राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान के प्रमुख त्यौहार
30.12.2021
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 246
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान के प्रमुख त्यौहार
1. अक्षय तृतीया
उतर- यह त्यौहार वैसाख मास के शुक्ल पक्ष की तृतीया को मनाया जाता है। इस दिन बाजरा, गेंहूं, चना, जौ, तिल आदि सात अन्नों की पूजा की जाती है तथा शीघ्र वर्षा होने की कामना की जाती है। घर के द्वार पर अनाज की बालियों के चित्र बनाये जाते हैं।
2. निर्जला एकादशी
उतर- ज्येष्ठ मास के शुक्ल पक्ष की एकादशी को सर्वाधिक फलदायिनी माना जाता है। इस दिन व्रत रखने से शेष सभी एकादशियों के व्रत का पुण्य प्राप्त होता है। इस व्रत में जल नहीं पिया जाता।
3. तीज श्रावण
उतर- शुक्ला तृतीया को छोटी तीज मनायी जाती है। भाद्रपद की तृतीया को बड़ी तीज कहते हैं। छोटी तीज का महत्व अधिक है। यह त्यौहार ग्रीष्म काल के व्यतीत हो जाने के बाद आने वाला प्रथम त्यौहार है। तीज और गणगौर के बारे में कहा जाता है कि ‘तीज त्यौहारां बावड़ी, ले डूबी गणगौर।’ अर्थात् तीज अपने साथ त्यौहारों को लेकर आती है और गणगौर अपने साथ त्यौहारों को वापिस ले जाती है। तीज बालिकाओं और सधवा स्त्रियों का त्यौहार है। एक दिन पूर्व बालिकाओं का सिंझारा (शृगार) किया जाता है। इस सम्बन्ध में एक उक्ति कही जाती है- ‘आज सिंझारा तड़के तीज, छोरियां ने लेगी पीर।’ विवाहिता स्त्रियाँ एवं कन्याएं हाथ पैरों पर मेंहदी लगाती हैं। विवाहित स्त्रियों के माता-पिता अपनी पुत्री के ससुराल में सिंझारा, वस्त्र आदि भेजते हैं। विवाहिता स्त्रियां इस त्यौहार पर अपने पिता के घर जाती हैं। वे व्रत रखती हैं तथा व्रत में जल भी ग्रहण नहीं करतीं। सायंकाल भगवान शिव एवं पार्वती की पूजा करती हैं तथा रात्रि में चंद्र दर्शन करके भोजन करती हैं। इस त्यौहार पर झूला झूलने का विशेष महत्व है। किसी सरोवर के पास मेला भरता है। गणगौर की सवारी निकलती है। लोकगीत गाये जाते हैं।
4. नाग पंचमी
उतर- श्रावण शुक्ला पंचमी को नाग पूजा की जाती है। इस दिन घर के दरवाजों के दोनों ओर गोबर से नाग के चित्र बनाये जाते हैं। सपेरों को दान दिया जाता है।
उतर- श्रावण मास की पूर्णिमा को रक्षाबंधन का त्यौहार मनाया जाता है। यह मुख्यतः ब्राह्मणों का त्यौहार है। रक्षाबंधन को नया यज्ञोपवीत धारण किया जाता है। इस दिन बहिनें अपने भाईयों को तथा ब्राह्मण अपने यजमानों को राखी बांधते हैं। इस दिन औरतें अपने घर के दरवाजों के दोनों ओर खड़िया तथा गेरू से राखियां तथा लघु चित्रों का अंकन करती हैं जिन्हें गेरू कहा जाता है। राखी वाले दिन इन चित्रांकनों की पूजा की जाती है।
6. ऊभ छट
उतर- श्रावण मास में कुंआरी कन्याएं ऊभ छट का त्यौहार मनाती हैं। इस दिन वे व्रत करती हैं तथा सारे दिन खड़ी रहती हैं। रात्रि में वे किसी मंदिर में सम्मिलित प्रार्थना करती हैं तथा रात्रि में चंद्रमा के दर्शन करने के बाद ही भोजन करती हैं।
