राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान का लोक संगीत
25.12.2021
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 242
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान का लोक संगीत
1. प्रश्न : रतजगा किसे कहते हैं?
उतर- देवी-देवताओं को प्रसन्न करने के लिये सम्पूर्ण रात्रिकाल में भजन कीर्तन करने को रतजगा किया जाता है।
2.प्रश्न : रतजगे में किसके भजन गाये जाते हैं?
उतर- विनायक, महादेव, विष्णु, राम, कृष्ण, बालाजी (हनुमान), भैंरू, जुंझार, पाबू, तेजा, गोगा, रामदेव, देवजी, रणक दे, सती माता, दियाड़ी माता, सीतला माता, भोमियाजी आदि के भजन। मीरां, कबीर, दादू, रैदास, चंद्रस्वामी तथा बख्तावरजी के पद भी बड़ी संख्या में गाये जाते हैं।
3. प्रश्न : राजस्थानी लोकगीतों में कौनसी रागों का प्रयोग होता है?
उतर- इन्हें छोटी-छोटी तानों, मुकरियों तथा विशेष आघात देकर उतर- सजाया जाता है। इन गीतों को मांड, देस, सोरठ, मारू, परज, कालिंगड़ा, जोगिया, आसावरी, बिलावल, पीलू खमाज आदि राग-रागिनियों में गाया जाता है।
4. प्रश्न : राजस्थान की दो प्रसिद्ध रागें कौनसी हैं?
उतर- मांड तथा मारू।
5.प्रश्न : राजस्थान की मांड गायिकी की क्या विशेषताएं हैं?
उतर- थोड़े-बहुत अंतर के साथ क्षेत्र विशेष में इन्हें अलग तरह से गाया जाता है। उदयपुर की मांड, जोधपुर की मांड, जयपुर-बीकानेर की मांड, जैसलमेर की मांड, मांड गायिकी में अधिक प्रसिद्ध हैं। राग सोरठ, देस तथा मांड तीनों एक साथ गाई व सुनी जाती है।
6.प्रश्न : मारू राग की क्या विशेषता है?
उतर- लोक गायकों द्वारा गाये जाने वाले वीर भाव जागृत करने वाले गीत सिंधु तथा मारू रागों पर आधारित होते थे जिन्हें सेनाओं के रण-प्रयाण के समय गाया जाता था।
7.प्रश्न : पश्चिमी राजस्थान में गाये जाने वाले लोकगीतों की क्या विशेषता है?
उतर- ये ऊंचे स्वर व लम्बी धुन वाले होते हैं जिनमें स्वर विस्तार भी अधिक होता है। राजस्थान के प्रमुख लोकगीत
8.प्रश्न : ओल्यूँ ओल्यूँ किसी की स्मृति में गाई जाती है।
उतर- बेटी की विदाई पर ओल्यूँ इस प्रकार गाई जाती है- कँवर बाई री ओल्यूँ आवै ओ राज।
9.प्रश्न : इंडोणी पानी भरने जाते समय स्त्रियां मटके को सिर पर टिकाने के लिये मटके के नीचे इंडोणी का प्रयोग करती हैं।
उतर- इस अवसर पर यह गीत गाया जाता है- म्हारी सवा लाख री लूम गम इंडोणी।
10.प्रश्न : कांगसियो कंघे को कांगसिया कहा जाता है-
उतर- म्हारै छैल भँवर रो कांगसियो पणिहारियाँ ले गई रे।
11.प्रश्न : कागा इस गीत में विरहणी नायिका द्वारा कौए को सम्बोधित करके अपने प्रियतम के आने का शगुन मनाया जाता है-
उतर- उड़-उड़ रे म्हारा काला रे कागला, जद म्हारा पिवजी घर आवै।
12.प्रश्न : काजलियो
