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  • गोरे भारत से सम्मानजनक पलायन का रास्ता ढूंढने लगे!

     03.06.2020
    गोरे भारत से सम्मानजनक पलायन का  रास्ता ढूंढने लगे!

    हमारी नई वैबसाइट - भारत का इतिहास - www.bharatkaitihas.com

    15 मार्च 1946 को ब्रिटिश प्रधानमंत्री क्लेमेंट एटली द्वारा कैबीनेट मिशन को भारत भेजने की ऐतिहासिक घोषणा की गयी जिसने भारत के 565 राजाओं की भूमिका एवं भारतीय राजनीतिक प्रगति के लिये एक नवीन ध्वनि तथा रेखा निश्चित की। भूतकाल से बिल्कुल उलट, इस बार ब्रिटिश सरकार राजाओं से अपेक्षा कर रही थी कि वे भारत की स्वतंत्रता की प्राप्ति में बाधा न बनें अपितु भागीदारी निभायें। भारत के वायसराय लॉर्ड वेवेल के नाम भेजे एक तार में प्रधानमंत्री एटली ने लिखा कि 'लेबर गवर्नमेंट' वायसराय को नजर अंदाज नहीं करना चाहती किंतु यह अनुभव करती है कि ऐसा दल जो वहीं फैसला कर सके, समझौते की बातचीत को काफी सहारा देगा और हिंदुस्तानियों को यह विश्वास दिलायेगा कि इस बार हम इसे कर दिखाना चाहते हैं।

    सरकार को राजाओं की ओर से आशंका थी कि वे अपनी संप्रभुता की दुहाई देकर एक बार फिर योजना के मार्ग में आ खड़े होंगे। इसलिये उन्होंने राजाओं को पहले ही आश्वासन दे दिया कि सम्राट के साथ उनके सम्बन्धों या उनके साथ की गयी संधियों और समझौतों में दिये गये अधिकारों में उनकी सहमति के बिना कोई परिवर्तन नहीं किया जायेगा। 12 मार्च 1946 के पत्र में लार्ड वेवेल ने इस आश्वासन को दोहराया। इस पत्र में कहा गया कि बातचीत के अतिरिक्त और किसी आधार पर रियासतों को भारतीय ढांचे में मिलाने की योजना बनाने की कोई इच्छा नहीं है। इस प्रकार सत्ता के संवैधानिक हस्तांतरण के विकास क्रम में अंतिम, गंभीरतम और अपेक्षाकृत अधिक विमलमति युक्त परिणाम देने के लिये सम्राट की सरकार के तीन मंत्रियों का मिशन 24 मार्च 1946 को भारत आया।

    इस मिशन के आगमन से राजनीतिक विभाग ने समझ लिया कि अब राज्यों को नये ढांचे में समाहित करने की शीघ्रता करने का समय आ गया है। 25 मार्च को एक प्रेस वार्ता के दौरान लॉर्ड पैथिक लॉरेंस ने कहा कि हम इस आशा से भारत में आये हैं कि भारतीय एक ऐसे तंत्र का निर्माण कर सकें जो सम्पूर्ण भारत के लिये एक संवैधानिक संरचना का निर्माण कर सकें। उनसे पूछा गया कि राज्यों का प्रतिनिधित्व राजाओं के प्रतिनिधि करेंगे या जनता के प्रतिनिधि? इस पर पैथिक लॉरेंस ने जवाब दिया कि हम जैसी स्थिति होगी वैसी ही बनी रहने देंगे। नवीन संरचनाओं का निर्माण नहीं करेंगे।

    प्रेस वार्ता के दौरान लॉर्ड लॉरेंस से पूछा गया कि राज्यों का सहयोग आवश्यक होगा या अनिवार्य? इस पर लॉरेंस ने जवाब दिया कि हमने संवैधानिक संरचना की स्थापना करने वाले तंत्र को बनाने के लिये विचार-विमर्श करने हेतु राज्यों को आमंत्रित करने की योजना बनायी है। यदि मैं आपको रात्रि के भोजन पर आमंत्रित करता हूँ तो आपके लिये वहाँ आना अनिवार्य नहीं है।

    यह निश्चय किया गया कि कैबीनेट मिशन रियासती भारत के कुछ निश्चित प्रतिनिधियों से ही भेंट करेगा। सबसे पहले वह नरेन्द्र मण्डल के चांसलर से भेंट करेगा। इसके बाद मध्यम आकार की रियासतों के प्रतिनिधि के रूप में आने वाले पटियाला, बीकानेर तथा नवानगर के शासकों से संयुक्त रूप से भेंट करेगा। मिशन लघु राज्यों के प्रतिनिधि के रूप में आने वाले डूंगरपुर तथा बिलासपुर के शासकों से संयुक्त रूप से मुलाकात करेगा तथा हैदराबाद के प्रतिनिधि के रूप में नवाब छतारी, त्रावणकोर के प्रतिनिधि सर सी. पी. रामास्वामी अय्यर एवं जयपुर के प्रतिनिधि मिर्जा इस्माइल से अलग-अलग साक्षात्कार करेगा।

