविधियों में संलग्न रही। जब अठारहवीं सदी के आरम्भ में औरंगजेब की मृत्यु हुई तो पूरे देश में राजनीतिक अस्थिरता फैल गई। औरंगजेब की नीतियों के कारण केन्द्रीय सत्ता कमजोर चुकी थी तथा उसकी मृत्यु के बाद देश में विभिन्न अर्द्धस्वतंत्र एवं स्वायत्तशासी राज्यों का उदय हो चुका था। चारों ओर लूटमार का वातावरण था। मुगलों के पतन से उत्पन्न हुई राजनीतिक शून्यता को भरने के लिये मराठे सामने आये। इसी दौरान हुए अफगानी आक्रमणों ने तथा मराठों की आपसी फूट ने मराठा शक्ति को कमजोर कर दिया। यूरोपीय देशों से आई हुई कम्पनियां इस राजनीतिक अस्थिरता का लाभ उठाने तथा एक दूसरे को उन्मूलित करने के लिये जबर्दस्त प्रतिद्वंद्विता कर रही थीं। अंत में अँग्रेज न केवल डचों और फ्रांसीसियों को भारत से उन्मूलित करने में सफल रहे अपितु उन्होंने मराठों तथा हैदराबाद, मैसूर एवं बंगाल आदि राज्यों के स्थानीय शासकों को परास्त करके भारत में राजीनीतिक शक्ति के रूप में स्थापित होने में सफलता प्राप्त कर ली।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।