Blogs Home / Blogs / आलेख- हास्य-व्यंग्य / जंगल में पॉलिटिक्स - हास्य व्यंग्य
  • जंगल में पॉलिटिक्स - हास्य व्यंग्य

     19.05.2020
    जंगल में पॉलिटिक्स  - हास्य व्यंग्य

    जंगल में पॉलिटिक्स  - हास्य व्यंग्य


    शांति वार्ता का आँखों देखा हाल


    खरगोशलैण्ड वन के सारे खरगोश खुश थे। हों भी क्यों नहीं, उनके पड़ौसी भेड़ियालैण्ड वन से एक हाई लेवल पीस डेलिगेशन जो आ रहा था! इस डेलिगेशन के कई एजेण्डे थे जिनमें सबसे प्रमुख था- सदियों से दोनों वनों के बीच नफरत का जो दरिया बह रहा था, उसका बहाव रोककर उसके स्थान पर गाजर की खेती करना ताकि दोनों वनों में दशकों से चल रही खाद्य समस्या का समाधान हो सके। खरगोशलैण्ड के खरगोशों ने एल ओ सी पर पड़ौसी वन के डेलिगेशन का स्वागत किया। खरगोशलैण्ड के सबसे मनोरम घास के मैदान में दोनों पक्षों के बीच पीस डायलॉग आरंभ हुआ।

    भेड़ियालैण्ड का मुखिया बोला-'यह बहुत ही बुरी बात है कि दोनों वनों के बीच केवल नफरत की नदी जितनी दूरी है किंतु हम अच्छे पड़ौसियों की भांति नहीं रह सकते। आपने आसपास के सारे वनों में हमारे विरुद्ध अनर्गल प्रचार कर रखा है कि भेड़ियालैण्ड के भेड़िये रात के अंधेरे में खरगोशलैण्ड में घुसकर आतंकवादी घटनाओं को अंजाम देते हैं। मैं पूछता हूँ कि क्या आपके पास कोई प्रमाण है?'

    खरगोशलैण्ड के मुखिया ने यह बात सुनकर अत्यंत गुस्से से कहा-'हम अपने अतिथियों का सम्मान करते हैं किंतु आप हमसे प्रमाण न मांगें। सारे वनों के जानवर जानते हैं कि सदियों से भेड़ियालैण्ड के जानवर खरगोशलैण्ड के जानवरों पर हमले करते आये हैं।'

    भेड़ियालैण्ड के मुखिया ने कहा-'केवल आरोप लगाने से कुछ नहीं होगा। आप प्रमाण दीजिये।'

    खरगोशलैण्ड के मुखिया का उत्साह ठण्डा पड़ गया। वह बोला- 'हम कई बार प्रमाण दे भी चुके हैं लेकिन आप उन्हें मानते ही नहीं।'

    भेड़ियालैण्ड का मुखिया बोला- 'क्या प्रमाण देते हैं आप? यही न कि कुछ मरे हुए खरगोशों की खालें और खरगोशलैण्ड की आबादी में लगातार कमी आने के आंकड़े? ये तो कोई प्रमाण नहीं। क्या खरगोश अपनी मौत नहीं मरते? आप उनकी खालें गिनाकर और उनकी घटती हुई संख्या गिनाकर हमें दोषी ठहराते हैं?'

    खरगोशलैण्ड के मुखिया के पास कोई जवाब नहीं था। उसका चेहरा उतर गया। उसकी ऐसी पतली हालत देखकर भेड़ियालैण्ड का मुखिया मुस्कुराया-'महाशय! यदि आप सचमुच अपने वन की उन्नति चाहते हैं तो नफरत फैलाना छोड़िये। हमारे साथ सहयोग कीजिये। वर्षों पहले हमने जो कांटों की बाड़ दोनों वनों के बीच लगाई थी, उसे हटाइये। दोनों वनों के बीच निर्बाध पारगमन आरंभ कीजिये। हमारे भेड़ियों को खरगोशलैण्ड में आने दीजिये, अपने खरगोशों को हमारे यहाँ भेजिये। ऐसा करके ही दोनों वनों में विकास का नया अध्याय लिखा जा सकता है'

    खरगोशलैण्ड के मुखिया ने माथे से पसीना पौंछते हए कहा- 'क्या हम अगले एजेण्डे पर वार्ता कर सकते हैं?'