उतर- यह एक शृगारिक गीत है जो होली के अवसर पर चंग पर गाया जाता है।
13.प्रश्न : कामण
उतर- वर को जादू टोने से बचाने के लिये स्त्रियाँ कामण गाती हैं।
14.प्रश्न : कुरजां
उतर- प्रियतम को संदेश भिजवाने के लिये कुरजाँ पक्षी के माध्यम से यह गीत गाया जाता है- कुरजांँ ए म्हारौ भंवर मिलाद्यौ ए।
15.प्रश्न : केसरिया बालम
उतर- यह एक रजवाड़ी गीत है जिसमें विरहणी नारी अपने प्रियतम को घर आने का संदेश देती है- केसरिया बालम आवो नी, पधारौ म्हारे देस।
16.प्रश्न : गणगौर यह गणगौर पर गाया जाने वाला गीत है-
20.प्रश्न : घोड़ी बारात की निकासी पर घोड़ी गाई जाती है-
उतर- घोड़ी म्हारी चन्द्रमुखी सी, इन्द्रलोक सूँ आई ओ राज।
21.प्रश्न : चिरमी
उतर- वधू अपने ससुराल में अपने भाई और पिता की प्रतीक्षा में चिरमी के पौधे को सम्बोधित करके गाती है- चिरमी रा डाला चार वारी जाऊँ चिरमी ने।
22.प्रश्न : जच्चा
उतर- बालक के जन्मोत्सव पर जच्चा या होलर गाये जाते हैं।
23.प्रश्न : जलो और जलाल वधू के घर की स्त्रियाँ बारात का डेरा देखने जाते समय जलो और जलाल गाती हैं-
उतर- म्हैं तो थारा डेरा निरखण आई ओ, म्हारी जोड़ी रा जहाँ।
24.प्रश्न : जीरा यह लोकगीत कृषक नारी द्वारा जीरे की खेती में आने वाली कठिनाई को व्यक्त करने के लिये गाया जाता है-
उतर- ओ जीरो जीव रो बैरी रे, मत बाओ म्हारा परण्या जीरो।
25. झोरावा यह विरह गीत होता है।
उतर- जैसलमेर क्षेत्र में पति के परदेश जाने पर उसके वियोग में झोरावा गाया जाता है।
26.प्रश्न : ढोला मारू
उतर- सिरोही क्षेत्र में ढाढियों द्वारा गाया जाने वाला गीत जिसमें ढोला मारू की प्रेमकथा का वर्णन है।
27.प्रश्न : तेजा जाट
उतर- जाति के लोगों द्वारा कृषि कार्य आरंभ करते समय लोक देवता तेजाजी को सम्बोधित करके तेजा गाया जाता है।
28.प्रश्न : पंछीड़ा
उतर- हाड़ौती एवं ढूंढड़ी क्षेत्रों में मेले के अवसर पर अलगोजे, ढोलक एवं मंजीरे के साथ पंछीड़ा गाया जाता है।
29.प्रश्न : पणिहारी
उतर- पानी भरने वाली स्त्री को पणिहारी कहते हैं। इस गीत में स्त्रियों को पतिव्रत धर्म पर अटल रहने की प्रेरणा दी गई है।
30.प्रश्न : पपैयो
उतर- यह दाम्पत्य प्रेम के आदर्श को दर्शाने वाला गीत है जिसमें प्रेयसी अपने प्रियतम से उपवन में आकर मिलने का अनुरोध करती है।
31.प्रश्न : पावणा
उतर- नये दामाद के ससुराल आने पर स्त्रियाँ उसे भोजन करवाते समय पावणा गाती हैं।
32.प्रश्न : पीपली
उतर- मरुस्थलीय क्षेत्र में वर्षा ऋतु में पीपली गाया जाता है जिसमें विरहणी द्वारा प्रेमोद्गार व्यक्त किये जाते हैं।
33.प्रश्न : बधावा
उतर- शुभ कार्य सम्पन्न होने पर बधावा गीत गाये जाते हैं।
34.प्रश्न : बना-बनी
उतर- विवाह के अवसर पर गाये जाने वाले गीत।
35.प्रश्न : बीछूड़ो यह हाड़ौती क्षेत्र का लोकप्रिय गीत है।