7. हरियाली अमावस्या
उतर- श्रावण मास में अमावस्या के दिन हरियाली अमावस्या मनायी जाती है। इस दिन राजस्थान के कुछ हिस्सों में माल पुए बनाये जाते हैं।
8. बच्छ बारस
उतर- श्रावण मास में द्वादशी के दिन बच्छ बारस मनायी जाती है। इस दिन गायों एवं बछड़ों की पूजा की जाती है तथा उन्हें बाजरी, मोठ व चनों का दलिया खिलाया जाता है।
9. जल झूलनी
उतर- एकादशी भाद्रपद माह के शुक्ल पक्ष की एकादशी को जल झूलनी एकादशी मनायी जाती है। इस दिन देव मूर्तियों को पालकियों और विमानों में बैठाकर गाजे बाजे के साथ जलाशय पर ले जाया जाता है तथा स्नान करवाया जाता है।
10. गवरी पूजन
उतर- भाद्रपद कृष्ण 10 को मेवाड़ क्षेत्र मैं गवरी पूजन उत्सव आरंभ होता है जो शरद आश्विन माह के शुक्ल पक्ष की नवमी को समाप्त होता है। इन दिनों में भील जाति के लोग गवरी नृत्य करते हैं।
11. गोगानवमी
उतर- भाद्रपद माह में नवमी को गोगानवमी मनायी जाती है।
12. जन्माष्टमी
उतर- भगवान श्रीकृष्ण के जन्म दिवस पर भाद्रपद माह के कृष्ण पक्ष की अष्टमी को यह त्यौहार मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन भगवान श्रीकृष्ण का जन्म हुआ था। हिंदू धर्मावलम्बी इस दिन निराहार रहकर व्रत करते हैं तथा रात्रि में चंद्रोदय तक जागरण करते हैं। लगभग 12 बजे चंद्रमा निकलने पर अर्घ्य देते हैं तथा धनिये का प्रसाद चढ़ाते हैं।
13. श्राद्ध पक्ष
उतर- भाद्रपद शुक्ला 15 से आश्विन कृष्णा अमावस्या तक श्राद्ध पक्ष मनाया जाता है। हिन्दू धर्म के अनुसार पूर्वजों की मृत्यु के बाद उनकी तिथि के दिन श्राद्ध, तर्पण एवं ब्राह्मण को भोजन करवाया जाता है। इन दिनों में मांस मदिरा का सेवन वर्जित है। कुछ लोग इन दिनों में दाढ़ी एवं बाल भी नहीं कटवाते हैं।
14. नवरात्रा
उतर- चैत्र माह के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक तथा आश्विन माह के शुक्ल पक्ष में प्रतिपदा से नवमी तक नवरात्रियों का आयोजन होता है। इन दिनों में देवी दुर्गा की पूजा होती है तथा सप्तशती का पाठ किया जाता है। अनेक देवी मंदिरों में इन दिनों में मेला भरता है। कार्तिक माह की नवरात्रियों में नवमी को रामनवमी के रूप में मनाया जाता है। आश्विन माह की दशमी को दशहरा का आयोजन किया जाता है।
15. दशहरा
उतर- आश्विन माह की दशमी को दशहरा का आयोजन किया जाता है। इस दिन भगवान राम ने रावण पर विजय प्राप्त की थी, इसलिये इस त्यौहार को बुराई पर अच्छाई की विजय के रूप में मनाया जाता है। यह क्षत्रियों का त्यौहार माना जाता है। इस दिन शस्त्र पूजन होता है तथा शाम के समय रावण, कुंभकर्ण एवं मेघनाद के पुतले जलाये जाते हैं।
16. करवा चौथ
