मेवाड़ के एक महाराणा अयोध्या में श्री राम जन्मभूमि को मुक्त करवाने के लिये सशस्त्र संघर्ष हेतु अपनी सेना लेकर अयोध्या गये थे। उस सेवा का परिणाम यह हुआ कि जब राजस्थान बना तो उसके पहले महाराज प्रमुख मेवाड़ के महाराणा बने।
भारत की स्वतंत्रता से पहले, गीताप्रेस गोरखपुर के संस्थापकों में से एक श्री भाईजी श्री हनुमान प्रसाद पोद्दार, श्रीराम जन्म भूमि पर मंदिर बनाने के लिये प्रयासरत थे। उन्होंने इसके लिये हुए आंदोलनों का नेतृत्व भी किया। इस सेवा का परिणाम यह हुआ कि स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद भारत सरकार ने उन्हें भारत रत्न देने की इच्छा व्यक्त की किंतु श्री पोद्दार ने विनम्रता पूर्वक मना कर दिया। वे भारत के अकेले ऐसे व्यक्ति हैं जिन्होंने भारत रत्न को लेने से मना कर दिया। उन्होंने भारत के लगभग हर हिन्दू के घर में गीता, महाभारत, रामचरित मानस एवं कल्याण जैसे महान् ग्रंथ एवं पत्रिकाएं उपलब्ध कराने में अपना जीवन बिताया।
श्री लालकृष्ण आडवाणी ने भी राममंदिर को लेकर रथयात्रा की थी, उसका परिणाम यह हुआ कि केन्द्र में तीन बार अटल बिहारी वाजपेयी की तथा चौथी बार नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी। स्वयं लालकृष्ण आडवाणी अगले राष्ट्रपति के रूप में देखे जा रहे हैं।
बाबूजी के नाम से विख्यात श्री कल्याणसिंह ने ई. 1992 में रामजन्म भूमि की सेवा करते हुए अपनी सरकार का बलिदान किया। वे आज भी राजस्थान के राज्यपाल हैं।
स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद के रामजन्म भूमि आंदोलनों को गोरखपुर के गोरखमठ ने नये सिरे से आरम्भ किया। उसका फल यह हुआ कि गोरखमठ के महंत श्री आदित्य योगी आज उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं।
योगी आदित्यनाथ रामजन्म भूमि आंदोलन से राजनीति में आये। आज केवल 44-45 साल की आयु में वे उत्तर प्रदेश के मुख्यमंत्री हैं और उनके नाम की धमक सम्पूर्ण विश्व में गूंज रही है। जो रामजन्म भूमि की सेवा करेगा, वह मेवा पायेगा।