उतर- एक पत्नी को बिच्छू ने डस लिया है और वह मरने से पहले अपने पति को दूसरा विवाह करने का संदेश देती है- मैं तो मरी होती राज, खा गयो बैरी बीछूड़ो।
36.प्रश्न : मूमल
उतर- जैसलमेर में गाया जाने वाला शृगारिक गीत जिसमें मूमल के नख-शिख का वर्णन किया गया है- म्हारी बरसाले री मूमल, हालौनी एै आलीजे रे देख।
37.प्रश्न : मोरिया
उतर- इस सरस लोकगीत में ऐसी नारी की व्यथा है जिसका सम्बन्ध तो हो चुका है किंतु विवाह होने में देर हो रही है। इसे रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया जाता है।
38.प्रश्न : रसिया
उतर- ब्रज क्षेत्र में रसिया गाया जाता है।
39.प्रश्न : रातीजगा विवाह,
उतर- पुत्र जन्मोत्सव, मुण्डन आदि शुभ अवसरों पर रात भर जागकर भजन गाये जाते हैं जिन्हें रातीजगा कहा जाता है।
40.प्रश्न : लांगुरिया
उतर- करौली क्षेत्र में कैला देवी के मंदिर में हनुमानजी को सम्बोधित करके लांगुरिया गाये जाते हैं।
41.प्रश्न : लावणी
उतर- नायक द्वारा नायिका को बुलाने के लिये लावणी गाई जाती है- शृगारिक लावणियों के साथ-साथ भक्ति सम्बन्धी लावणियां भी प्रसिद्ध हैं। मोरध्वज, सेऊसंमन, भरथरी आदि प्रमुख लावणियां हैं।
42.प्रश्न : सीठणे
उतर- विवाह समारोह में आनंद के अतिरेक में गाली गीत गाये जाते हैं जिन्हें सीठणे कहते हैं।
43.प्रश्न : सुपणा
उतर- विरहणी के स्वप्न से सम्बन्धित गीत सुपणा कहलाते हैं- सूती थी रंग महल में, सूताँ में आयो रे जंजाल, सुपणा में म्हारा भँवर न मिलायो जी।
44.प्रश्न : सूंवटिया
उतर- यह विरह गीत है। भील स्त्रियाँ पति के वियोग में सूंवटिया गाती हैं।
45.प्रश्न : हरजस
उतर- भगवान राम और भगवान कृष्ण को सम्बोधित करके सगुण भक्ति लोकगीत गाये जाते हैं जिन्हें हरजस कहा जाता है।
46.प्रश्न : हिचकी
उतर- ऐसी मान्यता है कि प्रिय के द्वारा स्मरण किये जाने पर हिचकी आती है। अलवर क्षेत्र में हिचकी ऐसे गाई जाती है- म्हारा पियाजी बुलाई म्हानै आई हिचकी।
47.प्रश्न : हींडो
उतर- श्रावण माह में झूला झूलते समय हींडा गाया जाता है- सावणियै रौ हींडौ रे बाँधन जाय।
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राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान के लोकवाद्य
25.12.2021
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 243
राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : राजस्थान के लोकवाद्य
5. प्रश्न- बकरे की आंत का प्रयोग किस वाद्ययंत्र में होता है?
सारंगी के तार बकरे की आंत से बनते हैं।
6.प्रश्न- घोड़े की पूंछ के बाल का प्रयोग किस वाद्ययंत्र में होता है? घोड़े की पूंछ के बाल सारंगी के गज में बंधे होते हैं। कमायचा में भी इसका प्रयोग होता है।
7.प्रश्न- अलगोजा में कितनी नलियां होती हैं?
