जिस दिन किसी मनचले कवि का ये शेर आप सुनें या पढ़ें, उस दिन आपकी समझ में आयेगा कि तिल का ताड़ किस तरह बनाया जाता है। आगे की बात करने से पहले आप ये शेर आज ही पढ़ लें। शेर कुछ इस तरह से है- 'अब समझा तेरे रुखसार पे तिल का मतलब, दौलते हुस्न पे पहरेदार बिठा रखा है।'
जब मैंने पहले-पहल इस शेर को पढ़ा तो मेरी समझ में नहीं आया कि कैसे इतनी बड़ी दौलत को एक तिल की रखवाली के भरोसे छोड़ा जा सकता है! जिस दौलत की रखवाली के लिये आज तक हजारों-लाखों लोग तिल-तिल कर कट मरे और आगे भी कटते मरते रहेंगे, उस दौलत की पहरेदारी एक मरियल से काले तिल से कैसे होगी?
यह प्रश्न सालों तक मुझे सालता रहा किंतु मैं किसी तरह से इसका जवाब नहीं पा सका। बहुत बाद में किसी समझदार आदमी ने मुझे समझाया- 'पहरेदारी-वहरेदारी कुछ नहीं यह तो कवि लोगों की कारस्तानी है जो तिल को ताड़ बना देते हैं। ये वो तिल हैं जिनमें तेल नहीं होता।'
बहुत दिनों बाद जब मैं उस समझदार आदमी से दुबारा मिला तो मैंने पाया कि वह भी एक तिल के फेर में पड़कर तिल-तिल कर जल रहा था।
मैंने पूछा- 'समझदारजी! यह क्या हुआ? जिन तिलों में तेल नहीं उन्हीं तिलों के फेर में हो!
समझदारजी कराहकर बोले- 'तुम नहीं समझोगे म्याँ। मैं तिल के फेर में नहीं हूँ, मैं तो उस ताड़ पर चढ़ने की कोशिश कर रहा हूँ जिस ताड़ पर ये तिल लगते हैं।'
मैंने कहा- 'समझदारजी! तिल कभी ताड़ पर नहीं लगते। फिर आपको तिलों से करना क्या है? आप तो तेल देखो, तेल की धार देखो। क्या धरा है इन सूखे तिलों में! समझदारजी लम्बी साँस छोड़कर बोले- म्याँ इन तिलों के लड्डू ही न खाये तो जीवन में खाया ही क्या!'
मैंने कहा- 'समझदारजी! जीवन में करने को बहुत कुछ है। छोड़िये इन तिलों के चक्कर को।'
इस बार समझदारजी ने मेरी बात का कोई जवाब नहीं दिया और चुपचाप तिल के लड्डुओं की सुगंध में डूब गये। मैंने बहुत प्रयास किया किंतु समझदारजी तिल भर भी पीछे नहीं हटे।
हार-थक कर मुझे कहना पड़ा- 'समझदारजी! मुझे यह तो पता नहीं कि ताड़ पर तिल लगते हैं या नहीं किंतु जिस ताड़का के चक्कर में आप पड़े हैं वह अवश्य ही तिलों वाली है।'
सौभाग्य से कुछ सालों बाद मुझे उस ताड़का के दर्शन हुए। तब तक समझदारजी उससे विवाह कर चुके थे अतः स्वाभाविक ही था कि समझदारजी एक बच्चे को गोदी में और एक बच्चे को कंधे पर लिये उसके पीछे-पीछे चल रहे थे। एक बच्चा पीछे-पीछे भागता हुआ आ रहा था।
मैंने उचक-उचक कर खूब देखा किंतु मुझे ताड़का रानी के रुखसार पे एक भी तिल नजर नहीं आया। मेरी उचका-उचकी से समझदारजी चिढ़ गये। बोले- 'म्याँ यूँ क्या उचक रिये (रहे) हो पहले कोई जनाना नहीं देखी क्या?'
मैंने कहा- 'समझदारजी जनाना तो देखी किंतु तिलों वाली ताड़का नहीं देखी। कोशिश कर रहा हूँ कि एक-आध तिल हमें भी दिख जाये। देखें तो सही दौलते हुस्न की रखवाली करने वाले तिल कैसे होते हैं!'
समझदारजी की शक्ल रोनी सी हो आई। लम्बी साँस लेकर बोले- ' म्याँ कुछ न पूछो जिस दौलत पे बर्बाद हुआ वह तो पाउडर, बिंदिया और काजल से बनी हुई थी। साल भर में ही उड़-उड़ा गयी।'
- 'और उन तिलों का क्या हुआ?'
- 'म्याँ कैसे तिल? जिन तिलों के चक्कर में मैं बर्बाद हुआ वे भी ब्यूटीपार्लर का कमाल निकले। शादी करते ही गायब हो गये। अब तो यह ताड़ बचा हुआ है जिसे लिये घूम रहा हूँ।'
मैंने कहा- 'समझदारजी रोते क्यों हो? जो होना था सो हुआ, अब तो आगे की सुधि लो।'
समझदारजी सचमुच रोने लगे, बोले- 'अजी कैसी सुधि लूँ? अब तो बस एक को गोदी और दूसरे को कंधे पर ले सकता हूँ।'
मैं सलाहकार की मुद्रा में उतर आया और उनके दुःख में भयानक दुःखी होने की मुद्रा बनाते हुए कहा- 'सो क्या बुरा है? जिन्दगी इसी का नाम है। इसमें आधी दुनिया भगवान की और आधी ब्यूटी पार्लर की बनायी हुई है।'
समझदारजी तड़प कर बोले- 'भगवान का तो मुझे पता नहीं लेकिन इतना अवश्य है कि आधी दुनिया ब्यूटी पार्लर वालों की ओर आधी दुनिया कवियों की बनाई हुई है जिनके फेर में पड़कर कोई भी बर्बाद हो सकता है।'