ई.1905 से 1947 की अवधि में अजमेर में 8 चीफ कमिश्नरों की नियुक्तियां की गईं। भारत सरकार अधिनियम 1935 के तृतीय भाग के प्रभावी होने के बाद 1 अप्रेल 1937 से 'चीफ कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) तथा एजीजी फॉर राजपूताना' का पदनाम बदल कर 'चीफ कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) एवं रेजीडेण्ट इन राजपूताना' कर दिया गया। द्वितीय विश्वयुद्ध (ई.1939-1945) में बड़ी संख्या में अंग्रेज युवक युद्ध के मोर्च पर मारे गये। इस कारण चीफ कमिश्नर एवं एजीजी जैसे बड़े पदों पर भी भारतीय अधिकारियों की नियुक्ति की जाने लगी। ई.1944 में अजमेर में भारतीय प्रशासनिक सेवा का अधिकारी हीरानंद रूपचंद शिवदासानी इस पद पर नियुक्त हुआ।
ई.1905 से 1937 तक चीफ कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) एवं एजीजी फॉर राजपूताना
ले. कर्नल जॉन मैनर्स स्मिथ- 12 नवम्बर 1917 से 21 दिसम्बर 1919
मि. रॉबर्ट अर्सकिन हॉलेण्ड- 22 दिसम्बर 1919 से 6 अगस्त 1925
ले.कर्नल स्टेवर्ट ब्लैकले एग्न्यू पैटरसन- 7 अगस्त 1925 से 13 मार्च 27
लोनार्ड विलियम रेनॉल्ड्स- 14 मार्च 1927 से 27 अक्टूबर 1932
ले. कर्नल जॉर्ज ड्रमण्ड ऑग्लिवी- 28 अक्टूबर 1932 से 31 मार्च 37
ई.1937 से 1947 तक चीफ कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) एवं रेजीडेण्ट इन राजपूताना
ले.कर्नल जॉर्ज ड्रमण्ड ऑग्लिवी- 1 अप्रेल 1937 से 27 अक्टूबर 1937
सर आर्थर कनिंघम लोठियान- 28 अक्टूबर 1937 से ई.1944
हीरानंद रूपचंद शिवदासानी- ई.1944 से ई.1947
इकतालीस साल में सैंतालीस कमिश्नर
ई.1896 से ई.1937 तक अजमेर-मेरवाड़ा के कमिश्नरों को तेजी से बदला गया। 41 वर्ष की अवधि में अजमेर में 47 अधिकारियों ने कमिश्नर के पद पर कार्य किया। इस दौरान आधी से अधिक अवधि में कनिष्ठ अधिकारियों ने कार्यवाहक कमिश्नर के पद पर कार्य किया। यह एक शर्मनाक स्थिति थी। इसके कारण अजमेर का प्रशासन निरंतर पिछड़ता चला गया। प्रशासन के अनुभव से रहित कम आयु के अंग्रेज लड़के इस पद पर आते और कुछ दिन अजमेर में रहकर या तो अवकाश पर चले जाते या फिर पदोन्नत होकर अन्यत्र चले जाते। यही कारण है कि ई.1905 से ई.1937 तक 32 साल की संक्षिप्त अवधि में अजमेर में 40 कमिश्नरों ने काम किया। ई.1943 में कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) का पद तोड़ दिया गया तथा फिर से डिप्टी कमिश्नर व्यवस्था आरंभ की गई।