भारत की मूल परम्परा बिना सिले हुए कपड़े पहनने की रही है। बिना सिली हुई मर्दानी धोती, औरतों की लांगदार धोती और बिना लांग की साड़ी, बिना सिले हुए उत्तरीय, साफे, लंगोटी और दुपट्टे में ही आम भारतीय का जीवन मजे में कटता था। यह तो नहीं कहा जा सकता कि जब मुसलमान इस देश में आये तोे वे अपने साथ पहली बार सिला हुआ कपड़ा लेकर आये किंतु यह अवश्य कहा जा सकता है कि धोती की जगह सलवार, सुतन्नी और पजामे, गरारे तथा उत्तरीय की जगह कुर्ते, अचकन, शेरवानी मुसलमानों के साथ ही इस देश में आये। जब अंग्रेज इस देश में आये तो अपने साथ कोट-पैण्ट और चुस्त कपड़े लेकर आये। उनके कोट भी तरह-तरह के थे। हर समय का, हर ऋतु का और हर काम का अलग कोट। कुछ भारतीयों ने भी उनकी देखा-देखी, अपनी हैसियत के अनुसार कोट पहनने आरम्भ किये।
जवाहर का गुलाब के फूल वाला कोट
भारत के प्रथम प्रधानमंत्री जवाहरलाल नेहरू का कोट बिल्कुल अलग तरह का था जो गले से आरम्भ होकर घुटनों से जरा ही ऊपर समाप्त होता था। उस पर हर समय गुलाब का ताजा फूल जगमगाता रहता था। इस कोट में वे रौबदार व्यक्तित्व के धनी दिखाई देते थे। उस जमाने में जवाहरलाल नेहरू जैसा इक्का-दुक्का व्यक्ति ही ऐसा शालीन कोट पहन पाता था। शायद इसी कोट का चमत्कार था कि वे लंदन के नेताओं से जो चाहे मनवा लेते थे।
शास्त्रीजी का फटे कॉलर वाला कोट
लाल बहादुर शास्त्री गुदड़ी के लाल थे, उनके पास कोट नहीं था। कहते हैं जवाहरलाल ने शास्त्रीजी को अपना कोट दिया था। शास्त्रीजी जरूरत होने पर उसी कोट को पहन लेते थे। जब शास्त्रीजी प्रधानमंत्री बने तब भी वही कोट उनकी आवश्यकता पूरी करता रहा। इसी फटे कॉलर के कोट को पहनकर उन्हें 1971 की सर्दियों में पास्तिान के विरुद्ध अपने लड़ाकू विमानों को उड़ने के लिये कह दिया था जिसकी कि पूरी दुनिया को उम्मीद नहीं थी। यह किस्सा बहु-प्रचलित है कि जब शास्त्रीजी 1965 के युद्ध के बाद ताशकंद जाने लगे तो उनके सचिव ने कहा कि एक नया कोट सिलवा लेते हैं क्योंकि इस कोट का कॉलर फट गया है किंतु शास्त्रीजी ने मना कर दिया। इसी फटे हुए कॉलर वाले कोट को पहनने वाले शास्त्रीजी आम भारतीय के दिल और दिमाग पर आज तक छाये हुए हैं।
इंदिरा का निर्गुटिया कोट
इंदिरा गांधी भी सर्दियों में एक लेडीज कोट पहनती थीं। इस कोट में वे बड़ी गरिमामय और दृढ़ दिखती थीं। किसी की हिम्मत नहीं होती थीं कि कोई उनसे आंख मिलाकर बात कर ले। जब वे इस कोट को पहनकर निर्गुट सम्मेलनों में जातीं तो अंतर्राष्ट्रीय स्तर के बड़े-बड़े नेताओं के पसीने छूट जातेे। इस निर्गुटिया कोट के बल पर वे दुनिया की बड़ी ताकतों की परवाह किये बिना, दुनिया के सैंकड़ों देशों में शक्तिपुंज के प्रतीक की तरह जगमगाती रहीं। उन्होंने पाकिस्तान के दो टुकड़े कर दिये और दुनिया चूं भी नहीं कर सकी।
डॉ. मनमोहनसिंह का रेनकोट
वक्त ने करवट ली और भारतीय राजनीति के आकाश में डॉ. मनमोहनसिंह प्रकट हुए जिन्होंने दस वर्ष तक देश की सरकार चलाई। उनके कोट के बारे में अब तक किसी को पता नहीं था किंतु अचानक भारत की संसद में उनके रेनकोट की चर्चा हुई। मालूम पड़ा कि वे इस रेनकोट को पहनकर ही बाथरूम में नहाते रहे। यही कारण रहा कि कोयला खदानों की नीलामी की कालिख भले ही कितनी ही उड़ी हो, यही रेनकोट उनका अब तक बचाव कर रहा है।
नमो का लखटकिया कोट
प्रधानमंत्री नरेन्द्र मोदी का लखटकिया कोट भी बहुत चर्चा में रहा। जनता को बताया गया कि इसकी कीमत 10 लाख रुपये है। इसी कोट को पहनकर वे अमरीका के तत्कालीन राष्ट्रपति ओबामा से मिलने गए। भारतीय भाइयों और बहनों ने उस कोट की ऐसी बैण्ड बजाई कि उसे नीलाम करवाकर माने। कोट की नीलामी से मिले 4.31 करोड़ रुपये पतित-पावनी देवनदी भागीरथी माँ गंगा की सफाई के लिये दिये गये हैं। और भी आयेंगे कोट समय बहुत बलवान है, देश भी बहुत बड़ा है और लोकतंत्र भी काफी मजबूत है, समय के साथ और भी कोट आयेंगे और देश की सेवा करेंगे।