प्रस्तुत अध्याय में भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना और विस्तार के दौरान घटित घटनाओं एवं उनके कारणों पर पर विस्तार से प्रकाश डाला गया है। भारत में अंग्रेजी शासन की स्थापना एक आश्चर्यजनक घटना थी, अथवा एक संयोग थी अथवा सोची समझी नीति का हिस्सा थी अथवा भारतीयों की कमजोरी का परिणाम थी ? इन विभिन्न अवधारणाओं को समझने का प्रयास किया गया है। साथ ही इस अध्याय में भारत में साम्राज्य विस्तार की ब्रिटिश नीतियों के विविध चरण, यथा- प्रथम चरण- बाड़बंदी, दूसरा चरण- सहायक समझौते, तीसरा चरण- अधीनस्थ सहयोग की विवेचना की गई है। भारत में ब्रिटिश शासन की स्थापना में क्लाइव तथा वारेन हेस्टिंग्ज का योगदान, अहस्तक्षेप की नीति से साम्राज्य विस्तार को आघात, मार्क्विस वेलेजली तथा उसकी सहायक संधियाँ, अहस्तक्षेप की नीति का परित्याग, सहायक सन्धि प्रथा का जन्म, सहायक सन्धि की शर्तें, सहायक सन्धि प्रथा की समीक्षा, देशी राज्यों से की गई सहायक सन्धियों की क्रियान्विती, वेलेजली की सफलताओं का मूल्यांकन, पुनः अहस्तक्षेप की नीति की ओर, लॉर्ड हेस्टिंग्ज द्वारा अहस्तक्षेप की नीति का त्याग, हेस्टिंग्ज की नीति का मूल्यांकन, मैसूर तथा कछार का अँग्रेजी राज्य में विलय, चार्टर एक्ट 1833 ई., सिंध का ब्रिटिश क्षेत्र में विलय, पंजाब पर अधिकार, डलहौजी द्वारा देशी राज्यों को हड़पने की नीति, गोद-निषेध नीति, व्यपगत का सिद्धांत, गोद निषेध नीति के अन्तर्गत विलीन किये गये राज्य, गोद-निषेध नीति की समीक्षा आदि बिंदुओं को समाहित किया गया है।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।