जबर्दस्त पुरातात्विक शोध पर आधारित यह उपन्यास सर्वप्रथम वर्ष 2002 में "संघर्ष" शीर्षक से हार्ड बाउण्ड में प्रकाशित हुआ था जिसे मारवाड़ी सम्मेलन मुम्बई ने देश भर से प्राप्त हिन्दी भाषा के 215 उपन्यासों में सर्वश्रेष्ठ घोषित किया था तथा "सर्वोत्तम साहित्य पुरस्कार 2002 - "घनश्यामदास सराफ पुरस्कार" प्रदान किया था । अब इसे "मोहेन जो दारो" शीर्षक से ई-बुक के रूप में प्रकाशित किया जा रहा है। कालीबंगा का मूर्तिकार प्रतनु सैंधव सभ्यता की राजधानी मोहेन जो दारो के मुख्य मंदिर के वार्षिक उत्सव में भाग लेने जाता है जहां वह सर्वश्रेष्ठ नृत्यांगना रोमा की मूर्ति बनाता है। रोमा और प्रतनु एक दूसरे को चाहने लगते हैं किंतु मंदिर का पुजारी किलात जो कि सैंधव सभ्यता का शासक भी है, स्वयं रोमा को प्राप्त करना चाहता है तथा मूर्तिकार को देश निकाला दे देता है। मूर्तिकार भटकता हुआ नागों की रानी मृगमंदा के राज्य में जा पहुंचता है जहां वह गरुड़ों के आक्रमण से मृगमंदा के राज्य की रक्षा करता है। नागों की रानी, मूर्तिकार से विवाह करना चाहती है किंतु मूर्तिकार उसे रोमा के बारे में बताता है तथा फिर से मोहेन जो दारो के लिये चल देता है। उधर सैंधव सभ्यता के पड़ौस में आर्य सभ्यता का असुरों से संघर्ष चल रहा है। वे असुरों के विरुद्ध अभियान करने निकलते हैं तथा मार्ग में उनकी भेंट प्रतनु से होती है। जब रोमा और प्रतनु मंदिर में चंद्रवृषभ के आयोजन में नृत्य करने आते हैं तो किलात रोमा की मूर्ति पर तंत्र का प्रयोग करके उसकी टांगें तोड़ देता है। रोमा, किलात को श्राप देती है ठीक उसी समय सिंधु नदी में बाढ़ आती है और मोहेनजोदरो पूरी तरह नष्ट हो जाता है। आर्यों का राजा सुरथ दिग्वजय करता हुआ मोहेनजोदरो पहुंचता है और वहां प्रतनु तथा रोमा को ढूंढता है। आगे क्या हुआ, पढि़ये इस रोचक ऐतिहासिक उपन्यास में।
डॉ. मोहनलाल गुप्ता आधुनिक युग के बहुचर्चित एवं प्रशंसित लेखकों में अलग पहचान रखते हैं। उनकी लेखनी से लगभग दस दर्जन पुस्तकें निृःसृत हुई हैं जिनमें से अधिकांश पुस्तकों के कई-कई संस्करण प्रकाशित हुए हैं। डॉ. गुप्ता हिन्दी साहित्य के जाने-माने व्यंग्यकार, कहानीकार, उपन्यासकार एवं नाट्यलेखक हैं। यही कारण है कि उनकी सैंकड़ों रचनाएं मराठी, तेलुगु आदि भाषाओं में अनूदित एवं प्रकाशित हुईं। इतिहास के क्षेत्र में उनका योगदान उन्हें वर्तमान युग के इतिहासकारों में विशिष्ट स्थान देता है। वे पहले ऐसे लेखक हैं जिन्होंने राजस्थान के समस्त जिलों के राजनैतिक इतिहास के साथ-साथ सांस्कृतिक इतिहास को सात खण्डों में लिखा तथा उसे विस्मृत होने से बचाया। इस कार्य को विपुल प्रसिद्धि मिली। इस कारण इन ग्रंथों के अब तक कई संस्करण प्रकाशित हो चुके हैं तथा लगातार पुनर्मुद्रित हो रहे हैं। डॉ. मोहनलाल गुप्ता ने भारत के विशद् इतिहास का तीन खण्डों में पुनर्लेखन किया तथा वे गहन गंभीर तथ्य जो विभिन्न कारणों से इतिहासकारों द्वारा जानबूझ कर तोड़-मरोड़कर प्रस्तुत किए जाते रहे थे, उन्हें पूरी सच्चाई के साथ लेखनीबद्ध किया एवं भारतीय इतिहास को उसके समग्र रूप में प्रस्तुत किया। भारत के विश्वविद्यालयों में डॉ. गुप्ता के इतिहास ग्रंथ विशेष रूप से पसंद किए जा रहे हैं। इन ग्रंथों का भी पुनमुर्द्रण लगातार जारी है। राष्ट्रीय ऐतिहासिक चरित्रों यथा- अब्दुर्रहीम खानखाना, क्रांतिकारी केसरीसिंह बारहठ, महाराणा प्रताप, महाराजा सूरजमल,सवाई जयसिंह,भैंरोंसिंह शेखावत, सरदार पटेल तथा राव जोधा आदि पर डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा लिखी गई पुस्तकों ने भारत की युवा पीढ़ी को प्रेरणादायी इतिहास नायकों को जानने का अवसर दिया। प्रखर राष्ट्रवादी चिंतन, मखमली शब्दावली और चुटीली भाषा, डॉ. मोहनलाल गुप्ता द्वारा रचित साहित्य एवं इतिहास को गरिमापूर्ण बनाती है। यही कारण है कि उन्हें महाराणा मेवाड़ फाउण्डेशन से लेकर मारवाड़ी साहित्य सम्मेलन मुम्बई, जवाहर कला केन्द्र जयपुर तथा अनेकानेक संस्थाओं द्वारा राष्ट्रीय महत्व के पुरस्कार दिए गए।