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  • अजमेर का इतिहास - 81

     02.06.2020
    अजमेर का इतिहास - 81

    अजमेर के साम्प्रदायिक दंगों पर नेहरू एवं पटेल में विवाद (1)


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    स्वतंत्र भारत में प्रवेश


    राजपूताना ऐजेन्सी भंग कर दी गई। अजमेर को भारत सरकार के 'सी' श्रेणी के राज्यों की सूचि में सम्मिलित किया गया। उन दिनों में कुछ साम्प्रदायिक दंगे भी हुए जिन पर नियंत्रण पा लिया गया। उसी वर्ष पांठ-पीपलोदा का जिला अजमेर-मेरवाड़ा के चीफ कमिश्नर के अधीन कर दिया गया तथा अजमेर-मेरवाड़ा के डिप्टी-कमिश्नर को पांठ-पीपलोदा का कलक्टर बनाया गया।

    27 अगस्त 1947 को कुछ मुस्लिम एक मस्जिद के समक्ष नमाज पढ़ने के लिये एकत्रित हुए। उनका निश्चय अजमेर में साम्प्रदायिक दंगा फैलाने का था। इन लोगों के कुछ समूहों ने अजमेर के लगभग आधा दर्जन मौहल्लों पर हमले किये। उन्होंने हिन्दू महाबीर दल शोभायात्रा पर भी हमला किया। उस समय अजमेर में निकटर्वी रियासतों से लगभग 10 हजार शरणार्थी शरण लिये हुए थे। वे शरणार्थी लोग, इन हमलों से तनाव में आ गये।

    इस कार्यवाही के बाद मुसलमानों में यह भय व्याप्त हो गया कि अब दूसरे पक्ष की ओर से बदले की कार्यवाही की जायेगी। उस समय अजमेर में मुस्लिम लीग सक्रिय थी। उसने मुसलमानों को अजमेर से निकालकर पाकिस्तान भेजने की योजना तैयार की। इससे अजमेर में तनाव चरम पर पहुँच गया। ठीक इसी समय प्रशासन ने कड़े कदम उठाये और समस्त प्रकार की गतिविधियां थम गईं। इसके बाद 5 दिसम्बर 1947 तक कुछ नहीं हुआ।

    5 दिसम्बर 1947 को दरगाह बाजार में एक मुस्लिम लडके और एक सिंधी लड़के के बीच एक ग्रामोफोन का बेचान हुआ। इस बेचान के मामले में दोनों युवक झगड़ पड़े। इस झगड़े में तीन सिंधी युवकों को चोट आई। यह झगड़ा पूरे बाजार में फैल गया। उसके बाद अन्य बाजारों में भी दोनों समुदायों ने एक दूसरे की दुकानों पर आक्रमण किये। अगले एक घण्टे में 41 व्यक्ति घायल हो गये। इनमें से तीन मुस्लिम लड़कों एवं एक सिंधी लड़के की मृत्यु हो गई।

    6 दिसम्बर को एक मुस्लिम मौहल्ले में ड्यूटी पर तैनात हिन्दू कॉंस्टेबल गायब हो गया। इस कांस्टेबल की तलाशी में मुस्लिम मौहल्ले की तलाशी ली गई। साथ ही कुछ अन्य मौहल्लों की भी तलाशी ली गई। इस तलाशी में कांस्टेबल को तो बरामद नहीं किया जा सका किंतु दो तोपें, एक मजल लोडिंग गन, एक ब्रीच लोडिंग गन, दस तलवारें, चार खंजर, गन पाउडरों से भरी शीशियां, 300 कारतूस बरामद किये गये। इस बरामदगी के बाद दोनों हिन्दुओं पर 75 हजार रुपये तथा मुसलमानों पर 3 हजार रुपये का अर्थदण्ड लगाया गया। इस राशि को वसूलने के लिये कठोर प्रयास किये गये।

