6. प्रश्न- गैर नृत्य किस क्षेत्र में अधिक होता है?
उतर- मेवाड़, मारवाड़, ढूंढाड़।
7. प्रश्न- जसनाथी सिद्धों का नृत्य कौनसा है?
उतर- अग्नि नृत्य।
8.प्रश्न- बम नृत्य अथवा बमरसिया किस क्षेत्र का है?
उतर- अलवर-भरतपुर क्षेत्र का।
9.प्रश्न- बम नृत्य से क्या तात्पर्य है?
उतर- जिस नृत्य के साथ बम (नगाड़ा) बजता है उसे बम नृत्य कहते हैं।
10. प्रश्न- गरासियों के नृत्य कौनसे हैं?
उतर- मांदल, गरबा, घूमर, गैर व लूर, वालर, कूद नृत्य।
11.प्रश्न- भीलों के नृत्य कौनसे हैं?
उतर- गवरी, राई, गैर, घूमर, नेजा, युद्ध नृत्य आदि।
12. प्रश्न- गूजर जाति का प्रमुख नृत्य कौनसा है?
उतर- चरी नृत्य।
13. प्रश्न- कालबेलियों के नृत्य कौनसे हैं?
उतर- इण्डोणी, शंकरिया, पणिहारी, बागड़िया आदि।
14. प्रश्न- रामदेवजी के भोपे कौनसा नृत्य करते हैं?
उतर- तेरहताली नृत्य।
15. प्रश्न- किन जातियों के नृत्यों में कामुकता अधिक होती है?
उतर- कंजरों, जोगियों, सांसियों और कालबेलियों के नृत्यों में शृगार रस की प्रधानता होती है तथा इनमें खुलापन अधिक होता है। इनके लोकनृत्यों में कामुक संकेतों के साथ अंग प्रदर्शन पर भी जोर दिया जाता है।
17. प्रश्न- गृहस्थों द्वारा कौनसे नृत्य किये जाते हैं?
उतर- पणिहारी, मेंहदी, दीपक नृत्य, टूटिया, गौरी।
18.प्रश्न- राजस्थान के व्यावसायिक नृत्य कौनसे हैं?
उतर- गवरी, राई, गैर, घूमर, नेजा एवं युद्ध नृत्य आदि।
19. प्रश्न- गैर कितने प्रकार की होती है?
उतर- तीन प्रकार की- 1. आंगे-बांगे की गैर, 2. नागी गैर, 3. स्वांगी गैर।
20. प्रश्न- बिन्दौरी किस क्षेत्र का मुख्य लोक नृत्य है?
उतर- झालावाड़ क्षेत्र का। यह एक गैर शैली का नृत्य है। सामान्यतः होली या विवाह उत्सव में किया जाता है। राजस्थान के प्रमुख लोकनृत्यों का परिचय
21. प्रश्न- गैर नृत्य
उतर- गोल घेरे में इस नृत्य की संरचना होने के कारण यह ‘घेर’ और कालांतर में ‘गैर’ कहा जाने लगा। नृत्य करने वालों को ‘गैरिया’ कहते हैं। यह होली के दूसरे दिन से प्रारंभ होता है तथा 15 दिन तक चलता है। उन दिनों में मेवाड़ और मारवाड़ में इस नृत्य की धूम मची रहती है। इस नृत्य को देखने से ऐसा लगता है मानो तलवारों से युद्ध चल रहा हो। इस नृत्य की सारी प्रक्रियाएं और पद संचालन तलवार युद्ध और पटेबाजी जैसी लगती हैं। यह नृत्य वृत्त में होता है और नृत्य करते-करते अलग-अलग मंडल बनाये जाते हैं। यह केवल पुरुषों का नृत्य है। मेवाड़ और बाड़मेर के गैर नृत्य की मूल रचना एक ही प्रकार है किंतु नृत्य की लय, चाल और मण्डल में अंतर होता है। इस नृत्य में जाट, ठाकुर, पटेल, पुरोहित, माली, मेघवाल आदि सभी जातियों के पुरुष भाग लेते हैं। नर्तक सफेद धोती, सफेद अंगरखी तथा सिर पर लाल अथवा केसरिया रंग की पगड़ी बांधते हैं। जालोर आदि क्षेत्रों में नर्तक फ्रॉक जैसी आकृति का एक घेरदार लबादा पहनते हैं तथा कमर में तलवार बांधने के लिये पट्टा भी धारण करते हैं। गैर नृत्य तीन प्रकार के होते हैं- (1.) आंगे-बांगे की गैर- इसे आंगी की गैर भी कहते हैं। इसमें प्रत्येक नर्तक चालीस मीटर के कपड़े से बनी आंगी व बागा पहनता है। कपड़े का रंग सफेद और लाल होता है। नर्तक दोनों हाथों में रोहिड़े या बबूल की डण्डियां लिये हुए ढोल की