    -'हाँ-हाँ, क्यों नहीं। हम चाहते हैं कि दोनों वनों के बीच बह रही नफरत की नदी को रोककर उसके स्थान पर गाजर की खेती की जाये।'

    -'यह तो हम भी चाहते हैं।'

    -'जब आप भी यही चाहते हैं और हम भी, तो फिर हमें ऐसा करने से कौन रोकता है?'

    -'आपका इतिहास। जो हमें आप पर विश्वास नहीं करने देता।'

    -'बिल्कुल गलत कह रहे हैं आप, आपके अविश्वास का कारण हमारा इतिहास नहीं है, आपका अपना कायराना अंदाज है।'

    -'हम कायर नहीं हैं, शांति के पुजारी हैं।'

    -'कौनसी शांति? जो आपके और हमारे बीच कभी स्थापित नहीं हुई, वह शांति?'

    -'हम शांति चाहते हैं किंतु आप होने नहीं देते।'

    -'आपकी समस्या यह है कि आप शांति स्थापित नहीं करना चाहते, केवल उसका ढिंढोरा पीटना चाहते हैं।' खरगोशलैण्ड का मुखिया हैरान था। हजारों खरगोश खाने के बाद भी भेड़ियों का मुखिया खरगोशों पर शांति स्थापित नहीं होने देने का आरोप धर रहा था। उसकी यह कहने की हिम्मत भी नहीं रही कि आपने भी तो कभी अपने भेड़ियों के मुँह पर खरगोशों का खून लगा हुआ देखा होगा!


    जय हो! जय हो! गाइये!

    पाठकों को याद होगा कि पण्डित विष्णु शर्मा के पंचतंत्र की कथा में करटक नामक गीदड़, जंगल के राजा पिंगलक नामक शेर का मंत्री था। आज वही करटक घिसटता हुआ पिंगलक के समक्ष आकर बैठ गया, ढंग से नमस्ते भी नहीं की और पूंछ भी नहीं हिलाई। अपने मंत्री की पीली आंखों में मरी हुई दृष्टि देखकर पिंगलक हैरान हुआ। किसी तरह मूंछों पर ताव देकर रुखाई से बोला- 'कैसे हैं मंत्रिवर !'

    करटक बोला- 'महाराज! आपके राज्य में किसी मंत्री को जैसा होना चाहिये, मैं वैसा ही हूँ।'

    पिंगलक कन्फ्यूज हो गया, बोला- 'क्या मतलब?'

    -'मतलब बहुत साफ है राजन्! आपके राज्य में गधे की लीद खा-खाकर मंत्रियों की क्या हालत हो सकती है, वैसी ही हालत मेरी है।'

    -'तो बेवकूफ! ढंग की चीज क्यों नहीं खाता, गधे की लीद क्यों खाता है?' पिंगलक को अपने मंत्री की बेवकूफी पर सचमुच गुस्सा आ गया।

    -'सही कहते हैं महाराज! पर आपके राज्य में हर ओर धनिये में गधे की लीद, मिर्चों में रतनजोत के बीज, आटे में चूना, दूध में वाशिंग पाउडर, घी में पशुओं की चर्बी और मिठाई में घिया पत्थर बिक रहा है। अच्छी चीज कहाँ से खाऊँ? मुझे तो वैसे भी इतनी महंगी चीजें खाने की आदत नहीं। मैंने तो अचार से रोटी खाने की कोशिश की किंतु आपके राज्य में हर स्थान पर सड़ा हुआ अचार और फफूंदी लगी हुई चटनी बिक रही है जिन्हें खाकर मैं तो और भी ज्यादा बीमार पड़ गया।' पीड़ा से कराहते हुए करटक बोला।

    -'आप तो मंत्री हैं। हम आपको हर महीने बहुत सारे रुपये देते हैं, मुद्रा फीती की दर भी शून्य से नीचे चल रही है। फिर आप ऐसी घटिया चीजें क्यों खाते हैं? महंगी चीजें खरीद कर खाईये।'

    -'गुस्ताखी माफ हो महाराज। आपके दिये हुए रुपये अब अपने जंगल के बाजार में तो चलते नहीं किसी तरह छीन झपट कर ही पेट भरना पड़ता है।'

    -'क्यों? रुपये क्यों नहीं चलते ?'