    हिन्दुओं ने स्वयं पर लगाये गये अर्थदण्ड की मात्रा पर भारी विरोध किया। 13 दिसम्बर को गुमशुदा कांस्टेबल का शव प्राप्त कर लिया गया। पूरे पुलिस सम्मान के साथ शव का अंतिम संस्कार किया गया। जब इस कांस्टेबल की शवयात्रा नया बाजार के पास से निकली तो कुछ लोगों ने दुकानों में लूट मचा दी। जब लूटमार पूरे अजमेर में फैलने लगी तो पुलिस तथा सेना को कुछ स्थानों पर फायरिंग करनी पड़ी। मध्याह्न पश्चात् 2.30 बजे अजमेर में कर्फ्यू लगा दिया गया। चीफ कमिश्नर को एक अनियंत्रित भीड़ पर लाठी चार्ज करने तथा गोली चलाने के निर्देश देने पड़े। 16 दिसम्बर को सेना ने फिर से एक भीड़ पर गोली चलाई जो शहर में लूटपाट कर रही थी। इस प्रकार 5 दिसम्बर से 16 दिसम्बर की अवधि में अजमेर में दंगाइयों की कार्यवाही तथा पुलिस एवं सेना की गोली से 47 लोगों की मृत्यु हो गई।

    इसी समय दिल्ली से सेना बुला ली गई। इस टुकड़ी ने सख्त पैट्रोलिंग आरंभ की। दिल्ली क्षेत्र के कमाण्डिंग अधिकारी जनरल राजेन्द्रसिंह ने अजमेर का दो दिवसीय भ्रमण किया। पं. नेहरू ने इण्टर डोमिनियन मायनोरिटीज के अध्यक्ष एन. आर. मलकानी को एक तार देकर सूचित किया कि उन्हें अजमेर में हुए दंगों पर गहरा खेद है किंतु दरगाह को पूरी तरह सुरक्षित रखा गया है। नेहरू ने मलकानी को यह भी सूचित किया कि वे शीघ्र ही अजमेर का दौरा करेंगे।

    पाकिस्तान सरकार के शरणार्थी एवं पुनर्वास मंत्री गजनफर अली खां ने भारत सरकार के गृहमंत्री सरदार पटेल को अजमेर की स्थिति के सम्बन्ध में टेलिग्राम किया। गजनफर अली खां मुस्लिम लीग नेता थे जो जवाहरलाल नेहरू की अंतरिम सरकार में स्वास्थ्य मंत्री रहे। विभाजन के समय जिन्ना के साथ पाकिस्तान चले गये। 17 दिसम्बर 1947 को सरदार पटेल ने उसे जवाब में टेलिग्राम भिजवाकर सूचित किया कि अजमेर में स्थिति नियंत्रण में है तथा एक सैनिक टुकड़ी दरगाह की रक्षा कर रही है।

    जवाहरलाल नेहरू अजमेर के दंगों पर बहुत चिंतित थे। बालकृष्ण कौल एवं मुकुट बिहारी लाल ने नेहरू को अजमेर की स्थिति के बारे में सूचित किया। नेहरू अजमेर के अधिकारियों एवं पुलिस के रवैये से प्रसन्न नहीं थे। नेहरू ने सरदार पटेल को लिखे एक पत्र में दो महत्त्वपूर्ण बातों की ओर ध्यान दिलाया। पहला बिंदु यह था कि यदि इस घटना की बड़े स्तर पर पुनरावृत्ति हुई तो उसके भयानक परिणाम होंगे। दूसरा यह कि दरगाह के कारण अजमेर पूरे भारत में तथा पूरे विश्व में प्रसिद्ध है। यदि दरगाह को कुछ हुआ तो उसका प्रचार पूरे भारत में एवं पूरे विश्व में होगा। इससे भारत सरकार की छवि को धक्का पहुँचेगा।

    जवाहरलाल नेहरू का पत्र मिलने के बाद सरदार पटेल ने अजमेर प्रकरण पर एक वक्तव्य जारी किया। उन्होंने अजमेर में हुई मौतों की संख्या बताते हुए यह कहा कि 15 दिसम्बर 1947 से लेकर अब तक हुए दंगों में 5 हिन्दू तथा 1 मुसलमान मरा है। साथ ही पुलिस फायरिंग में 21 हिन्दू तथा 62 मुसलमान घायल हुए हैं। मिलिट्री की फायरिंग में 8 हिन्दू तथा 7 मुसलमान मारे गये हैं और 2 हिन्दू एवं 2 मुसलमान घायल हुए हैं। सम्पत्ति का भयानक नुक्सान हुआ है। अधिक नुक्सान स्टेशन रोड तथा इम्पीरियल रोड पर स्थित मुसलमानों की आठ बड़ी दुकानों में हुआ है। इनके अतिरिक्त कुछ अन्य दुकानों यथा स्टेशनरी, चूड़ी, आलू, कोयला, किताबों आदि की दुकानों में भी नुक्सान हुआ है। कुल 41 दुकानें लूटी गई हैं तथा 16 दुकानें जलाई गई हैं। इनमें से तीन दुकानें पूरी तरह नष्ट हो गई हैं। सम्पत्ति को नष्ट होने से बचाने तथा दंगाइयों को बंदी बनाने के लिये सघन प्रयास किये गये हैं। दरगाह इस सबसे पूरी तरह सुरक्षित रही है। सरदार पटेल ने दरगाह से जुड़े धार्मिक लोगों से अपील की कि वे इसकी सुरक्षा का पूरा ध्यान रखेंगे। उन्होंने सरकार की ओर से आशा व्यक्त की कि इस ऐतिहासिक नगरी में शीघ्र की फिर से शांति स्थापित होगी।