थाप पर घूमते हुए अपनी डण्डियां आजू-बाजू के नर्तकों की डण्डियों से टकराते हैं। (2.) नागी गैर- इसे सादी गैर भी कहते हैं। यह दो प्रकार की होती है। (अ.) डण्डियों वाली गैर- इसमें नर्तक परम्परागत वेशभूषा धारण करते हैं। धोती, कुर्ता पूठिया इसकी विशेष पहचान है। पैरों में आठ-आठ किलो के घुंघरू पहनकर नृत्य करते हैं। (ब.) रूमाल वाली गैर- नर्तक हाथों में डण्डियों की जगह रंग-बिरंगे रूमाल रखते हैं तथा ढोल की थाप पर लहराते हुए नृत्य करते हैं। (3.) स्वांगी गैर- नर्तक हाथ में डण्डियां लेकर नृत्य करते हैं। प्रत्येक नर्तक अलग-अलग वेशभूषा में माली, सेठ, सरदार, साधु, आदि का रूप धारण करते हैं।
22. प्रश्न- गींदड़ नृत्य
उतर- यह शेखावाटी का लोकप्रिय नृत्य है। सुजानगढ़, चूरू, रामगढ़, लक्ष्मणगढ़, सीकर और उसके आसपास के क्षेत्रों में होली के दिनों में इस नृत्य के सामूहिक कार्यक्रम आयोजित होते हैं। नगाड़ा इस नृत्य का मुख्य वाद्य होता है। नर्तक अपने हाथों में छोटे डण्डे लिये हुए होते हैं। नगाड़े की ताल के साथ इन डंडों को परस्पर टकराकर नर्तक नाचते हैं। जैसे-जैसे नृत्य गति पकड़ता है, नगाड़े की ध्वनि भी तीव्र होती है। इस नृत्य में विभिन्न प्रकार के स्वांग भी बनाये जाते हैं जिनमें साधु, शिकारी, सेठ-सेठानी, डाकिया, दुल्हा, दुल्हन आदि प्रमुख हैं।
23.प्रश्न- चंग नृत्य
उतर- यह पुरुषों का नृत्य है। इस नृत्य में प्रत्येक पुरुष के साथ चंग (डफ) होता है और वह चंग बजाता हुआ वृत्ताकार में नृत्य करता है। इसमें बांसुरी का प्रयोग भी होता है। इस नृत्य में धमाल तथा होली के गीत गाये जाते हैं। नर्तक गोल घेरे में चंग बजाता हुआ एक लय के साथ आगे बढ़ता है और चंग बजाता हुआ अपने स्थान पर चक्कर खाता है। इस नृत्य में अंग संचालन देखने योग्य होता है। यह मारवाड़ तथा शेखावाटी क्षेत्र का नृत्य है। नर्तक चूड़ीदार पायजामा-कुर्ता धारण करते हैं। कमर में रूमाल तथा पांवों में घुंघरू बांधे जाते हैं।
24. प्रश्न- डांडिया
उतर- यह मारवाड़ का लोकप्रिय नृत्य है। यों तो गैर, गींदड़ और डांडिया तीनों ही नृत्य वृत्ताकार हैं और इनमें डण्डी का प्रयोग होता है, तीनों ही नृत्य होली के अवसर पर आयोजित होते हैं और इनमें केवल पुरुष ही भाग लेते हैं किंतु पद संचालन, भाव भंगिमा, ताल, गीत और वेशभूषा आदि में तीनों ही अलग-अलग हैं। इस नृत्य में पुरुषों की टोली हाथ में लंबी छड़ियां लेकर नाचती है। इसमें शहनाई और नगाड़ा बजाया जाता है। नर्तक आपस में डांडिया टकराते हुए नृत्य करते हैं। होली के बाद आरंभ होने वाले इस नृत्य में नर्तक राजा-रानी, राम-सीता, शिव-पार्वती, कृष्ण-राधा आदि का वेश धरकर नृत्य करते हैं।
25. प्रश्न- ढोल नृत्य
उतर- यह जालोर का प्रसिद्ध नृत्य है। यह पुरुषों द्वारा ही किया जाता है। इसमें एक साथ चार या पाँच ढोल बजाये जाते हैं। इसमें पहले मुखिया ढोल बजाता है फिर अन्य नर्तक मुँह में तलवार, हाथों में डण्डे तथा रूमाल लेकर नृत्य करते हैं। यह नृत्य प्रायः विवाह के अवसर पर किया जाता है। नृत्य के दौरान ढोल को थाकना शैली में बजाया जाता है। थाकना के बाद अलग शैलियों में भी ढोल वादन होता है। यह नृत्य ढोली, माली, सरगरा तथा भील आदि जातियों में अधिक होता है।