उतर- सुहागिन स्त्रियों द्वारा कार्तिक कृष्णा चतुर्थी को करवा चौथ का व्रत किया जाता है। चंद्रमा के दर्शन करके उसे अर्घ्य देने के बाद ही स्त्रियां व्रत खोलती हैं। इस व्रत के पालन से घर में सुख-सौभाग्य में वृद्धि तथा पुत्र एवं पति को दीर्घायु प्राप्त होती है।
17. दीपावली
उतर- कार्तिक माह की अमावस्या को दीपावली मनायी जाती है। इससे दो दिन पहले धनवंतरी त्रयोदशी मनायी जाती है जिसे धनतेरस भी कहते हैं। इस दिन एक दिया जमदीप के नाम से जलाया जाता है। धनतेरस के अगले दिन नरकासुर का वध किया गया था। इसे नर्क चौदस भी कहते हैं। हिन्दुओं में इसे रूप चौदस के रूप में भी मनाया जाता है। इस दिन प्रातः शीघ्र स्नान करने का महत्व है। अमावस्या के दिन दीपावली होती है। रबी फसल पकने की प्रसन्नता में इस पर्व का आयोजन किया जाता है। इस दिन व्यापारी लोग नयी बहियां लगाते हैं। लक्ष्मीजी का पूजन किया जाता है। लक्ष्मीजी के साथ गणेशजी, कौड़ी, शंख तथा बहियों का भी पूजन किया जाता है। घर, दुकान, व्यापारिक कार्यालय, गली, मौहल्ले एवं बाजार में दीप मालाओं एवं बिजली की झालरों से प्रकाश किया जाता है। हिन्दू लोग इसे भगवान श्रीराम के वनवास के बाद पुनः अयोध्या आगमन की प्रसन्नता में मनाते हैं। जैन धर्म के लोग इस दिन महावीर स्वामी का निर्वाण दिवस मनाते हैं। आर्य समाजी दयानंद सरस्वती के निर्वाण दिवस के रूप में मनाते हैं। दीपावली के अगले दिन लोग अपने परिवारों सहित एक दूसरे की कुशल क्षेम पूछने जाते हैं।
18. गोवर्धन पूजा एवं अन्नकूट
उतर- दीपावली के अगले दिन गोवर्धन का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन बछड़े का पूजन कर उसके कंधे पर हल रखा जाता है। बैलों के सींग रंगे जाते हैं और उनके शरीर पर रंग के छापे लगाये जाते हैं। मंदिरों में अन्नकूट का आयोजन किया जाता है। छप्पन तरह के व्यंजन बनाकर भगवान को अर्पित किये जाते हैं। अन्नकूट के पश्चात् नाथद्वारा तथा कांकरोली में भीलों को भोजन, मिठाई तथा चावलों की लूट करवायी जाती है।
19. भाई दूज
उतर- गोवर्धन के अगले दिन भाई दूज का पर्व मनाया जाता है। मान्यता है कि इस दिन यम ने अपनी बहिन यमी का निमंत्रण स्वीकार करके उनके यहाँ भोजन किया था। इस दिन बहिनें भाई को तिलक निकाल कर उसकी दीर्घायु की कामना करती हैं।
उतर- एकादशी कार्तिक शुक्ला एकादशी को देवोत्थान एकादशी मनायी जाती है। मान्यता है कि इसी दिन क्षीर सागर में सोये हुए भगवान विष्णु जागे थे। इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है तथा नयी ईख की पूजा करके उसे चूसा जाता है। इसी दिन भगवान विष्णु से तुलसी का विवाह करवाया जाता है। इस दिन से अगले आठ माह तक (हरियाली एकादशी तक) विवाह कार्य संपन्न करने का मुहूर्त रहता है।
21. कार्तिक पूर्णिमा
उतर- कार्तिक पूर्णिमा को गंगा स्नान और दीपदान का विशेष महत्व है। राजस्थान के लोग इस दिन नदियों एवं तालाबों पर जाकर स्नान करते हैं। इस दिन भगवान विष्णु ने मत्स्य के रूप में अवतार लिया था। सिक्ख धर्म के गुरु नानक देव का जन्म भी इसी दिन हुआ था। इस दिन गुरुद्वारों में गुरु ग्रंथ साहब का पाठ होता है तथा प्रसाद बांटा जाता है।