    नेहरू ने अजमेर भ्रमण का कार्यक्रम बनाया किंतु अचानक ही पं. नेहरू के भतीजे की मृत्यु हो गई। इससे इस यात्रा को निरस्त करना पड़ा। उन्होंने सोचा कि इससे अजमेर पर बुरा प्रभाव पड़ेगा क्योंकि अजमेर में उनकी बहुत उत्सुकता से प्रतीक्षा हो रही थी। यह यात्रा पूरे देश को यह दिखाने के लिये की जा रही थी कि सरकार इस प्रकार की स्थिति से बहुत चिंतित है तथा इससे निबटने में नेता व्यक्तिगत रूप से रुचि ले रहे हैं। नेहरू का मानना था कि दिल्ली के बाद देश में अजमेर ही दूसरा महत्वपूर्ण नगर है जहाँ हो रही घटनाओं का पूरे देश की नीतियों पर प्रभाव पड़ रहा है।

    इसलिये नेहरू ने अपने प्रमुख निजी सचिव एच. आर. वी. आर. आयंगर से कहा कि वे अजमेर जाकर अजमेर की जनता से नेहरू के न आने के लिये नेहरू की ओर से क्षमा मांगें। आयंगर ने 20 दिसम्बर 1947 को शनिवार के दिन अजमेर का दौरा किया। उन्होंने अजमेर में हुए नुक्सान वाले स्थलों का निरीक्षण किया तथा एडवाइजरी कौंसिल के सदस्यों से विचार-विमर्श किया। उन्होंने मुकुट बिहारी लाल एवं बालकृष्ण कौल से भी विचार-विमर्श किया। अगले दिन उसने मुस्लिम प्रतिनिधि मण्डलों, खादिमों, आर्यसमाज के सदस्यों, महासभा के सदस्यों एवं प्रेस प्रतिनिधियों से बात की।

    आयंगर के इस प्रकार विजिट करने से अजमेर का चीफ कमिश्नर शंकर प्रसाद बुरी तरह घबरा गया। उसे लगा कि इस यात्रा से यह छवि बनी है कि चीफ कमिश्नर न केवल स्थिति को संभालने में बुरी तरह विफल रहा अपितु उसने सरकार को पूरे तथ्य बताने में भी बेईमानी बरती है। इसलिये शंकर प्रसाद ने गृहमंत्री सरदार पटेल के निजी सचिव वी. शंकर को एक पत्र लिखकर सूचित किया कि चीफ कमिश्नर को कम से कम यह ज्ञात होने का अधिकार होना चाहिये था कि उसने ऐसा क्या किया है जो उस पर विश्वास नहीं किया जा रहा है तथा जनता से उसके सम्बन्ध में प्रश्न किये जा रहे हैं।

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  • राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - माणिक्यलाल वर्मा

     21.12.2021
    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - माणिक्यलाल वर्मा

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 189

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - माणिक्यलाल वर्मा

    1. प्रश्न -माणिक्यलाल वर्मा को उदयपुर राज्य से पहली बार क्यों निष्कासित किया गया?

    उतर- बिजौलिया आंदोलन में भाग लेने के कारण।

    2. प्रश्न -माणिक्यलाल वर्मा ने ‘मेवाड़ प्रजा मंडल’ की स्थापना कब की?

    उतर- 24 अप्रेल 1938 को।

    3. प्रश्न -‘मेवाड़ प्रजा मंडल’ की स्थापना में किन नेताओं का योगदान था?