26. प्रश्न- अग्नि नृत्य
उतर- धधकते हुए अंगारों पर किया जाने वाला यह नृत्य जसनाथी संप्रदाय के सिद्ध लोग करते हैं। इसका उद्गम क्षेत्र बीकानेर जिले का कतरियासर ग्राम माना जाता है। यह नृत्य रात्रि में आयोजित होता है। इस नृत्य में नर्तक अंगारों के ढेर में प्रवेश करते हैं और नाचते हुए निकलते हैं। इतना ही नहीं नर्तक अंगारों को हाथ में उठा लेते हैं तथा मुँह में भी डाल लेते हैं। कभी-कभी अंगारों को झोली में भरकर नाना प्रकार के करतब किये जाते हैं। नर्तक अग्नि से इस प्रकार खेलते हैं मानो अंगारों से नहीं फूलों से खेल रहे हों। यह नृत्य भी पुरुषों द्वारा ही किया जाता है।
27. प्रश्न- बमरसिया
उतर- यह अलवर और भरतपुर क्षेत्र का नृत्य है। इसमें एक बड़े नगाड़े का प्रयोग होता है जिसे दो आदमी डंडों से बजाते हैं। नर्तक रंग-बिरंगे फूंदों तथा पंखों से बंधी लकड़ी हाथों में लेकर हवा में उछालते हुए नाचते हैं। वाद्ययंत्रों में नगाड़े के अलावा थाली, चिमटा, ढोलक, मंजीरा और खड़तालों का प्रयोग किया जाता है। नृत्य के साथ होली के गीत और रसिया गाया जाता है। बम (नगाड़े) के साथ रसिया गाने से इसे बम रसिया कहते हैं। इस नृत्य को नयी फसल आने की प्रसन्नता में किया जाता है। बम नृत्य के दौरान गिलास के ऊपर थाली रखकर बजायी जाती है।
28. प्रश्न- घूमर नृत्य
उतर- यह समूचे राजस्थान का लोकप्रिय नृत्य है। यह नृत्य मांगलिक अवसरों तथा पर्वों पर आयोजित होता है। यह महिलाओं का नृत्य है। स्त्रियाँ जब आकर्षक पोशाकें विशेषकर घुमावदार घाघरा पहनकर तथा चक्कर लेकर गोल घेरे में नृत्य करती हैं तो उनके लहंगों का घेर और हाथों का लचकदार संचालन देखते ही बनता है। घूमर के साथ अष्टताल कहरवा लगाया जाता है जिसे सवाई कहते हैं। इसे अनेक घूमर गीतों के साथ मंच पर भी प्रस्तुत किया जाता है।
29.प्रश्न- तेरहताली
उतर- यह कामड़ जाति का अनोखा नृत्य है। यह नृत्य बैठकर किया जाता है। इसमें स्त्रियां अपने हाथ-पैरों में मंजीरे बांध लेती हैं और फिर दोनों हाथों से डोरी से बंधे मंजीरों को दु्रतगति की ताल और लय से शरीर पर बंधे मंजीरों पर प्रहार करती हुई विविध प्रकार की भाव-भंगिमायें प्रदर्शित करती हैं। यह चंचल और लचकदार नृत्य देखते ही बनता है। पुरुष तंदूरे की तान पर मुख्यतः रामदेवजी के भजन गाते हैं।
30.प्रश्न- भवाई नृत्य
उतर- यह नृत्य अपनी चमत्कारिता के लिये अधिक प्रसिद्ध है। इस नृत्य में विभिन्न शारीरिक करतब दिखाने पर अधिक बल दिया जाता है। यह उदयपुर संभाग में अधिक प्रचलित है। अनूठी नृत्य अदायगी, शारीरिक क्रियाओं के अद्भुत चमत्कार तथा लयकारी विविधता इसकी मुख्य विशेषतायें हैं। तेज लय में सिर पर सात-आठ मटके रखकर नृत्य करना, जमीन से मुँह से रूमाल उठाना, गिलासों पर नाचना, थाली के किनारों पर, तलवार की धार पर, कांच के टुकड़ों पर और नुकीली कीलों पर नृत्य करना इस नृत्य की विशेषतायें हैं।
31. प्रश्न- घुड़ला नृत्य
उतर- यह मुख्यतः मारवाड़ में तथा अल्प मात्रा में सम्पूर्ण राजस्थान में किया जाता है। यह स्त्रियों के द्वारा किया जाने वाला सामूहिक नृत्य है। स्त्रियां छिद्र युक्त मटके सिर पर रखकर उसमें दिये जलाती हैं। नृत्य के दौरान घूमर तथा पणिहारी के अंदाज में गोल चक्कर बनाया जाता है। यह नृत्य गणगौर पर्व के आसपास किया जाता है।