दो।
8. प्रश्न- अलगोजा कौनसी जातियों का वाद्ययंत्र है?
भील एवं कालबेलिया जनजातियों का।
9. प्रश्न- तूंबे का प्रयोग कौनसा वाद्ययंत्र बनाने में होता है?
इकतारा बनाने में।
10.प्रश्न- तंदूरे का दूसरा नाम क्या है?
चौतारा।
11. प्रश्न- सारंगी का प्रयोग कौनसी जातियां करती हैं?
सारंगी लंगा समुदाय की विशेष पहचान है। मिरासी, जोगी, मांगणियार आदि कलाकार भी सारंगी के साथ ही गाते हैं।
12. प्रश्न- पाबूजी के भोपे तथा डूंगजी जवारजी के भोपे किस वाद्ययंत्र का प्रयोग करते हैं?
रावणहत्था।
13. प्रश्न- दो मोर तथा नौ मोरनियां किस वाद्ययंत्र में होती हैं?
कमायचा में।
राजस्थान के प्रमुख लोकवाद्यों का परिचय
14. प्रश्न- अलगोजा
यह सुषिर अर्थात् फूंक वाद्य है तथा बांसुरी की तरह होता है। इसमें बांस की दो नलियां होती हैं। नली में 4 से 7 छेद किये जाते हैं। वादक दोनों नलियों को एक साथ मुँह में रखकर बजाता है। एक नली पर स्वर कायम किया जाता है तथा दूसरी नली पर स्वर बजाये जाते हैं। इसे भील एवं कालबेलिया जनजातियों द्वारा बजाया जाता है।
15. प्रश्न- इकतारा
गोल तूंबे में एक बांस फंसा देते हैं। तूंबे का ऊपरी हिस्सा काटकर उस पर चमड़ा मंढ़ देते हैं। बांस में छेद करके उसमें खूंटी लगाते हैं तथा एक तार कस दिया जाता है।
16. प्रश्न- कमायचा
यह दो-ढाई फुट लम्बा ईरानी वाद्ययंत्र है जो सारंगी की तरह दिखता है तथा गज की सहायता से बजता है। यह रोहिड़ा या आक की लकड़ी से बनता है जिसके तार बकरी की आंतों को सुखा कर बनाये जाते हैं तथा घोड़े के बालों का भी इस हेतु उपयोग किया जाता है। इस वाद्ययंत्र में दो मोर तथा नौ मोरनियां होती हैं तथा एक तार से लेकर चार तारों तक का उपयोग किया जाता है। इसकी तबली थोड़ी मोटी होती है तथा चमड़े से ढंकी हुई होती है। बाड़मेर तथा जैसलमेर जिलों में इसका प्रयोग बहुतायत से होता है।
17.प्रश्न- खंजरी
यह ढप का लघु रूप है। ढप की तरह इस पर भी चमड़ा मंढ़ा होता है। इसे कामड़, भील, कालबेलिया आदि बजाते हैं।
18. प्रश्न- खड़ताल
लकड़ी की चार पट्टिकाओं को खड़ताल कहते हैं। भजनों में बजाया जाने वाले करताल का यह देशज रूप है। इसे दोनों हाथों की अंगुलियों में दो-दो पट्टिकाओं को रखकर बजाया जाता है।
19. प्रश्न- चंग यह ताल वाद्य लकड़ी के गोल घेरे से बना होता है। एक तरफ बकरे की खाल मंढ़ी जाती है। यह दोनों हाथों से बजता है। इसे ढप भी कहते हैं। इसे होली पर बजाते हैं।
20.प्रश्न- डैंरू
यह डमरू का बड़ा रूप है। यह आम की लकड़ी का बनता है। दोनों तरफ बारीक चमड़ा मंढ़ कर रस्सियों से कसते हैं। एक हाथ से डोरियों पर दबाव डालकर कसा और ढीला छोड़ा जाता है तथा दूसरे हाथ से लकड़ी की पतली डंडी के आघात से बजाया जाता है।