    उतर- बलवंतसिंह मेहता, भवानीशंकर वैद्य, जमनालाल वैद्य, परसराम तथा दयाशंकर श्रोत्रिय।

    4. प्रश्न -मेवाड़ राज्य के संयुक्त राजस्थान में विलय के बाद किसे मुख्यमंत्री बनाया गया?

    उतर- माणिक्यलाल वर्मा को।

    5. प्रश्न -माणिक्यलाल वर्मा को भारतीय संविधान सभा में क्या भूमिका दी गई?

    उतर- वे संविधान सभा में मेवाड़ के प्रतिनिधि थे।


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  • समय (हिन्दी कविता)

     02.06.2020
    समय (हिन्दी कविता)

    समय

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    एक कनेर

    जो वर्षों पहले

    घर के सामने लगाई थी,

    लगातार तुम्हारी प्रसन्नताओं की

    आकांक्षिणी रही है।

    जब सुबह की धूप का नरम गद्दा

    मेरे कदमों में बिछा होता है,

    कनेर के एक-एक फूल में

    तुम्हारा चेहरा छिपा होता है।

    सच कहना

    क्या तुमने भी

    उस कनेर को देखा है ?



    दिन किसी चतुर मछुआरे सा

    अपना जाल फैंकता है

    और कुलांचें भरते हुए

    हरिण से घण्टे

    छोटी-छोटी मछलियां बनकर

    उसके अंक में समा जाते हैं।

    दोस्त! यही है

    समय की वास्तविकता

    कि मंदिरों में घण्टियां बनकर

    झूलता हुआ समय

    घाटियों में चिड़ियां बनकर

    चहकता हुआ समय

    धीरे-धीरे थपकियां देता हुआ

    जीवन रूपी नाव को

    खेता रहता है और

    किसी बुुढ़िया माँ की तरह

    झुर्रियों भरा चेहरा लेकर

    तेजी से व्यतीत हो जाता है।

    पता नहीं यह

    कहां जाकर खो जाता है।

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  • राजस्थान की पर्यावरणीय संस्कृति-18

     02.06.2020
    राजस्थान की पर्यावरणीय संस्कृति-18

    राजस्थान में वन्य जीवन (3)


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    राजस्थान के प्रवासी पक्षी


    प्रवासी पक्षी प्रत्येक मौसम में आते-जाते हैं, परंतु सर्वाधिक प्रवासी पक्षी शीतकाल में आते हैं। अनेक प्रजातियों के प्रवासी पक्षी चीन, यूरोप, मध्य-पश्चिमी एशिया, रूस, साइबेरिया तथा उच्च पर्वतीय प्रदेशों से आते हैं। राजस्थान में शीतकालीन प्रवासी पक्षियों का सर्वाधिक जमघट विश्वविख्यात केवलादेव राष्ट्रीय उद्यान भरतपुर में होता है जहाँ लगभग 180 प्रजातियों के पक्षी आते हैं। धौलपुर के तालाब-ए-शाही, चम्बल नदी के तटवर्ती क्षेत्रों, सांभर, पचपदरा, डीडवाना की खारी झीलों, जयपुर के जलमहल एवं रामगढ़ बांध, दूदू के निकट छापरवाड़ा जलाशय, अजमेर तथा उदयपुर जिलों की अधिकांश झीलों, जोधपुर की कायलाना झील, जैसलमेर के गड़ीसर तालाब, अलवर के जयसमंद, सिलीसेढ़, विजय मंदिर बांध, कोटा के जवाहर सागर, बांसवाड़ा के बजाज सागर, कडाना बांध एवं माही बांध, चूरू के तालछापर, माउन्ट आबू की नहर की पोखरों तथा अनेक ग्रामीण तालाबों में भी इन्हें तैरते हुए देखा जा सकता है।

