कैबीनेट मिशन भारत को आजादी देने का सर्वसम्मत फार्मूला ढूंढने के लिये भारतीय राजाओं से वार्ता कर रहा था। दल के सदस्य स्टैफर्ड क्रिप्स का मानना था कि तकनीकी रूप से कैसी भी स्थिति हो किंतु जिस दिन आजाद भारत की नयी सरकार को सत्ता का हस्तांतरण किया जाये उससे पहले, ब्रिटिश भारत तथा रियासती भारत के मध्य वर्तमान में चल रही आर्थिक व्यवस्थाओं को यकायक भंग हो जाने से बचाने के लिये कोई व्यवस्था की जानी चाहिये। ऐसा व्यवधान राज्यों और ब्रिटिश भारत दोनों के लिये हानिकारक होगा तथा इसे देशी राज्यों के विरुद्ध लीवर के रूप में प्रयुक्त किया जायेगा। यह वार्तालाप मिशन द्वारा जाम साहब की इस प्रार्थना की स्वीकृति के साथ समाप्त हुआ कि जब ब्रिटिश भारत के भविष्य का प्रारूप निर्धारित हो जाये तब राज्यों के प्रतिनिधियों के साथ एक बार फिर से विचार विमर्श किया जाये।
कैबीनेट मिशन द्वारा छोटे राज्यों के प्रतिनिधियों- डूंगरपुर एवं बिलासपुर के शासकों के साथ 4 अप्रेल 1946 को साक्षात्कार किया गया। डूंगरपुर के शासक ने कहा कि भारत में केवल आधा दर्जन देशी राज्य ही ऐसे हैं जो ब्रिटिश भारत के प्रांतों की तुलना के समक्ष खड़े रह सकते हैं। इसलिये यह आवश्यक है कि छोटे राज्यों को अपनी प्रभुसत्ता बचाने के लिये क्षेत्रीयता एवं भाषा के आधार पर मिलकर बड़ी इकाई का निर्माण कर लेना चाहिये। छोटे राज्यों को भय है कि बड़े राज्य उन्हें निगल जाना चाहते हैं। छोटे राज्य संतोषजनक गारंटी चाहते हैं। यह सुझाव गलत है कि छोटे राज्यों का कोई भविष्य नहीं है। वे बड़े राज्यों से भी अधिक बलिदान देने को तैयार हैं। उन्होंने सुझाव दिया कि हैदराबाद, कश्मीर तथा मैसूर को छोड़कर शेष राज्यों को 9 क्षेत्रीय इकाईयों में विभक्त किया जाये। बिलासपुर के राजा ने कहा कि प्रत्येक राज्य को उसकी पुरानी आजादी पुनः लौटा दी जानी चाहिये तथा उसे अपनी मनमर्जी के अनुसार कार्य करने के लिये छोड़ दिया जाना चाहिये।
कैबीनेट मिशन के सदस्यों द्वारा त्रावणकोर के दीवान सर सी. पी. रामास्वामी से 9 अप्रेल को साक्षात्कार किया गया। रामास्वामी ने कहा कि परमोच्चसत्ता किसी उत्तराधिकारी सरकार को स्थानांतरित नहीं की जानी चाहिये। अंतरिम काल में परमोच्चता का संरक्षण किया जाना चाहिये किंतु यदि कोई विवाद न हो तो राजनीतिक विभाग के तंत्र को पुनरीक्षित किया जाना चाहिये। सर सी. पी. रामास्वामी का विश्वास था कि 601 राज्य भविष्य के भारत में प्रभावी इकाई नहीं हो सकेंगे। छोटे राज्यों को बता दिया जाना चाहिये कि या तो वे स्वयं अपने आप समूह बना लें या फिर उन्हें अपने भाग्य पर छोड़ दिया जायेगा।
हैदराबाद के प्रतिनिधि ने मांग की कि ईस्ट इण्डिया कम्पनी द्वारा छीनी गयी सीमाओं को फिर से हैदराबाद को लौटा दिया जाना चाहिये तथा उसे समुद्र तक का स्वतंत्र मार्ग दिया जाना चाहिये। जयपुर के दीवान मिर्जा इस्माइल ने अपने साक्षात्कार का बड़ा भाग इस विषय पर खर्च किया कि कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के भेद कैसे दूर हो सकते हैं! उन्होंने जोर दिया कि भारतीय शासक परिवारों को बनाये रखना चाहिये क्योंकि वे भारत की संस्कृति और सभ्यता का हिस्सा हैं। ब्रिटिश सरकार को भारत की समस्त समस्याओं को सुलझाये बिना ही भारत छोड़ देना चाहिये।
