प्रस्तुत अध्याय में सत्रहवीं सदी में अंग्रेजों के आगमन के समय भारत की आर्थिक स्थिति का वर्णन किया गया है। अँग्रेजों के भारत आगमन के समय, नौ सौ साल से चल ही विदेशी आक्रांताओं की लूट के उपरांत भी, बादशाहों, अमीरों, राजाओं तथा जागीरदारों की आर्थिक स्थिति बहुत अच्छी थी तथा उनके महलों में विलासिता के समस्त साधन उपलब्ध थे। देश में नहरों, कुओं तथा तालाबों की कमी के बावजूद वर्षा की मात्रा अच्छी होने से देश के अधिकांश भागों में खेती की जाती थी। घर-घर में कुटीर उद्योग विकसित थे जिनमें विपुल मात्रा में विविध प्रकार की सामग्री तैयार की जाती थी। विदेशी व्यापार उन्नत होने से शासकों को कर के रूप में अच्छी आय होती थी। आंतरिक एवं विदेशी व्यापार बहुत होता था। विदेशी व्यापार भारत के पक्ष में था। भारत के कुटीर उद्योग देश-वासियों की आवश्यकताओं को पूरी करने के साथ-साथ विदेशों को निर्यात किये जाने के लिये भी माल तैयार करते थे। इतना होने पर भी देश में जन साधारण की आर्थिक स्थिति अच्छी नहीं थी। किसान हाड़तोड़ परिश्रम करके खेती करते थे। छोटे कारीगर हाथ से सामग्री का उत्पादन करते थे। इस उत्पादन के लाभ का अधिक हिस्सा कर के रूप में शासक और मुनाफे के रूप में बड़े व्यापारी लूट लेते थे। भू-राजस्व कर के साथ-साथ चुंगी एवं स्थानीय करों की अधिकता थी। इस कारण बादशाह, सूबेदार, राजा एवं जागीरदारों के पास काफी धन एकत्र हो जाता था किंतु जन साधारण अभावों एवं कष्टों से बिलबिला रहा था। पूरा परिवार हर समय किसी न किसी काम में लगा रहता था फिर भी दो समय की रोटी का प्रबंध करना कठिन था।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।