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मुगलों के आगमन से पूर्व राजपूताना में 11 राज्य थे- मेवाड़, मारवाड़, आम्बेर, बीकानेर, जैसलमेर, सिरोही, अजमेर, बूंदी, बांसवाड़ा, डूंगरपुर एवं करौली। मुगलों के काल में राजपूताना में 7 नये राज्य अस्तित्व में आये- कोटा, अलवर, भरतपुर, धौलपुर, किशनगढ़, प्रतापगढ़ तथा शाहपुरा जबकि एक राज्य- अजमेर समाप्त हो गया। इस प्रकार राजपूताना के राज्यों की संख्या 17 हो गयी। औरंगजेब के पश्चात अधिकतर राज्यों के सम्बंध मुगलों से विच्छेद हो गये तथा मुगल साम्राज्य अस्ताचल को चला गया। ई. 1818 से 1857 तक राजपूताना के राज्य ईस्ट इंडिया कम्पनी के संरक्षण में रहे। इस काल में राजपूताना में दो नये राज्य अस्तित्व में आये- टोंक तथा झालावाड़। ई. 1818 में ईस्ट इण्डिया कंपनी ने मरहठा शासक दौलतराम सिंधिया से संधि करके अजमेर पर अधिकार कर लिया। बाद में इसमें मेरवाड़ा क्षेत्र भी मिला दिया गया। इस प्रकार अंग्रेजों के काल में एक केन्द्रशासित प्रदेश- ‘‘अजमेर-मेरवाड़ा’’ भी अस्तित्व में आया। जैसे जैसे भारत में अंग्रेजों का राज्य फैलता गया वैसे-वैसे उनके मन में यह विश्वास जड़ जमाता गया कि गोरी जाति श्रेष्ठ और ऊंची है। काले भारतीय नीच और मूर्ख हैं। उन पर शासन करने की जिम्मेदारी ‘ईश्वर’ नामक रहस्यमय शक्ति ने अंग्रेजों के ही कंधों पर रखी है। अंग्रेज वह जाति है जो केवल जीतने और शासन करने के लिये पैदा हुई है। उन्होंने राजपूताना की रियासतों पर नियंत्रण के लिये एजेंट टू द गवर्नर जनरल (ए. जी. जी.) को नियुक्त किया जिसका मुख्यालय अजमेर में था। राजपूतना ए. जी. जी. के अधीन पालनपुर, दंाता, ईडर तथा विजयनगर रियासतें भी थीं जो स्वतंत्रता प्राप्ति के बाद गुजरात में शामिल कर दी गयीं। अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं को भारत की आजादी की लड़ाई के विरुद्ध हथियार के रूप में इस्तेमाल किया। यही कारण था कि अंग्रेजों और भारतीय राजाओं का गठबंधन 1857 के गदर के समय तथा बाद में कांग्रेस के नेतृत्व में चले भारतीय स्वतंत्रता संग्राम के समय भारत की जनता के सामने चट्टान की तरह आकर खड़ा हो गया। इस चट्टान को राजपूताना की रियासतों में आजादी की लड़ाई का बिगुल बजाने वाले जयनारायण व्यास (जोधपुर), गोकुल भाई भट्ट (उदयपुर), हीरालाल शास्त्री (जयपुर), रघुबर दयाल गोयल (बीकानेर), सागरमल गोपा (जैसलमेर), ठाकुर केशरीसिंह (शाहपुरा) तथा विजयसिंह पथिक (बिजौलिया) जैसे स्वतंत्रता सेनानियों ने पिघला कर पानी बना दिया जिसके कारण अंग्रेज शक्ति और राजा दोनों ही एक साथ विलुप्त हो गये। अंग्रेजों ने भारतीय राजाओं को अपनी ओर मिलाये रखने के लिये उन्हें प्रशासन में कनिष्ठ भागीदारी दी। उन्हें यूरोप की सैर करवायी, विदेशी शराब उपलब्ध करवायी तथा अंग्रेजी मेम के साथ नृत्य करने की सुविधायें दीं। तरह-तरह की उपाधियों से अलंकृत किया तथा रॉल्स रॉयस जैसी महंगी कारें खरीदने का अधिकार दिया। इन सब सुविधाओं से बढ़कर जो सुविधा अंग्रेजी सरकार की ओर से भारतीय राजाओं को उपलब्ध थी, वह थी- अंग्रेज सरकार की ओर से भारतीय राजाओं को तोपों की सलामी। अंग्रेजों ने इन राज्यों के राजाओं को उनकी हैसियत के अनुसार तोपों की संख्या निश्चित की थी। राजस्थान की रियासतों में उदयपुर के शासक को 19 तोपों की सलामी दी जाती थी। इसके बाद नम्बर आता था- बीकानेर, भरतपुर, बूंदी, जयपुर, जोधपुर, करौली, कोटा तथा टोंक का। इनके शासकों को 17 तोपों की सलामी दी जाती थी। अलवर, बांसवाड़ा, धौलपुर, डूंगरपुर, जैसलमेर, किशनगढ़, प्रतापगढ़ तथा सिरोही के शासकों को 15 तोपों की सलामी दी जाती थी। झालावाड़ के शासक को 13 तोपों की सलामी दी जाती थी। इन रियासतों के अतिरिक्त तीन ठिकाने लावा, कुशलगढ़ तथा नीमराणा भी थे। जिनके शासकों को तोपों की सलामी नहीं दी जाती थी। इन्हें ‘‘नॉन सैल्यूट स्टेट’’ भी कहा जाता था। अंग्रेज सरकार द्वारा विभिन्न राज्यों के राजाओं के लिये तोपों की सलामी की संख्या निर्धारित करते समय राजाओं की हैसियत राज्य के आकार, उसकी प्राचीनता, उसकी जनसंख्या अथवा वार्षिक राजस्व आदि तथ्यों से नहीं आंकी गयी थी। अपितु यह हैसियत अंग्रेज सरकार के साथ उस राज्य के सम्बन्धों की स्थिति पर भी निर्भर करती थी। आजादी के बाद राजाओं का यह विशेषाधिकार समाप्त कर दिया गया। -मोहनलाल गुप्ता
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