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बंगाल में ब्रिटिश प्रभुसत्ता का विस्तार

Author : Dr. Mohanlal Gupta
Shubhda Prakashan, Jodhpur
( customer reviews)
49 5
Category:
Book Type: EBook
Size: 105 kb
Downloads: 9
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प्रस्तुत अध्याय में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की स्थापना तथा भारत में प्रवेश से लेकर बंगाल में ईस्ट इण्डिया कम्पनी की गतिविधियाँ, अठारहवीं शताब्दी में बंगाल की स्थिति, चुंगी को लेकर बंगाल के सूबेदारों से विवादए अलीवर्दीखाँ का शासन, कम्पनी के व्यापार में अभूतपूर्व वृद्धि, सिराजुद्दौला का अंग्रेजों से संघर्ष, सिराजुद्दौला तथा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के बीच झगड़े के कारण, नवाब द्वारा ईस्ट इण्डिया कम्पनी के विरुद्ध सैनिक कार्यवाही, क्लाइव की नियुक्ति, कालकोठरी (ब्लैक होल) की घटना, क्लाइव की नियुक्ति (1757-1760 ई.), कलकत्ता की पराजय, अलीनगर की सन्धि (1757 ई.), प्लासी का युद्ध (1757 ई.), सिराजुद्दौला के विरुद्ध षड्यंत्र, मीर जाफर तथा उसके साथियों की गद्दारी, प्लासी के युद्ध का महत्त्व, मीर जाफर और अंग्रेज, अलीगौहर का आक्रमण, डचों पर आक्रमण (बेदरा का युद्ध), बंगाल में प्रशासनिक अव्यवस्था, मीर जाफर को हटाया जाना, मीर कासिम, मीर कासिम की समस्याएँ, समस्याओं के निराकरण के प्रयास, अंग्रेजों के साथ झगड़ा, बक्सर का युद्ध (1764 ई.) मीर कासिम की पराजय, मीर जाफर को पुनः नवाबी, बंगाल में अराजकता, शुजाउद्दौला की गद्दारी, शुजाउद्दौला तथा मीर कासिम की पराजय, बक्सर युद्ध का महत्त्व, क्लाइव की दूसरी गवर्नरी (जून 1765 से जनवरी 1767 तक), इलाहाबाद की संधि का मूल्यांकन, बंगाल में द्वैध शासन की स्थापना, द्वैध शासन प्रणाली की स्थापना के कारण एवं परिणाम, रॉबर्ट क्लाइव की सफलताओं एवं कार्यों का मूल्यांकन, वेरेलस्ट तथा कार्टियर, वारेन हेस्टिंग्ज की नियुक्ति तक का इतिहास दिया गया है।

डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।




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