    राजाओं से मुलाकातों का दौर पूरा कर लेने के बाद इस मिशन को कांग्रेस तथा मुस्लिम लीग के प्रतिनिधियों से माथा खपाना था। इस प्रकार अब अंग्रेज भारत से अपने सम्मान जनक पलायन का फार्मला ढूंढने लगे। इस सुझाव पर कि मिशन को भारत के देशी राज्यों की जनता के प्रतिनिधियों से भी साक्षात्कार करना चाहिये, न तो भारत सरकार के राजनीतिक विभाग ने सहमति दी, न ही नरेन्द्र मण्डल के चांसलर सहमत हुए, न ही मिशन ने इस प्रश्न पर जोर दिया।

    2 अप्रेल 1946 को कैबिनेट मिशन तथा वायसराय के साथ साक्षात्कार के दौरान नरेन्द्र मण्डल के चांसलर नवाब भोपाल ने स्पष्ट कर दिया कि देशी राज्य अपनी अधिकतम प्रभुसत्ता के साथ अपने अस्तित्व को कायम रखना चाहते हैं। वे अपने आंतरिक मामलों में ब्रिटिश भारत का कोई हस्तक्षेप नहीं चाहते। उन्होंने सलाह दी कि साइमन कमीशन की रिपोर्ट के आधार पर भारतीय राज्यों तथा ब्रिटिश भारत प्रांतों का एक प्रिवी कौंसिल बनाया जाना चाहिये। जब भारत में दो राज्यों (भारत एवं पाकिस्तान) का निर्माण हो सकता है तब तीसरे भारत को मान्यता क्यों नहीं दी जा सकती जो कि राज्यों से मिलकर बना हो? कोई भी भारतीय राजा भारत सरकार अधिनियम 1935 में दी गयी संवैधानिक संरचना को स्वीकार नहीं करना चाहता। परमोच्चता भारत सरकार को स्थानांतरित नहीं की जानी चाहिये।

    उसी संध्या को कैबीनेट मिशन ने नरेन्द्र मण्डल की स्थायी समिति के प्रतिनिधियों से बात की जिनमें भोपाल, पटियाला, ग्वालियर, बीकानेर तथा नवानगर के शासक सम्मिलित थे। इस बैठक में लॉर्ड पैथिक लॉरेंस ने कहा कि यदि ब्रिटिश भारत स्वतंत्र हो जाता है तो परमोच्चता समाप्त हो जायेगी तथा ब्रिटिश सरकार भारत में आंतरिक व्यवस्था को बनाये रखने के लिये सैनिक टुकड़ियां नहीं रखेगी। राज्यों को संधि दायित्वों से मुक्त कर दिया जायेगा क्योंकि ब्रिटिश क्राउन संधि दायित्वों के निर्वहन में असक्षम हो जायेगा।

    मिशन ने इस स्थिति को शासकों के समक्ष स्पष्ट कर देना आवश्यक समझा किंतु शासकों ने इस पर कोई जोर नहीं दिया न ही इस विषय पर ब्रिटिश भारतीय नेताओं से बात की क्योंकि उन्हें लगता था कि इसके समर्थन में कोई भी सकारात्मक बयान देने से ब्रिटिश भारतीय नेताओं के साथ किसी भी मंच पर होने वाली उनकी बातचीत में शासकों की स्थिति कमजोर हो जायेगी। अंग्रेजों को स्वाभाविक तौर पर भारतीय राज्यों के साथ लम्बे समय से चले आ रहे सम्बन्धों को बनाये रखने में रुचि थी किंतु ये सम्बन्ध नवीन भारत में राज्यों की स्थिति पर निर्भर होने थे। यदि राज्य अपनी प्रभुसत्ता का समर्पण करते हैं तो ये सम्बन्ध केवल संघ के माध्यम से ही हो सकते थे।

    राज्यों के महासंघ के निर्माण के प्रश्न पर लॉर्ड पैथिक लॉरेंस ने कहा कि मिशन के लिये यह नया विचार है इसलिये वे इस पर विशद गहराई के साथ विचार नहीं कर सकते। यह सुझाव उन्हें रोचक और अच्छा लगा था इसलिये उन्होंने इस सुझाव को पूरी तरह रद्द नहीं किया। क्रिप्स का मानना था कि इससे भौगोलिक समस्याएं पैदा होंगी। नवाब भोपाल ने पूछा कि क्या अंतरिम काल में संधियां बनी रहेंगी? राज्य सचिव ने जवाब दिया कि वे बनी रहेंगी किंतु उनका विचार था कि आर्थिक एवं वित्तीय क्षेत्रों में की गयी संधियां एवं व्यवस्थाएं तथा संचार व्यवस्थाएं आगे तक भी चल सकती हैं तथा बाद में उनका पुनरीक्षण किया जा सकता है।

    भोपाल नवाब का विचार था कि इस सम्बन्ध में अलग से कोई समझौता नहीं था तथा न ही अलग से ऐसा कोई मुद्दा था इसलिये संधियों को विभाजित नहीं किया जा सकता।

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