मोटे तौर पर कहा जा सकता है कि राज्यों के प्रतिनिधियों से वार्ता के उपरांत यह बात सामने आयी कि परमोच्चसत्ता उत्तराधिकारी सरकार को स्थानांतरित नहीं की जानी चाहिये, उसे समाप्त कर दिया जाना चाहिये। देशी राज्यों पर, भविष्य में बनने वाले संघ अथवा संघों में से किसी एक में मिलने के लिये दबाव नहीं डाला जाना चाहिये। राज्यों के शासक चाहें तो राज्यों का महासंघ बनाये जाने पर कोई आपत्ति नहीं की जानी चाहिये। राज्यों के आंतरिक मामलों में ब्रिटिश भारत को हस्तक्षेप करने का कोई अधिकार नहीं होना चाहिये।
इस प्रकार राजाओं ने एक-एक करके अपने पत्ते खोलने आरंभ कर दिये थे। वे समझ गये थे कि अब अंग्रेज देश में नहीं रहेंगे। इसलिये अंग्रेजों की कृपाकांक्षा करने के बजाय इस बात पर ध्यान लगाना अधिक उचित होगा कि कहीं भविष्य में बनने वाला आजाद भारत राजाओं के राज्यों को न निगल जाये। दूसरी तरफ छोटे राजा इस बात को लेकर आशंकित थे कि कहीं बड़े राजा ही उन्हें न निगल जायें। रियासती भारत में अजीब से बेचैनी और कई तरफा घमासान मचने लगा था।
राजाओं और उनके प्रतिनिधियों से निबटने के बाद कैबीनेट मिशन ने कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के नेताओं से भी बात की तथा उनके द्वारा सुझाये गये बिंदुओं पर विचार-विमर्श करने के लिये ने 9 मई 1946 को भोपाल नवाब को फिर से बुलाया। भोपाल नवाब ने इस बात पर असंतोष व्यक्त किया कि भारतीय नेताओं द्वारा दिये गये सुझावों पर बात करने के लिये तो उन्हें बुलाया गया है किंतु देशी राज्यों ने जो सुझाव दिये थे उन पर विचार नहीं किया गया है। इस पर मिशन ने नवाब की शंकाओं का समाधान किया।
12 मई 1946 को कैबीनेट मिशन ने राज्यों के सम्बन्ध में अपनी नीति स्पष्ट करते हुए भोपाल नवाब को एक स्मरणपत्र दिया जिसका शीर्षक ''संधियां एवं परमोच्चता" था। इसे ''12 मई 1946 का स्मरण पत्र" कहा जाता है। भारतीय समाचार पत्रों में इस स्मरण पत्र का प्रकाशन 22 मई को करवाया गया। इसमें कहा गया कि नरेन्द्र मंडल ने पुष्टि कर दी है कि भारत की पूर्ण स्वतंत्रता प्राप्ति की अभिलाषा में भारतीय रियासतें देश के साथ हैं। परमोच्चता समाप्त कर दी जायेगी तथा नयी बनने वाली सरकार या सरकारों को स्थानांतरित नहीं की जायेगी। सम्राट के साथ अपने सम्बन्धों द्वारा रियासतों ने जो अधिकार प्राप्त कर रखे हैं वे आगे नहीं रहेंगे तथा रियासतों ने सम्राट को जो अधिकार सौंप रखे हैं वे उन्हें वापस मिल जायेंगे। भारत से ब्रिटिश सत्ता के हट जाने पर जो रिक्तता होगी उसकी पूर्ति रियासतों को नये सम्बन्ध जोड़कर करनी होगी। भारतीय व्यवस्था में पारस्परिक समझौते के अतिरिक्त किसी भी बुनियाद पर रियासतों के प्रवेश का प्रावधान किये जाने का मंतव्य नहीं है। भारतीय रियासतें उपयुक्त मामलों में बड़ी प्रशासनिक इकाईयां बनाने या उनमें शामिल होने की इच्छा रखती हैं ताकि संवैधानिक योजना में वे उपयुक्त बन सकें और आंग्ल भारत के साथ बातचीत कर सकें।
राज्यों के शासक यह जानकर प्रसन्न हुए कि परमोच्चता समाप्त कर दी जायेगी तथा किसी अन्य सत्ता को स्थानांतरित नहीं की जायेगी। समस्त अधिकार राज्यों को वापस मिल जायेंगे किंतु वे इस प्रस्ताव की प्रशंसा नहीं कर सके क्योंकि परमोच्चता की समाप्ति के बाद राज्यों को अपनी रक्षा के लिये अपने ऊपर ही निर्भर रहना था। लोकतांत्रिक पद्धति से निर्मित शक्तिशाली भारत सरकार उनके व्यक्तिगत शासन को बनाये रखने में क्यों रुचि लेगी? कांग्रेस ने इस स्मरण पत्र तथा उसके प्रभावों पर अधिक ध्यान नहीं दिया।