22. मकर संक्रांति
उतर- प्रति वर्ष सूर्य देव के उत्तरायण होने के दिन को मकर संक्रांति के रूप में मनाया जाता है। यह सामान्यतः 14 जनवरी को ही होता है। इस दिन सूर्य भगवान की पूजा की जाती है। लोग नदियों एवं तालाबों पर जाकर स्नान करते हैं तथा खिचड़ी एवं तिलों का दान करते हैं। इस दिन अनेक स्थानों पर पतंग उड़ाई जाती है। इस दिन मल मास समाप्त हो जाता है तथा लोग फिर से शुभ कार्य आरंभ कर देते हैं।
23. बसंत पंचमी
उतर- माघ शुक्ल पंचमी को बसंत पंचमी का त्यौहार मनाया जाता है। इस दिन भगवान विष्णु तथा माता सरस्वती की पूजा की जाती है। काम देव तथा रति की भी पूजा की जाती है। लोग बसंती रंग के वस्त्र पहनते हैं। प्राचीन काल में इस दिन नृत्य तथा संगीत के बड़े आयोजन होते थे।
24. शिवरात्रि
उतर- माघ कृष्णा त्रयोदशी को शिवरात्रि का आयोजन किया जाता है तथा भगवान शिव को प्रसन्न करने के लिये व्रत किया जाता है। इस व्रत में अन्न ग्रहण नहीं किया जाता। उसके स्थान पर फलाहार किया जाता है।
25. होली
उतर- फाल्गुन मास की पूर्णिमा को होलिका दहन किया जाता है तथा अगले दिन फाग खेला जाता है। यह त्यौहार रबी की फसल के पकने की प्रसन्नता में मनाया जाता है। मान्यता है कि इसी दिन हिरण्यकश्यपु की बहिन होलिका ने भक्त प्रहलाद को अपनी गोदी में बैठकार अग्निस्नान किया था। इस प्रयास में होलिका तो जल कर मर गयी किंतु भक्त प्रहलाद चमत्कारिक रूप से बच गये। पश्चिमी राजस्थान में ईलोजी की सवारी निकालने की परंपरा है। मेवाड़ तथा मारवाड़ में गैर नृतकों की टोलियां इस त्यौहार पर गैर नृत्यों का अयोजन करती हैं। आदिवासी लोगों में होली पर भागोरिया खेला जाता है। ब्रज से लगते हुए क्षेत्र में लट्ठ मार होली खेली जाती है। जालोर जिले में होली के अगले दिन भाटा गैर खेली जाती थी जिस पर अब रोक लगा दी गई है।
26. शीतला सप्तमी
उतर- राजस्थान में चैत्र शुक्ला सप्तम को शीतला सप्तमी मनायी जाती है। इस दिन शीतला देवी की पूजा होती है तथा एक दिन पहले बना हुआ शीतल भोजन किया जाता है। मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से बच्चों में ओरी, चेचक तथा बोदरी जैसी बीमारियां नहीं होती हैं। जोधपुर राज्य में शीतला सप्तमी की जगह शीतला अष्टमी मनायी जाती है क्योंकि जोधपुर राज्य के राजा विजयसिंह के पुत्र सरदारसिंह की शीतला सप्तमी के दिन ओरी से मृत्यु हो गयी थी। शोक विह्वल राजा ने शीतला माता की मूर्ति को हाथी के पैरों से कुचलवाकर उसे पहाड़ियों से नीचे फैंक दिया। शोक से उबरने पर राजा को अपने कृत्य पर पश्चाताप हुआ और वह सपरिवार माता की पूजा के लिये उपस्थित हुआ।
27. गणगौर