21.प्रश्न- ढोल
लोक वाद्यों में ढोल का प्रमुख स्थान है। यह लोहे अथवा लकड़ी के गोल घेरे पर दोनों तरफ चमड़ा मंढ़ कर बनाया जाता है। इस पर लगी रस्सियों को कड़ियों के सहारे खींचकर इसे कसा जाता है। वादक इसे गले में डालकर लकड़ी के डंडे से बजाता है।
22. प्रश्न- ढोलक
यह एक साधारण वाद्य है। यह ढोल की तरह ही छोटे आकार की होती है। इसके दोनों तरफ चमड़ा मंढ़ा होता है। इस पर लगी डोरियों को कड़ियों से खींचकर कसा जाता है। यह दोनों हाथों से बजाई जाती है तथा एक प्रमुख ताल वाद्य है।
23. प्रश्न- जंतर
यह वाद्य वीणा की तरह होता है। वादक इसको गले में डालकर खड़ा-खड़ा ही बजाता है। वीणा की तरह इसमें दो तूंबे होते हैं। इनके बीच बांस की लम्बी नली लगी होती है। इसमें कुल चार तार होते हैं। यह वाद्य गूजर भोपों में प्रचलित है।
24. प्रश्न- तंदूरा
इसमें चार तार होने के कारण इसे चौतारा भी कहते हैं। यह लकड़ी का बना होता है। कामड़ जाति के लोग तंदूरा ही बजाते हैं। यह तानपूरे से मिलता-जुलता है।
25. प्रश्न- ताशा
तांबे की चपटी परात पर बकरे का पतला चमड़ा मंढ़ा जाता है। इसे बांस की खपच्च्यिों से बजाया जाता है। इस वाद्य को मुसलमान अधिक बजाते हैं।
26. प्रश्न- धौंसा
यह नगाड़े जैसा होता है। इसे घोड़े पर दोनों तरफ रखकर लकड़ी के डंडों से बजाते हैं।
27. प्रश्न- नड़
यह भी सुषिर वाद्ययंत्र है। ढाई फीट लम्बे इस वाद्ययंत्र को कंगोर या कैर की लकड़ी से बनाया जाता है। बांसुरीनुमा नड़ में 4 से 6 छेद होते हैं। ये नीचे की ओर होते हैं।
28. प्रश्न- नगाड़ा
यह दो प्रकार का होता है, एक छोटा तथा दूसरा बड़ा। छोटे नगाड़े के साथ एक नगाड़ी भी होती है। इसे लोकनाट्यों में शहनाई के साथ बजाया जाता है। लोकनृत्यों में नगाड़े की संगत के बिना रंगत नहीं आती। बड़ा नगाड़ा नौबत की तरह का होता है। इसे बम या टामक भी कहते हैं। यह युद्ध के समय बजाया जाता था। नगाड़ा लकड़ी के डंडों से ही बजाया जाता है।
29. प्रश्न- नौबत
धातु की लगभग चार फुट गहरी अर्ध अंडाकार कुंडी को भैंसे की खाल से मंढ़ कर चमड़े की डोरियों से कसा जाता है। इसे लकड़ी के डंडों से बजाया जाता है। इसे प्रायः मंदिरों में या राजा महाराजा के महलों के मुख्य द्वार पर बजाया जाता था।
30.प्रश्न- पुंगी
यह वाद्य एक विशेष प्रकार के तूंबे से बनता है। तूंबे का ऊपरी हिस्सा लंबा और पतला तथा नीचे का हिस्सा गोल होता है। तूंबे के निचले हिस्से में छेद करके दो नलियां लगायी जाती हैं। नलियों में स्वरों के छेद होते हैं। अलगोजे के समान ही एक नली में स्वर कायम किया जाता है और दूसरी से स्वर निकाले जाते हैं। यह कालबेलियों का प्रमुख वाद्य है। 