स्वस्थ लोकतंत्र में वैचारिक संघर्ष, बहस तथा नीतिगत विरोध एक स्वाभाविक प्रक्रिया है। यदि ऐसा न हो तो संसदीय शासन प्रणाली गूंगी-बहरी गुड़िया से अधिक कुछ भी नहीं किंतु जब से केन्द्र में नरेन्द्र भाई मोदी के नेतृत्व में एनडीए की सरकार बनी है, तब से विपक्षी दलों के नेता जिस प्रकार की भाषा का प्रयोग कर रहे हैं, वह किसी भी तरह राष्ट्र अपमान की भाषा से कम नहीं। सरकार की नीतियों के विरोध का अर्थ यह कदापि नहीं होता कि देश से लोकतंत्र की जड़ें ही खोद डाली जाएं या शत्रुओं की तरफ खड़े होकर देश पर पत्थर फैंके जाएं या फिर ऐसा करने वालों के समर्थन में आवाज उठाई जाए और उसे आजादी का नाम दिया जाए!
जम्मू काश्मीर की मुख्यमंत्री महबूबा मुफ्ती ने कहा है कि यदि काश्मीर से धारा 35 ए हटी तो जिस तिरंगे को हमारे आदमी उठाते हैं, उस तिरंगे को काश्मीर में कोई कांधा देने वाला नहीं मिलेगा। जम्मू-काश्मीर के पूर्व मुख्यमंत्री फारूख अब्दुल्लाह कह रहे हैं कि भारत की पूरी सेना मिलकर भी आतंकवादियों से हमारी रक्षा नहीं कर सकती। यह तो तब है जब हुर्रियत के बड़े नेता देश के खिलाफ प्रच्छन्न युद्ध लड़ने वालों को धन पहुंचाने के आरोप में सलाखों के पीछे जा चुके हैं तथा एनआईए इस घिनौने अंतर्राष्ट्रीय षड़यंत्र के काफी बड़े हिस्से का पर्दा फाश कर चुकी है। जिस 35 ए के हटने के भय से काश्मीरी नेता इतने बेचैन हुए जा रहे हैं, काश्मीर की सारी समस्या की जड़ यही धारा है जिसे जवाहरलाल नेहरू ने डॉ. राजेन्द्र प्रसाद से अध्यादेश के माध्यम से संविधान संशोधन के रूप में लागू करवाया और जिसे संसद ने आज तक स्वीकृति नहीं दी। इसी धारा ने काश्मीर को भारत रूपी समुद्र में एक स्वायत्तशासी टापू में बदल दिया जो भारत के संविधान से मुक्त रहकर, भारत के चीनी, चावल, पैट्रोल और सीमेंट को मजे से जीम रहा है। इसी धारा की आड़ में काश्मीरी नेता दिल्ली आकर आलीशान बंगलों में रहते हैं और आम भारतीय, काश्मीर में झौंपड़ा तक नहीं खरीद सकता। अब मुफ्ती तथा अब्दुल्लाह को इस धारा के हटने का भय सता रहा है।
पीडीपी, नेशनल कान्फ्रेन्स तथा हुर्रियत के नेताओं द्वारा लगाई गई इस आग में घी डालने का काम राहुल गांधी, मणिशंकर अय्यर, संदीप दीक्षित और उनके बहुत से साथी बहुत सफलता से कर रहे हैं। कोई कह रहा है कि प्रधानमंत्री अपने फायदे के लिए काश्मीरी लोगों का खून बहा रहे हैं तो कोई पाकिस्तान में जाकर कह रहा है कि पाकिस्तान, नरेन्द्र मोदी की सरकार गिराकर कांग्रेस की सरकार बनवा दे। विनोद शर्मा जैसे पत्रकार भी हुर्रियत के नेताओं से गलबहियां मिलते हुए देखे गए हैं। ममता बनर्जी तो कंधे पर तृणमूल का झण्डा लेकर, भारत को जनता द्वारा भारी बहुमत से चुनी गई सरकार से मुक्त करने के मिशन पर निकली ही हुई हैं, हालांकि वे इस मिशन का उद्देश्य भारत को बीजेपी से मुक्त कराना बता रही हैं।
जनता दल यू के शरद पंवार की आत्मा भी इन दिनों काफी बेचैन है। राजद के लालू यादव सारी मर्यादाएं भूलकर देश के प्रधानमंत्री के विरुद्ध ऐसा अनर्गल प्रलाप कर रहे हैं जो राष्ट्रीय अपमान की सीमाओं को स्पर्श करता है। कम्यूनिस्टों का हाल ये है कि वे भारतीय सेना को चीनी हमले से भयभीत करने में कोई कोर-कसर नहीं छोड़ रहे। संभवतः उनके मन में ये है कि भारत भयभीत होकर साम्यवादी चीन के कॉमर्शियल कॉरीडोर के नाम पर बन रहे मिलिट्री कॉरीडोर को बन जाने दे। विभिन्न विपक्षी दलों के इन नेताओं को क्यों यह समझ में नहीं आता कि देश की जनता को अधिक समय तक गुमराह नहीं किया जा सकता। देर-सबेर ही सही, जनता तक सच पहुंच ही जाता है, ठीक उसी तरह जिस तरह आयकर विभाग मीसा भारती, तेज प्रताप तथा तेजस्वी यादव की छिपी हुई सम्पत्तियों तक पहुंच गया है और एनआईए हुर्रियत नेताओं को पकड़कर सलाखों के पीछे खींच ले गई है।