    राज्य में सबसे पहले आने वाले प्रवासी पक्षियों में 'कूट'चीन से तथा 'पर्पल मूर हेन'पाकिस्तान के ऊंचे शीत प्रदेशों से आते हैं। कूट काले रंग की छोटी बत्तख और पर्पल मूर हेन नीले-सलेटी रंग की बत्तख होती है। यूरोप और उच्च हिमाच्छादित प्रदेशों से सुनहरे पंखों वाले 'सुर्खाब'(चकवा-चकवी) के जोड़े, चाकू के फलक की भांति पूंछ वाले 'पिनटेल'(सींखपर) 'डुबडुबी'मेलार्ड, भारी भरकम 'महाबक, 'बक'आदि चले आते हैं। साइबेरिया के बर्फीले जमे प्रदेश से भी पक्षियों का शीतकाल में लगातार भारत आना चलता रहता है। साइबेरिया और रूस से 'हंस तथा कलहंस' जिन्हें 'ग्रे-लेगूज' तथा 'बार हेडेड ग्रीज कहते हैं, नवम्बर में ही आ जाते हैं। दिसम्बर माह में दुर्लभ पक्षी साइबेरियाई सारस के कई युगल केवल भरतपुर पक्षी विहार में आते हैं। मध्य तथा पश्चिम एशिया से 'हवासिल'(रोजी पेलिकन) के झुण्ड के झुण्ड कतारों में इधर से उधर उड़ते-फिरते और जलाशयों में मछलियां मारते फिरते हैं शीतकाल के अवसान से पूर्व जलाशयों में 'हंसावर'दिखाई देने लगते हैं।

    इन जलीय पक्षियों के साथ-साथ सैंकड़ों प्रजातियों और रंगों के पक्षी जंगलों में वृक्षों- झाड़ियों पर लगे पुष्पों-फलों का आनन्द लेने आते हैं। गंद्यम, सारंग, कुरजां, सफेद पूंछ वाली टिटहरी, पिवीट, चिरचिरी, बूडर, नीलकण्ठ, टिटवारी, लयतोडा, मोतियापीडा, राती सारिका, पीलक्या आदि पक्षी वन-उपवनों में दिखाई पड़ते हैं। यूरोप से एक बहुत ही सुन्दर पक्षी 'रोजी पास्टर'भी इन दिनों पीलू के वृक्षों पर लाल-बैंगनी पीलू खाते जगह-जगह दिखाई पड़ते हैं। इनका रंग-रूप कॉमन मैना की तरह होता है। यह बहुत शोर मचाने वाला पक्षी है। इन प्रवासी पक्षियों के साथ शिकारी पक्षी भी उड़े चले आते हैं। शीतकाल में यूरोप, साईबेरिया और पश्चिमी एशिया से गरुड़ (स्टेपी ईगल), मुर्रा (पराग्रीन फाल्कन), काला गिरगिटमार (मार्श हेरियर), बाज (हवाक), मछलीमार (आसप्रेफिस हवाक) तथा उल्लू की कई जातियां मानसूनी पक्षियों के नवजात शिशुओं, अण्डों और छोटे जल पक्षियों का शिकार करने के लिए आते हैं। शिकारी पक्षी, प्रवासी पक्षियों के निकट ही वृक्षों पर अपना बसेरा बना लेते हैं और ग्रीष्मकाल में अपने मूल प्रदेशों को लौट जाते हैं।

    पश्चिमी राजस्थान में जैसलमेर, बाड़मेर, जोधपुर, नागौर, चूरू आदि जिलों में कुरजां पक्षी (डोमेजल क्रेन) हजारों की संख्या में प्रवास करते हुए देखे जाते हैं। सारस की एक अन्य प्रजाति कॉमन क्रेन भी तालछापर (चूरू), सांभर (जयपुर), केवलादेव पार्क (भरतपुर) आदि स्थानों पर ऋतु प्रवास करते देखे गये हैं। सांभर झील के छिछले दलदली किनारे लाखों राजहंसों (फ्लेमिगोंज) का शीतकालीन आश्रय स्थल हैं। यहाँ मुख्य झील में झपोक बंध तथा गुढ़ा रेलवे स्टेशन के सामने, शाकम्भरी माता के निकट जल भरे स्थानों पर गुलाबी रंग के ग्रेटर राजहंस की दीर्घ कतारें दिखाई देती हैं। अध्ययनों से ज्ञात हुआ है कि यूरोप, जर्मनी, मंगोलिया एवं चीन से हजारों किलोमीटर की दूरी तय करके प्रवासी पक्षी हमारे प्रदेश में प्रति वर्ष आते हैं।


    राजस्थान के सरीसृप

    सरीसृप वर्ग के प्राणियों को मुख्यतः पांच उपवर्गों में रखा जा सकता है- छिपकली, साँप, कछुए, मगरमच्छ तथा तुआटारा। समानताओं तथा असामनताओं के आधार पर इन उपवर्गों का और भी विभाजन किया गया है। भारत में छिपकलियों की 300 जातियाँ, साँपों की 236 जातियाँ (जिनमें से 51 विषैली जातियाँ), कछुओं की 31 तथा मगरमच्छों की तीन जातियाँ पायी जाती हैं। राजस्थान में छिपकलियों की 26, साँपों की 30, कछुओं की 14 तथा मगरमच्छों की 2 जातियाँ पाई जाती हैं।

