ई.1891 में अजमेर जिले में तथा उसके चारों तरफ अकाल पड़ा। जनता ने बनियों से गल्ला मांगा किंतु बनियों ने उधार देने से मना कर दिया। जब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कैप्टन डी. लीसू बैर गांव पहुँचा तो लोगों ने उससे बनियों की शिकायत की। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने बनियों से कहा कि लोगों को अनाज उधार दें। इस पर बनियों ने कहा कि जब कोई व्यक्ति उधार नहीं चुकाता तो अदालतें हमारा रुपया नहीं दिलवातीं। इस पर डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट ने कहा कि तुम जानो और ये जानें। जब डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट अजमेर लौट गया तो ग्रामीणों ने बनियों को लूट लिया। इसके बाद दो-तीन दिन में ही बीस-पच्चीस गांवों में बनिये लुट गये। इस पर अजमेर शहर के दरवाजे बंद रखे जाने लगे। साहूकारों ने अपना माल छिपा दिया। डिस्ट्रिक्ट मजिस्ट्रेट कैप्टन डी. लीसू दयालु आदमी था। उसने सरकार से लिखा पढ़ी करके पांच लाख रुपये मंगवाकर जनता में उधार और अनुदान के रूप में बंटवाये। उसने स्वयं अपने पास से भी नगदी एवं कपड़ा आदि वितरित किया जिससे अजमेर जिले की जनता बच गई।
बारहठ कृष्णसिंह ने संवत् 1948 (ई.1891) की इस लूट के लिये अजमेर के तत्कालीन कमिश्नर वाइली को जिम्मेदार ठहराया है। (इसका पूरा नाम सर विलियम हट कर्जन वाइली था। वह इण्डियन आर्मी का अधिकारी था तथा भारत में कई प्रशासनिक पदों पर रहा। अधिकतर समय उसने राजपूताना में काम किया। 1 जुलाई 1909 को लंदन में पढ़ रहे भारतीय विद्यार्थी मदनलाल धींगरा ने वाइली के चेहरे पर पांच गोलियां मारकर उसका काम तमाम किया।
धींगरा ने लंदन के न्यायालय में वक्तव्य दिया कि अंग्रेजों ने विगत पचास सालों में 8 करोड़ भारतीयों की हत्या की है तथा अंग्रेज भारत से प्रतिवर्ष 10 करोड़ डॉलर की सम्पत्ति इंगलैण्ड ला रहे हैं। इस अपराध के लिये हर इंगलैण्डवासी बराबर का जिम्मेदार है। भारत पर अमानवीय शासन करने के अपराध में, मैंने कर्जन वाइली की हत्या की है। वाइली की हत्या के अपराध में धींगरा को लंदन की एक जेल में अत्यंत अमानवीय विधि से फांसी दी गई।)
बारहठ कृष्णसिंह के अनुसार जब अजमेर-मेरवाड़ा के काश्तकारों ने अजमेर के कमिश्नर वाइली के पास जाकर अर्ज की कि हमको बोहरे लोग खुराक नहीं देते। इसलिये आप उनको हिदायत करके, (हमें) खाने को दिलवायें। इस पर वायली ने बनियों को हिदायत की किंतु उन्होंने (बनियों ने) खुराक देने से कतई इन्कार कर दिया। तब वाइली ने काश्तकारों से खानगी में इशारा कर दिया कि बनियों का अनाज जहाँ तुमको मिल जावे, वह लूट खाओ। यह इशारा होते ही मेरवाड़ा व अजमेर जिले के काश्तकार इकट्ठे हुए जिनमें बहुत से बदमाश लोग भी आ मिले और करीब दो हजार आदमियों का गिरोह बनाकर अजमेर के इलाके में लूटमार शुरू की।
इन लुटेरों में एक शख्स कमिश्नर साहब, दूसरा डिप्टी कमिश्नर तथा तीसरा ज्युडीशियल अफसर बनता था। जिस किसी (सेठ) को लूटना होता था, उसके पास जाकर एक आम दरबार करके कमिश्नर खड़ा होकर स्पीच देता था कि अकाल के कारण प्रजा मर रही है। बोहरे लोगों ने बदमाशी करके अनाज देना बंद कर दिया है और सरकार से कोई काम जारी करने की मदद नहीं हो सकती इसलिये हुक्म दिया जाता है कि तुम लोग गांवों में जाओ और जहाँ पर बनियों का अनाज और माल असबाब मिले, वह लूट कर पेट भरो।
इसके बाद डिप्टी कमिश्नर खड़ा होकर स्पीच देता कि बनिये लोग निहायत बदमाश हैं। अच्छी फसल होने पर काश्तकारों से अनाज लेते हैं और अकाल होने पर खुराक देने से इन्कार कर जाते हैं। इस हालत में बनियों का माल लूट लेना ऐन इंसाफ है। इसलिये तुमको बनियों का माल लूटने की आम इजाजत दी जाती है।
इसके साथ ही कुछ लोग गांव में घुस जाते और, अनाज, कपड़ा, रुपया, जेवर जो कुछ बनियों के घरों में मिलता, वह लूट लेते। बाद में बनियों के हिसाबी कागजात, बही, चौपनिये वगैरा बाहर निकालकर ढेर लगा देते और ज्युडीशिलय अफसर हुक्म देता कि ये कुल कागजात नाजायज और जाली हैं इसलिये हुक्म दिया जाता है कि कुल के कुल जला दो। इस पर वे कागजात जला दिये जाते। इस तरह से अजमेर जिले के बीर, आखरी, राजगढ़, खानपुर, नरवर, मांगलियावास, जेठाणा, ऊँटड़ा आदि गांव लूट लिये गये।
इन घटनाओं के दौरान राजपूतों तथा अन्य लोगों का लुटेरों से मुकाबला हुआ जिनमें लुटरों के 9 व्यक्ति तथा गांव वालों के कुछ व्यक्ति मारे गये। बनिये अपना जी लेकर जिधर मुंह हुआ, उधर भागे और अजमेर शहर में खलबली मच गई। कितने सेठ साहूकारों ने अपना माल-असबाब किशनगढ़, जयपुर तथा जोधपुर रियासतों में भेज दिया। कितनों ने ही अपने मकान की हिफाजत के लिये बड़ी-बड़ी तनखाहें देकर राजपूतों आदि को नौकर रखा।
यह बावेला चीफ कमिश्नर पाउलेट के पास पहुँचा, तब पाउलेट ने अजमेर में ठहरकर नसीराबाद की फौज के जरिये इस फसाद का रफा-दफा किया तथा चंद लोगों को महीना, दो-दो महीना की कैद की सजायें दीं। यह लुटेरापन आसोज कृष्ण पक्ष में हुआ था। मुराद अली ने इस लूट की चर्चा करते हुए लिखा है- ई.1890 में जब अजमेर और उसके आसपास अकाल पड़ा तो अजमेर जिले के बीसियों गांव लुट गये।
इस पर व्यापारी अपना सामान लेकर किशनगढ़ चले गये। जब साहूकारों का पलायन आरंभ हुआ तो अंग्रेज अधिकारियों की आंखें खुलीं और उन्होंने गांवों को लूटने वालों को पकड़कर उन पर मुकदमे चलाये और उन्हें सजा दी।