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ब्रिटिश भारत में जमींदारी, रैय्यतवाड़ी और महलवाड़ी व्यवस्थाएँ

Author : Dr. Mohanlal Gupta
Shubhda Prakashan, Jodhpur
( customer reviews)
49 0
Category:
Book Type: EBook
Size: 70kb
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भारत में वैदिक काल से भूराजस्व वसूली की एक व्यवस्था आरम्भ की गई थी जो शनैः शनैः परिष्कृत होती चली गई थी। इस व्यवस्था के अंतर्गत भारत का किसान सुखी था। राजा को लगभग उपज का छठा हिस्सा अर्थात् 15 प्रतिशत लगान दिया जाता था जिसे भोग कहते थे। जब मुसलमान इस देश में आये तो उन्होंने मुसलमानों से 15 प्रतिशत तथा हिन्दुओं से 50 प्रतिशत भू-राजस्व लेना आरम्भ किया। इस कारण हिन्दू किसान, मुस्लिम किसान के मुकाबले में बाजार में नहीं ठहर पाता था और हिन्दू किसानों की आर्थिक दशा खराब होती चली गई। शेरशाह सूरी ने इसमें कुछ परिवर्तन का प्रयास किया। मुगलों ने भी इस दिशा में काफी कार्य किया किंतु प्रांतीय सूबेदार प्रायः 50 प्रतिशत भू-राजस्व लेते रहे। जब अंग्रेजों ने इस देश में प्रवेश किया तो वे अपने साथ यूरोप की भू-राजस्व प्रणाली लेकर आये। उन्होंने भारत के किसानों का शोषण करने के लिये एक से बढ़कर एक खतरनाक प्रयोग किये। ब्रिटिश शासन में भारत में भू-राजस्व की कौन-कौनसी प्रणालियां प्रचलित रहीं, इस अध्याय में उन्हें विस्तार से लिखा गया है। इस अध्याय में निम्नलिखित बिंदु सम्मिलित किये गये हैं- भू इस देश में भू-राजस्व व्यवस्था की ऐतिहासिक पृष्ठभूमि, स्थायी बन्दोबस्त के पूर्व स्थिति, ईस्ट इण्डिया कम्पनी को बंगाल में दीवानी के अधिकार, भू-राजस्व वसूली के प्रमुख अधिकारी, कम्पनी द्वारा राजस्व वसूली व्यवस्था में परिवर्तन, कार्नवालिस के सुधार, स्थायी बंदोबस्त, स्थायी भू-प्रबन्ध की विशेषताएँ, स्थायी बन्दोबस्त के गुण और दोष, स्थायी बन्दोबस्त का कृषकों पर प्रभाव, रैयतवाड़ी बन्दोबस्त, बम्बई प्रेसीडेंसी में रैय्यतवाड़ी बन्दोबस्त, रैयतवाड़ी बन्दोबस्त का कृषकों पर प्रभाव, महलवाड़ी बन्दोबस्त, तीस वर्षीय बन्दोबस्त, ग्राम व्यवस्था, महलवाड़ी बन्दोबस्त का कृषकों पर प्रभाव।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।




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