उतर- गणगौर का त्यौहार होली से लगभग 15 दिन बाद मनाया जाता है। चैत्र कृष्णा प्रतिपदा से गणगौर पूजा प्रारंभ होकर चैत्र शुक्ला तृतीया को समाप्त होती है। गण से तात्पर्य भगवान शिव से तथा गौर से तात्पर्य गौरी अर्थात् माता पार्वती से है। यह त्यौहार पार्वतीजी के गौने का सूचक है। प्रतिदिन संध्याकाल में सौभाग्यवती स्त्रियाँ तथा कुमारियाँ सिर पर कलश रखकर इस अवसर पर गीत गाती हुई तालाबों पर जाती हैं। ईसर और गणगौर की काष्ठ मूर्तियों का जुलूस निकाला जाता है। यह सवारी जयपुर, जोधपुर, उदयपुर, बीकानेर, कोटा व जैसलमेर में विशेष ठाट बाट के साथ निकाली जाती है। नृत्य एवं संगीत इस अवसर के विशेष आकर्षण होते हैं। इस दौरान ऊँटों एवं घोड़ों की दौड़ भी आयोजित की जाती है। इस सम्बन्ध में एक कहावत कही जाती है- गणगौरियाँ ने ही घोड़ नहीं दौड़ैला तो दौड़ैला कद। उदयपुर में तालाब के बीच नावों पर नृत्य किये जाते हैं। कुंआरी कन्याएं अच्छे दूल्हे की कामना से इस त्यौहार को मनाती हैं। बहिनें माता पार्वती से अपने भाई के लिये अच्छी दुलहन मांगती हैं। इस त्यौहार पर घूमर नृत्य किया जाता है। विवाहित स्त्रियां अपने अखण्ड सौभाग्य की कामना से 15 या 18 दिन तक व्रत करती हैं तथा प्रतिदिन माँ पार्वती की पूजा करती हैं।
28. घुड़ला
उतर- चैत्र शुक्ला तृतीया को घुड़ले का त्यौहार मनाया जाता है। स्त्रियाँ एकत्रित होकर कुम्हार के घर जाती हैं तथा एक छिद्र युक्त घड़ा लेकर उसमें दिया रखती हैं। इस घड़े को घर-घर घुमाया जाता है। बाद में इस घड़े को तालाब में बहा दिया जाता है। इस त्यौहार के पीछे एक ऐतिहासिक घटना है। मारवाड़ के राजा सातलदेव के समय में अजमेर के सूबेदार मल्लूखां का सेनापति घुड़ला खां एक बार मारवाड़ की कन्याओं को उठाकर ले गया। उस दिन चैत्र शुक्ला तृतीया थी तथा कन्याएं गौरी पूजन के लिये गाँव से बाहर तालाब पर आयी हुई थीं। जब सातल देव को यह समाचार मिला तो उसने अपने भाई बीकानेर नरेश बीका तथा मेड़ता नरेश दूदा को भी संदेश भिजवाया। सातल देव के दूसरे भाई भी आ जुटे। इन राठौड़ राजाओं ने घुड़ले खां का पीछा किया और उसे अजमेर पहुंचने से पहले ही धर दबोचा। इस युद्ध में घुड़ले खां मारा गया तथा कन्याएं छुड़ा ली गयीं। घुड़ले खां का सिर काटकर कन्याओं को दे दिया गया। कन्याओं ने घुड़ले खां का सिर पूरे गाँव में घुमाया। आज भी उसकी स्मृति में घुड़ला घुमाया जाता है। मटकी को घुड़ले खां का सिर माना जाता है तथा उसके छेद घुड़ला खां के सिर के घाव माने जाते हैं। इस अवसर पर कन्याओं द्वारा गाये जाने वाले गीत में कहा जाता है कि मारवाड़ की कन्याएं बेधड़क घूम रही हैं। घुड़लेखां में हिम्मत हो तो उन्हें आकर रोक ले।
29. पर्यूषण
उतर- यह जैन मतावलंबियों का त्यौहार है जो भाद्रपद माह में मनाया जाता है। इस उत्सव का अंतिम दिन संवतसरी कहलाता है। इसके दूसरे दिन आश्विन कृष्णा प्रतिपदा को क्षमापणी पर्व मनाया जाता है। इस दिन श्रावक लोग एक दूसरे से क्षमा याचना करते हैं।