32. प्रश्न- कच्छी घोड़ी नृत्य
उतर- यह शेखावाटी क्षेत्र का नृत्य है किंतु अब सम्पूर्ण प्रदेश में किया जाता है। इस नृत्य में पुरुष ही भाग लेते हैं। नर्तक बांस की टोकरियों को घोड़ी की आकृति देता है तथा उस पर घोड़े की आकृति का कपड़े का खोल चढ़ा दिया जाता है। नर्तक इसके बीच में से घुसकर खड़ा होकर नृत्य करता है। देखने वाले को लगता है कि नर्तक घोड़ी पर बैठा है।
33. प्रश्न- वालर नृत्य
उतर- यह गरासियों का नृत्य है। गणगौर के दिनों में गरासिया स्त्री-पुरुष अर्द्धवृत्ताकार में धीमी गति से बिना किसी वाद्य के नृत्य करते हैं। यह डूंगरपुर, उदयपुर, पाली व सिरोही क्षेत्रों में प्रचलित है।
34. प्रश्न- लांगुरिया नृत्य
उतर- लांगुरिया हनुमानजी का लोक स्वरूप है। करौली क्षेत्र की कैला मैया, हनुमानजी की माँ अंजना का अवतार मानी जाती हैं। नवरात्रियों के दिनों में करौली क्षेत्र में लांगुरिया नृत्य होता है। इसमें स्त्री-पुरुष सामूहिक रूप से भाग लेते हैं। नृत्य के दौरान नफीरी तथा नौबत बजती है। लांगुरिया को संबोधित करके हल्के-फुल्के हास्य-व्यंग्य किये जाते हैं।
35.प्रश्न- इण्डोणी
उतर- यह कालबेलियों का युगल नृत्य है जो गोल घेरे में होता है। इसमें पुंगी तथा खंजरी का प्रयोग होता है। नर्तक युगल कामुकता का प्रदर्शन करने वाले कपड़े पहनते हैं।
36. प्रश्न- मांदल
उतर- यह कोटा क्षेत्र का नृत्य है। इसे गरासिया जाति की स्त्रियां गोल घेरा बनाकर करती हैं। इस पर गुजराती गरबे का प्रभाव है। इसमें थाली व बांसुरी का प्रयोग होता है।
37. प्रश्न- गवरी नृत्य
उतर- यह भीलों का सामाजिक एवं धार्मिक नृत्य है। डूंगरपुर-बांसवाड़ा, उदयपुर, भीलवाड़ा एवं सिरोही आदि क्षेत्रों में अधिक प्रचलित है। यह गौरी पूजा से सम्बद्ध होने के कारण गवरी कहलाता है। इसमें नृतक नाट्य कलाकारों की भांति अपनी साज-सज्जा करते हैं।
38. प्रश्न- डांग नृत्य
उतर- यह मेवाड़ के नाथद्वारा क्षेत्र में किया जाने वाला नृत्य है। इसे स्त्री-पुरुष साथ-साथ करते हैं। पुरुषों द्वारा भगवान श्रीकृष्ण की एवं स्त्रियों द्वारा राधाजी की नकल की जाती है तथा वैसे ही वस्त्र धारण किये जाते हैं। यह होली के अवसर पर किया जाता है। इस नृत्य के समय ढोल, मांदल तथा थाली आदि वाद्यों का प्रयोग किया जाता है।
39.प्रश्न- पणिहारी
उतर- यह कालबेलियों का नृत्य है जिसमें स्त्री एवं पुरुष दोनों मिलकर नृत्य करते हैं। इस समय पणिहारी गीत गाये जाते हैं।
40. प्रश्न- शंकरिया यह भी कालबेलियों का युगल नृत्य है। यह प्रेम कथाओं को आधार बनाकर किया जाता है। इस नृत्य का अंग उतर- लास्य कामुकता से भरा होता है।
41. प्रश्न- बागड़िया
उतर- यह नृत्य कालबेलिया स्त्रियों द्वारा भीख मांगते समय किया जाता है। साथ में चंग बजाया जाता है।
42. प्रश्न- नेजा नृत्य
उतर- यह नृत्य होली के तीसरे दिन भील स्त्री-पुरुषों द्वारा युगल रूप में किया जाता है। पाली, सिरोही, उदयपुर एवं डूंगरपुर आदि जिलों में यह अधिक प्रचलित है।
43. प्रश्न- युद्ध नृत्य
उतर- इस नृत्य में भील जाति के पुरुष हाथ में तलवार लेकर युद्ध कला का प्रदर्शन करते हैं। यह नृत्य उदयपुर, पाली, सिरोही व डूंगरपुर क्षेत्र में अधिक प्रचलित है।