    -'वे भी नकली हैं महाराज!'

    -'मुंह संभाल कर बात करो गीदड़ राज! राजा के रुपयों को नकली बता रहे हो!' पिंगलक ने दहाड़ने की कोशिश की किंतु मुंह से भौं-भौं निकल कर रह गई।

    -'ज्यादा दहाड़ने की कोशिश मत कीजिये महाराज! किसी ने सुन लिया तो मुश्किल हो जायेगी।'

    -'मुश्किल क्यों हो जायेगी?'

    -'अब ये भी मैं बताऊँ कि आप दहाड़ते नहीं हैं, भौंकते हैं! धनिये की लीद खाकर और वाशिंग पाउडर का दूध पीकर आप और कर भी क्या सकते हैं!' इस बार करटक को क्रोध आ गया।

    जंगल का राजा पिंगलक हैरान रह गया। कई दिनों से वह अनुभव कर रहा था कि उसकी दहाड़ में परिवर्तन आता जा रहा है। हो सकता है इसीलिये आजकल जंगल के जानवर मेरी उतनी इज्जत नहीं करते, जितनी पहले करते थे, उसने सोचा।

    -'क्या सोच रहे हैं महाराज?' करटक ने पूछा।

    -'मैं सोच रहा हूँ कि जब तुम गधे की लीद, सड़ा हुआ अचार और यूरिया मिला घी खा-खा कर इतने बीमार हो गये हो तो अपने भाई दमनक से अपना उपचार क्यों नहीं करवाते।'

    -'क्या खाक उपचार करवाऊँ। आपको कुछ मालूम भी है, आपके राज्य में दवाओं में लोहे की कीलें निकलती हैं और इंजेक्शनों में पानी भरा हुआ है।'

    -'यदि हमारे राज्य में एक मंत्री की ऐसी हालत है तो फिर सामान्य जानवरों पर क्या बीत रही होगी?' पिंगलक ने उदास होकर पूछा।

    -'आपको उसकी कहाँ फिक्र है? आप तो वोट बैंक को फलता- फूलता देखकर सुबह से शाम तक जय हो! जय हो! गाइये। फिर चाहे कोई जिये या मरे, गधे की लीद खाये या यूरिया से बना घी खाये।' करटक ने पेट दर्द से कराहते हुए कहा और महाराज को बिना प्रणाम किये उठकर चल दिया।


    डॉ. भेड़िया ने मंत्री की किडनी चुरा ली!

    करटक आज बहुत दिनों बाद महाराजा पिंगलक से मिलने आया था किंतु धरती पर बैठने की बजाय ऊँचे पेड़ की शाखा पर बैठकर झूले खाने लगा। पिंगलक ने हैरान होकर पूछा-'मंत्रिवर! क्या हो रहा है?'

    -'कुछ नहीं महाराज! आपको प्रणाम करने आया हूँ।'

    -'सो तो ठीक किंतु दरबारी कायदा तोड़कर वहाँ क्यों जा बैठे हैं?'

    -'जबसे हार्ट का ऑपरेशन करवाया है तब से मेरा जी पेड़ों पर चढ़ने, उछल-कूद करने और लोगों से चीजें छीनकर भागने को करता है।'

    -'ऐसा क्यों मंत्रिवर!'

    -'क्या बताऊँ महाराज। ऑपरेशन में छः बोतल खून चढ़ा था। कम्पाउण्डर बता रहा था कि वह खून नकली था।'

    -'नकली मतलब?'