    राजस्थान में पश्चिमी भाग रेगिस्तानी, पूर्वी भाग मैदानी तथा बीच में वनाच्छादित अरावली का प्रसार, कोटा संभाग में चम्बल तथा उसकी सहायक बारहमासी नदियों की उपस्थिति एवं आन्तरिक भाग में जगह-जगह छोटे-बड़े जलाशयों की उपस्थिति सरीसृपों हेतु व्यापक आवासीय सुविधायें प्रदान करती है। इस कारण राजस्थान में जल में रहने वाले 16 सरीसृप पाये जाते हैं जिनमें मगरमच्छ, घड़ियाल; 12 जातियों के कछुए तथा दो जातियों के साँप सम्मिलित हैं। घड़ियाल कोटा संभाग में चंबल तथा इसकी सहायक नदियों का मुख्य निवासी है। मगरमच्छ दक्षिण-पूर्व से लेकर दक्षिणी राजस्थान तक उन जलस्रोतों में मिलता है जिनमें वर्ष पर्यंत जल रहता है। पूर्वी राजस्थान में रणथम्भौर राष्ट्रीय उद्यान के जलाशयों में भी मगरमच्छ मिलते हैं।

    कछुआ : राजस्थान में कछुओं की 12 जातियाँ पाई जाती हैं जिनमें से 1 जाति भूमि पर रहने वाली है तथा 11 जातियाँ जल में रहने वाली हैं। कछुओं का प्रमुख आवास पूर्वी एवं दक्षिणी राजस्थान का अधिक वर्षा एवं जलाशय बहुल भूभाग है। चम्बल का सम्पर्क गंगा नदी तंत्र से होने से इस तंत्र की अनेक जातियाँ कोटा, बारां, झालावाड़ से लेकर यमुना के पुराने मैदान में भरतपुर तक मिलती हैं। दक्षिणी राजस्थान में स्थित बड़ी झीलों, तालाबों एवं बांधों में कछुओं का मुख्य आवास है। पिछोला, फतहसागर, बड़ी का तालाब, उदयसागर, जाखम डैम, माही डेम, गैब सागर आदि के निकट बड़ी संख्या में कछुओं को देखा जा सकता है। एकमात्र थलीय कछुआ जीओकीलोन एलीगेन्स मध्य राजस्थान से दक्षिण भाग तक सामान्यतः फैला मिलता है। इसकी पीठ पर पीली धारियों के तारे से बने होते हैं।

    छिपकली : राजस्थान में छिपकली वर्ग के छह कुल (फेमिली) के प्राणी पाये जाते हैं। गिकोनिडी कुल की 7 किस्में, एगमिडी कुल की 6, कैमोलिडी कुल की 1, सिनसिडी कुल की 6, लेसिर्टिडी कुल की 4 तथा वेरेनिडी कुल की 2 जातियाँ पाई जाती हैं। गिकोनिडी कुल में घरों की दिवार पर रहने वाली छिपकली सहित मोटी पूंछ की युब्लेफरिस मैक्यूलेरिस नामक छिपकलियाँ सम्मिलित हैं। युब्लेफरिस राजस्थान की सबसे सुन्दर छिपकली है जिसके शरीर पर सफेद काले, पीले तथा मटमैले रंग का आकर्षक विन्यास होता है। छिपकलियों से ज्यादा छेड़-छाड़ करने पर ये अपनी पूंछ स्वयं ही तोड़ लेती हैं। एगमिटी कुल में गिरगिट, साण्डा, गलपंख, छिपकली, एगमा तथा फ्राइनोसिफेलस सम्मिलित हैं। गिरगिट वृक्षों के तनों पर निवास करता है तथा पूरे प्रदेश में मिलता है। फ्राइनोसिफेलस वंश में फ्राइनोसिफेलस युप्टिलोपस, तथा फ्राइनोसिफेलस लोंगवालेन्सिस नामक जाति के प्राणी पश्चिमी राजस्थान के टीलों में निवास करते हैं। एगमा मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान में पाये जाते हैं परन्तु कोटा संभाग में भी एगमा ने अपनी उपस्थित दर्ज करवाई है।

