ई.1860 में अयोध्या प्रसाद ने अजमेर से उर्दू भाषा का साप्ताहिक समाचार पत्र खैरख्वाह खालिक आरम्भ किया। यह आठ पृष्ठों का समाचार पत्र था। यह देश विदेश के विभिन्न समाचारों के साथ राजनैतिक लेख भी प्रकाशित करता था। इसकी गणना 19वीं शताब्दी में राजपूताने के महत्त्वपूर्ण समाचार पत्रों में की जा सकती है। यह ब्रिटिश नीतियों एवं ब्रिटिश जातिभेद की जमकर आलोचना करता था। ईसाई मिशनरियों द्वारा भारतीयों को बलपूर्वक ईसाई बनाने की नीति की भी इस समाचार पत्र ने जमकर भर्त्सना की। इस कारण कुछ समय पश्चात् ही इस समाचार पत्र पर प्रतिबंध लगा दिया गया।
इमदाद साबरी ने लिखा था कि सरकार ने इस अखबार की स्वतंत्र नीति को बुरी दृष्टि से देखा। विद्रोह के बाद से समाचार पत्रों को स्वतंत्रता प्राप्त नहीं थी। इसलिये सरकार ने इसके प्रकाशन को बंद कर दिया। 19वीं शताब्दी में राजपूताना का यह प्रथम ब्रिटिश विरोधी समाचार पत्र था। इस कारण सरकार ने इसे बंद कर दिया। दूसरे पत्रों के बंद होने का कारण आर्थिक था न कि राजनैतिक। इसके सम्पादक अयोध्या प्रसाद अजमेर कॉलेज के विद्यार्थी थे तथा उन्हें अंग्रेजी भाषा का अच्छा ज्ञान था। उनकी भाषा सरल थी जिस पर हिन्दुस्तानी एवं अंग्रेजी का असर था। उन्होंने कुछ पुस्तकें भी लिखी थीं।
राजपूताना अखबार (ई.1869)
जनवरी 1869 में बूटासिंह ने अजमेर से साप्ताहिक समाचार पत्र 'राजपूताना अखबार' आरंभ किया। इसके सम्पादक वजीर अली और संचालक बाबा हीरासिंह थे। यह 12 पृष्ठों में छपता था। इसका वार्षिक चंदा अमीरों से 12 रुपया तथा जन साधारण से 3 रुपये 10 आना लिया जाता था। यह मेयो प्रेस अजमेर में छपता था। इसमें राजपूताना के समाचारों के साथ-साथ विदेशी समाचार पत्रों से भी समाचार लेकर प्रकाशित किये जाते थे।
ऑफिशियल गजट (ई.1869)
जनवरी 1869 में बूटासिंह ने इस साप्ताहिक समाचार पत्र को आरम्भ किया। इसके सम्पादक भी वजीर अली थे। यह केवल चार पृष्ठों का समाचार पत्र था। इसका वार्षिक चंदा 3 रुपये था। इस पत्र में मुख्यतः ऑफिस से सम्बन्धित सूचनाएं प्रकाशित की जाती थीं। राजपूताना अखबार की तरह यह पत्र भी साधारण था किंतु इन दानों पत्रों के प्रकाशन बंद होने के सम्बन्ध में कोई सूचना नहीं मिलती।
रिखाला अन्जुमन रिफाऐ-आम राजपूताना (ई.1873)
रिखाला अन्जुमन रिफाऐ-आम नामक सोसाइटी ने ई.1873 में अजमेर से उर्दू भाषा में 'रिखाला अन्जुमन रिफाऐ-आम राजपूताना' नाम से 80 पृष्ठ का त्रैमासिक समाचार पत्र आरंभ किया। सोसाइटी के सचिव पण्डित भगतराम इसके सम्पादक थे। इसका मुद्रण और लेखन बहुत सुंदर था। कोहेनूर प्रेस लाहौर में इसका मुद्रण होता था। इसका मुख्य उद्देश्य रिखाला अन्जुमन रिफाऐ-आम राजपूताना की कार्यवाहियों पर प्रकाश डालना था। इसमें सामाजिक, धार्मिक एवं उर्दू साहित्य से सम्बन्धित आलेख प्रकाशित होते थे।
चिराग राजस्थान (ई.1875)
मौलवी मुराद अली बीमार ने 29 नवम्बर 1873 को अजमेर से उर्दू भाषा में चिराग राजस्थान आरंभ किया। इसमें 8 पृष्ठ होते थे और इसका वार्षिक चंदा 8 रुपये था। इसमें देश विदेश के समाचार दूसरे पत्रों से लेकर छापे जाते थे।
राजपूताना गजट (ई.1881)
यह साप्ताहिक समाचार पत्र था जिसे मौलवी मुराद अली ने 1881 में अजमेर से उर्दू भाषा में आरम्भ किया। इसमें हिन्दी और उर्दू दोनों भाषाओं में लेख तथा समाचार प्रकाशित किये जाते थे।
मिफ्ता हुल कवानीन (ई.1883)
प्रो. मुंशी नंदकिशोर ने 13 जनवरी 1883 को अजमेर से उर्दू भाषा में यह 16 पृष्ठों की मासिक पत्रिका आरम्भ की। इसके सम्पादक एवं मालिक नंद किशोर थे। इसका वार्षिक चंदा तीन रुपये आठ आना था। यह एक कानूनी पत्रिका थी। इसमें अदालती कार्यवाहियों के फैसले इत्यादि प्रकाशित होते थे।
नालाऐ उश्शाक (ई.1884)
1 नवम्बर 1884 को सैयद नजर सखा और अब्दुल गफूर सखा ने अजमेर से 24 पृष्ठ की यह उर्दू मासिक पत्रिका नालाऐ उश्शाक आरंभ की जिसमें उर्दू साहित्य से सम्बन्धित लेख छपा करते थे। इसका वार्षिक चंदा एक रुपया था। यह सेठ मजीर अली प्रेस अजमेर में छपा करती थी।
दाग (ई.1888)
जनवरी 1888 में माधो प्रसाद भार्गव ने अजमेर से उर्दू भाषा की मासिक पत्रिका दाग का प्रकाशन किया। इसका वार्षिक चंदा एक रुपया था। यह अपनी ही प्रेस में छपती थी। इस पत्रिका में केवल शायरों के कलाम छपते थे।
मोइनुल हिन्द (ई.1893)
ई.1893 में सिकन्दरखां ने अजमेर से 8 पृष्ठों का उर्दू साप्ताहिक समाचार पत्र मोहनुल हिन्द प्रारंभ किया। इसका वार्षिक चंदा 12 रुपये था। इसमें दूसरे समाचार पत्रों से समाचार लेकर प्रकाशित किये जाते थे। इसकी अपनी स्वयं की प्रेस थी।