भरतपुर ने अंग्रेजों को हिन्दुस्तानी तलवार का पानी पिलाया
1757 की प्लासी विजय के बाद से ईस्ट इण्डिया कम्पनी अपनी विजय पताका फहराते हुए बंगाल से उत्तर भारत की ओर बढ़ रही थी। उत्तरी भारत में उन्हें मराठों से लोहा लेना पड़ा था जो इस पूरे क्षेत्र
सालिमसिंह के अत्याचारों से तंग होकर पालीवाल ब्राह्मणों ने जैसलमेर छोड़ दिया
पल्लिका नगर के रहने वाले ब्राह्मण पालीवाल ब्राह्मण कहलाये। पल्लिका को अब पाली के नाम से जाना जाता है। पालीवाल ब्राह्मणों का बड़ा ही सम्पन्न समुदाय था। तेरहवी
19 वीं सदी के प्रथम दशक में भारत की देशी रियासतें एक ओर तो परस्पर युद्धों, जागीरदारों के झगड़ों तथा उत्तराधिकार के षड़यंत्रों में उलझी हुई थीं तथा दूसरी तरफ मराठों, फ्रैंच सेनाओं, पिण्डारियों, सिंधी मुसलमानों और पठानों के आक्रमणों से जर्जर हो रही थीं।
कर्नल जेम्स टॉड का जन्म 20 मार्च 1782 को इंगलैण्ड के इंग्लिस्टन नामक स्थान पर हुआ था। उसके किसी पूर्वज ने स्कॉटलैण्ड के राजा रॉबर्ट दी ब्रूस के बच्चों को इंगलैण्ड के राजा की कैद से छुड़ाया था इस कारण टॉड परिवार को नाइटबैरोनेट की उपाधि तथ लोमड़ी का चिह्न धारण करने का अधिकार मिला हुआ था।
1805 से लेकर 1817 तक पूरे 12 वर्ष की अवधि में कर्नल टॉड ने लगभग पूरा राजपूताना देख लिया था। उस काल में राजपूताने के भूगोल, इतिहास तथा राजपूताने की राजनीतिक परिस्थितियों की जितनी जानकारी कर्नल टॉड को थी, उतनी ईस्ट इण्डिया कम्पनी में किसी अन्य अधिकारी को नहीं थी।
भरतपुर के घेरे में अंग्रेजों से 32 हजार रुपये की रिश्वत खाकर जसवंतराव होलकर को अंग्रेजों को सौंप देने का वचन देने वाला अमीरखां अब भी होलकर की सेना में घुड़सवार सेना का प्रधान बना हुआ था। इतना ही नहीं उसने होलकर से सिरोंज की जागीर भी हथिया ली थी। ईस्वी 1810 में अमीर खां नागपुर के मोर्चे प
झाला जालिम सिंह 21 वर्ष की आयु से कोटा राज्य की रक्षा और सेवा करता आ रहा था। ईस्वी 1764 में उसने कोटा को जयपुर के दांतों में पिस जाने से बचाया था। महाराव शत्रुशाल (द्वितीय) झाला जालिमसिंह पर जान छिड़कते थे। यही कारण था कि सामंत लोग ईष्यावश जालिमसिंह के विरुद्ध महाराव गुमानसिंह के कान भरा
जब कोटा का महाराव किशोरसिंह अपने आदमियों पृथ्वीसिंह तथा गोरधन दास को साथ लेकर कोटा से रंगबाड़ी चला गया और वहाँ से जालिमसिंह पर हमला करने की तैयारियां करने लगा तो पोलिटिकल एजेण्ट ने जालिमसिंह से पूछा कि अब वह क्या करेगा?
इस पर जालिमसिंह ने उत्तर दिया कि मैं नाथद्वारा जाकर सन्य
अंग्रेजों के भारत में आगमन के समय मेवाड़ राजवंश धरती भर के राजवशों में सबसे पुराना था। डूंगरपुर, बांसवाड़ा, प्रतापगढ़ और शाहपुरा राज्य भी पहले मेवाड़ के ही हिस्से थे। महाराणा सामंतसिंह के वंशजों ने बारहवीं शताब्दी में वागड़ राज्य की स्थापना की थी। इसकी राजधानी वटपद्रक थी जो बड़ौदा कहल
राजपूताने और गुर्जरात्रा की सीमाओं पर चौहानों की एक पुरानी और प्रसिद्ध रियासत सिरोही के नाम से जानी जाती थी। सिरोही का अर्थ होता है- शीश काटने वाली अर्थात् तलवार। सिरोही राज्य का क्षेत्रफल 1,994 वर्ग मील था। सिरोही का राजवंश देवड़ा चौहानों के नाम से प्रसिद्ध था।