    -'वह गीदड़ का खून नहीं था, किसी बंदर का खून था।'

    -'तो क्या बंदर का खून भी गीदड़ों को चढ़ जाता है?'

    -'आपके राज्य में जो हो जाये सो कम है महाराज!'

    -'आज आप गले में चेन पहनकर नहीं आये?' पिंगलक ने विषय बदलने की चेष्टा की।

    -'घर से तो पहनकर ही निकला था किंतु रास्ते में किसी बदमाश ने झपट ली। आपके राज्य में जो हो जाये, सो थोड़ा है।' करटक पेट पकड़ कर दर्द से कराहा।

    -'क्या हुआ मंत्रिवर!' पिंगलक ने किसी तरह साहस जुटा कर प्रश्न किया। पता नहीं इस मुँहफट मंत्री से क्या जवाब सुनने को मिले।

    -'होना क्या था, जब मैं हार्ट का ऑपरेशन करवाने गया तो आपके राज्य के डॉक्टर भेड़िया ने मेरी एक किडनी चुरा ली।'

    -'किडनी चुरा ली!' पिंगलक ने हैरान होकर पूछा।

    -'भेड़िया तो एक आँख भी चुराने की बात कर रहा था किंतु वह तो भला हो गिरगिट कम्पाउण्डर का जो उसने डॉक्टर भेड़िया को बता दिया कि मैं साधारण गीदड़ नहीं, इस जंगल के राजा पिंगलक का मंत्री हूँ। नहीं तो आज मैं पूरी दुनिया को एक आँख से देख रहा होता।'

    -'तो आप खुश हैं ना कि अब भी राज्य के कर्मचारी हमारा रुतबा मानते हैं और मंत्रियों की आँख चुराने से डरते हैं!'

    -'हाँ महाराज! मैं खुश हूँ कि जंगल के सारे कर्मचारी आपका रुतबा मानते हैं इसलिये वे केवल किडनी चुराते हैं, आँख नहीं चुराते।'

    -'आज बहुत दिनों बाद मुझे आपके मुँह से प्रशंसा सुनने को मिली है।' पिंगलक ने प्रसन्न होकर कहा।

    -'ज्यादा अपने मुँह मिट्ठू मत बनिये, इस फाइल को देखिये।'

    -'किसकी फाइल है ये?' पिंगलक ने भयभीत आँखों से फाइल की ओर देखते हुए प्रश्न किया।

    -'आपके मित्र संजीवक बैल ने विदेशी बैंकों में जो काला धन जमा करवा रखा है, इस फाइल में उसी का हिसाब किताब है।' करटक ने अपने दर्द पर काबू पाते हुए कहा।

    -'हमें क्यों पढ़वा रहे हैं यह हिसाब-किताब? यह तो विदेश मंत्री को दीजिये ले जाकर।' पिंगलक ने नाराज होकर कहा।

    -''विदेश मंत्री कह रहे हैं कि यह मामला वित्त मंत्रालय का है।'

    -'तो वित्त मंत्रीजी को दीजिये।'

    -'वित्त मंत्रीजी कह रहे हैं कि यह मामला खुफिया पुलिस का है।'

    -'तो भाई खुफिया पुलिस को दीजिये।'

    -'लेकिन महाराज खुफिया पुलिस को तो आपने पहले से ही भंग कर दिया है, किसे दूँ यह फाइल?'

    -'तुम भी यार, बड़े अजीब मंत्री हो! हर बार कोई न कोई समस्या लेकर आ जाते हो। मंत्री का काम राजा की समस्याएं कम करने का है कि बढ़ाने का? जिसे मर्जी आये, उसे दे दो यह फाइल।' यह कहकर पिंगलक ने लम्बी जंभाई ली और आँखें बंद करके सो गया।

    हमारी नई वैबसाइट - भारत का इतिहास - www.bharatkaitihas.com




  • Share On Social Media:
Categories
SIGN IN
Or sign in with
×
Forgot Password
×
SIGN UP
Already a user ?
×