31. बांकिया पीतल का बना यह वाद्य ढोल के साथ मांगलिक अवसरों पर बजाया जाता है। आकृति में यह बड़े बिगुल की तरह होता है। 32. भपंग यह वाद्य कटे हुए तंूबे से बनता है जिसके एक सिरे पर चमड़ा मंढ़ते हैं। चमड़े में एक छेद करके उसमें जानवर की आंत का तार डालकर उसके सिर पर लकड़ी का टुकड़ा बांधते हैं। इसे कांख में दबाकर एक हाथ से तांत को खींचकर या ढीला छोड़कर उस पर दूसरे हाथ से लकड़ी के टुकड़े से प्रहार करते हैं। अलवर क्षेत्र में यह वाद्य काफी प्रचलित है। 33. भूंगल यह भवाई जाति के लोगों का वाद्य है। पीतल का बना यह वाद्य तीन हाथ लंबा तथा बांकिया जैसा होता है। इसे भेरी भी कहते हैं। इसे रणक्षेत्र में भी बजाया जाता है। 34. मशक चमड़े की सिलाई करके बनाये गये इस वाद्य के एक सिरे पर लगी नली से मुँह से हवा भरी जाती है तथा दूसरे सिरे पर लगी अलगोजे नुमा नली से स्वर निकाले जाते हैं। इसके स्वर पुंगी की तरह सुनाई देते हैं। भैंरूजी के भोपों का यह प्रमुख वाद्य है। 35. मांदल मिट्टी से बनी मांदल की शक्ल मृदंग जैसी होती है। इस पर हिरण या बकरे की खाल मंढ़ी होती है। यह आदिवासी भीलों और गरासियों का प्रमुख वाद्य है। 36. मोरचंग मोरचंग मोर की आकृति का होता है तथा लोहे या पीतल से बनता है। इसके मध्य पतला और मजबूत तार होता है। एक सिरा मुंह में रखा जाता है जिसे श्वास की हवा से हवाई स्वर कण्ठ का उपयोग करते हुए दिया जाता है। दूसरे सिरे पर अंगुली से आघात किया जाता है। ग्वारिया जाति के लोग इसे भेड़, बकरी एवं गाय चराते समय बजाते हैं। 37. रावण हत्था रावण हत्था भोपों का मुख्य वाद्य है। बनावट में यह बहुत सरल किंतु स्वर में सुरीला होता है। इसे बनाने के लिये नारियल की कटोरी पर खाल मंढ़ी जाती है जो बांस के साथ लगी होती है। बांस में जगह-जगह खूंटियां लगा दी जाती हैं जिनमें तार बंधे होते हैं। यह वायलिन की तरह गज से बजाया जाता है। एक सिरे पर कुछ घुंघरू बंधे होते हैं। इसे पाबूजी के भोपे तथा डूंगजी जवारजी के भोपे कथा बांचते समय बजाते हैं। 38. शहनाई यह एक मांगलिक वाद्य है। चिलम की आकृति का यह वाद्य शीशम या सागवान की लकड़ी से बनाया जाता है। वाद्य के ऊपरी सिरे पर ताड़ के पत्ते की तूंती बनाकर लगाई जाती है। फूंक देने पर इसमें मधुर स्वर निकलता है। 39. सारंगी राजस्थान में सारंगी के विविध रूप दिखाई देते हैं। लोक कलाकार सारंगी को संगत वाद्य के रूप में बजाते हैं। यह लंगा समुदाय की विशेष पहचान है। उनके अतिरिक्त मिरासी, जोगी, मांगणियार आदि कलाकार भी सारंगी के साथ ही गाते हैं। सारंगी सागवान, कैर तथा रोहिड़ा की लकड़ी से बनती है। सारंगी के तार बकरे की आंत से बनते हैं और गज में घोड़े की पूंछ के बाल बंधे होते हैं।