3 मार्च 1885 को एल. एस. साण्डर्स के जाने के बाद 4 मार्च 1885 से 25 जून 1885 तक कर्नल डब्लू. ट्वीडी ने कमिश्नर (अजमेर-मेरवाड़ा) के पद पर कार्य किया। 26 जून 1885 से 13 नवम्बर 1885 तक टी. सी. प्लोडेन ने इस पद पर कार्य किया।
कर्नल जी. एच. ट्रेवर
14 नवम्बर 1885 को कर्नल जी. एच. ट्रेवर अजमेर का कमिश्नर हुआ। मुराद अली ने उसके बारे में लिखा है- वह बेहद कंजूस अधिकारी था। सवारी के लिये एक घोड़ा भी नहीं रखता था। रियासत के दौरों के दौरान टोकरियों में जो मिसरी आती थी, साल भर उसी की चाय पीता था। दो गायें थीं जिन्हें अर्दली का जमादार चराता था। अक्सर कैदियों से जुर्माना लेकर रिहा कर देता। अपने लोगों के अतिरिक्त और किसी से सम्बन्ध नहीं रखता था। यह अखबार वालों से बहुत नाराज रहता था। क्योंकि जब वह हैदराबाद में था तब स्टेट्समैन ने उसके ऊपर तीन लाख रुपये की रिश्वत लेने का आरोप लगाया था।
झालावाड़ के महाराजराणा जालिमसिंह को फिर से शासनाधिकार ट्रेवर ने ही दिलवाये थे। अजमेर का आधुनिक चिकित्सालय जो ई.1894 में खुला, ट्रेवर ने ही बनवाया। इसके शुभारम्भ समारोह में वह स्वयं भी उपस्थित था। उस समय ट्रेवर अजमेर का चीफ कमिश्नर एवं एजीजी था।
रेलवे का प्रबंध सरकार के पास
ई.1885 में रेल का प्रबंधन, रेल कम्पनी के हाथ से निकलकर सरकार के हाथों में चला गया। उसके साथ ही कम्पनी के सैंकड़ों अधिकारी और रेलवे के पुतलीघर का बहुत सा हिस्सा अजमेर से मुम्बई स्थानांतरित हो गया। सारी दुकानें फीकी पड़ गईं। बहुत सी बंद हो गईं।
ड्यूक एण्ड डचेज् ऑफ कैनॉट अजमेर में
ई.1886 में दी अजमेर-मेरवाड़ा म्युन्सिपैलिटीज रेग्यूलेशन एक्ट ऑफ 1886 लागू किया गया तथा अजमेर में पहली बार चुनावों की व्यवस्था की गई। इसी वर्ष कैसरगंज में आर्यसमाज भवन बानाया गया। मि. व्हाइट वे का 20 वर्षीय सैटलमेंट बनाया गया। दी अजमेर रूरल बोर्ड्स रेग्यूलेशन लागू किया गया। इसी वर्ष ड्यूक एण्ड डचेज् ऑफ कैनॉट अजमेर आये।
एजीजी की आंखों में आँसू
मेजर एडवर्ड आर.सी. ब्रॉडफोर्ड 1878 से चीफ कमिश्नर अजमेर-मेरवाड़ा तथा ए.जी.जी. राजपूताना के पद पर कार्य कर रहा था। 11 फरवरी 1887 को उसने कैसरबाग में मि. सॉण्डर्स की छतरी के पास दरबार आयोजित किया। इसी वर्ष मैसूर का महाराजा अजमेर आया। ई.1887 में ब्रॉडफोर्ड के समय में बीकानेर के ठाकुरों ने विद्रोह किया। इस पर ब्रॉडफोर्ड सेना लेकर बीदासर गया तथा ठाकुर मेघसिंह रईस जसाना, ठाकुर रामसिंह पट्टेदार महाजन तथा ठाकुर बहादुरसिंह पट्टेदार बीदासर को पकड़कर अजमेर ले आया। कुछ दिन बाद उसने बीकानेर नरेश डूंगरसिंह को भी अपदस्थ कर दिया। मुराद अली के अनुसार ब्रॉडफोर्ड के इन कारनामों के कारण मार्च 1887 में ब्रिटिश सरकार ने ब्रॉडफोर्ड को लंदन बुला लिया। जिस दिन इस आशय का तार अजमेर पहुँचा तो ब्रॉडफोर्ड की आंखों में आंसू आ गये।
राजाधिराज नाहरसिंह
मुराद अली का कथन कितना विश्वसनीय है कहा नहीं जा सकता। बारहठ कृष्णसिंह ने लिखा है कि ब्रॉडफोर्ड की आयु 55 साल हो जाने के कारण गवर्नमेंट हिन्द के कायदे माफिक ब्रॉडफोर्ड की पेंशन की गई तथा उसे इंगलैण्ड के इण्डिया ऑफिस में सेक्रेटरी बनाया गया। 1 अप्रेल 1887 को वह आबू से इंगलैण्ड चला गया। जब उसकी सेवानिवृत्ति का समय आया तो शाहपुरा का राजाधिराज नाहरसिंह उससे मिलने आबू गया। उसकी इच्छा थी कि उसे भी राजपूताने के राजाओं के समान सिंहासन दिया जाये तथा उसे भी अंग्रेज सरकार से तोपों की सलामी का सम्मान मिले। राजाधिराज को आशा थी कि ब्रॉडफोर्ड जाते-जाते उसके पक्ष में रिपोर्ट लिख देगा किंतु नाहरसिंह की आशा पूरी नहीं हो सकी।
प्रशासनिक प्रतिवेदन बंद
ई.1865 से अब तक एजीजी, राजपूताना की रियासतों से राजनीतिक प्रशासन के सम्बन्ध में तैयार वार्षिक प्रतिवेदन की समीक्षा करता था। ई.1887 के पश्चात् एजीजी द्वारा विभिन्न राज्यों के पोलिटिकल अधिकारियों के प्रतिवेदन पर पुनरीक्षण बंद हो गया। सदी के अंत में ये प्रतिवेदन बहुत छोटे होने लगे तथा औपचारिकता भर रह गये। इसके साथ ही राजस्थान का सामूहिक प्रशासनिक प्रतिवेदन बनना भी बंद हो गया।