    गलपंख छिपकली : यह दक्षिणी राजस्थान में भूमि पर निवास करती है। इस जाति के नर के गले में एक पंख होता है जिसे यह अचानक खोलकर एवं बन्द करके शत्रु को डराने का उपक्रम करता है तथा प्रजनन काल में इससे मादा को आकर्षित करता है।

    सांडा : यह शाकाहारी, बिल में रहने वाली, डरपोक किस्म की छिपकली है जो मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान में मिलती है।

    गिरगिट : कैमिलीनिडी कुल का एक ही प्राणी कैमिलियोन जाइलेनिक्स राजस्थान में पाया जाता है। यह सामान्यतः हरे रंग का होता है परन्तु तत्काल रंग बदल सकता है तथा अपनी त्वचा पर हरा, पीला, काला एवं इन रंगों के मिश्रण वाला कोई भी रंग धारण कर सकता है। दक्षिणी राजस्थान में इसे हालनविया कहा जाता है क्योंकि यह चलते समय हिल-हिल कर धीरे-धीरे आगे बढ़ता है। यह वृक्षों के छत्रक में हरी-भरी पत्तियों में छुप कर निवास करता है। राजस्थान के वन बहुल क्षेत्रों में यह अधिक मिलता है। इसे राजस्थान में किरगांट कहते हैं।

    बामणी : सिनसिडी कुल के अनेक प्राणियों को राजस्थान में नागरबामणी, बामणी, गोयली आदि नामों से जाना जाता है। ये थलीय प्राणी हैं। इस कुल के ओफियोमोरस ट्राईडेक्टाईलस नामक प्राणी को छोड़ कर शेष समस्त प्राणियों में कुल 20 अंगुलियां होती हैं परन्तु ओफियोमोरस में केवल 12 अंगुलिया होती है। लेसर्टिडी कुल के प्राणी मध्य राजस्थान एवं पश्चिमी राजस्थान में अधिक मिलते हैं।

    गीतरोली : यह ओफियोमोरस कुल की छिपकली है जो मुख्यतः पश्चिमी राजस्थान के रेगिस्तान में मिलती है। इसे गीतरोली, रेगमाही, दूध-गिलोडी आदि कहते हैं। यह भूमिगत होकर मिट्टी के नीचे सर्पिल गति से चलता है जैसे मछली जल में तैरती है। इसलिए इसे अंग्रेजी में 'सैण्डफिश'कहते हैं।

    गोह : यह वेरेनिडी कुल की छिपकली है। इसमें दो तरह की गोह सम्मिलित हैं जिन्हें राजस्थान में पाटागोह, पाटला गोह, गोहरा आदि नामों से जाना जाता है। गोह की वेरेनस बंगालेन्सिस जाति पूरे राजस्थान में तथा वेरेनस ग्रेयनस जाति पश्चिमी राजस्थान में मिलती है।

    साँप : राजस्थान में साँपों के 8 कुल (फेमिली) पाये जाते हैं जिनमें टिफ्लोइडी कुल के 3 सदस्य, बोईडी के 3, डिस्पेडिडी के 4, नेट्रीसिडी के 4, कोल्युब्रिडी के 10, होमालोप्सिडी के 2, इलेफिडी के 2 तथा वाईपेरिडी कुल के दो सदस्य मिलते हैं। इनमें से पहले 6 कुलों की समस्त 26 जातियाँ विषहीन हैं यानि राजस्थान के 13 प्रतिशत साँप ही विषैले हैं। विषैले साँपों में नाग (नाजा-नाजा), करायत (बुंगारस सिरुलियस), रसैल वाईपर (वाईपैरा रसैलाई) तथा पड़ (एकिस कैरिनेटा) सम्मिलित हैं। ये लगभग राजस्थान में मिलते हैं। पश्चिमी राजस्थान में करायत (क्रेट) की उपजाति सिंध क्रेट भी पाई जाती है। राजस्थान के सबसे छोटे आकार के साँप टिफ्लोपिडी कुल के होते हैं। ये अंधे होते हैं तथा भूमिगत नम जगहों में निवास करते हैं। राजस्थान के अधिक वर्षा वाले क्षेत्रों में ये बहुतायत मिलते हैं।

    राजस्थान का सबसे लंबा तथा भारी साँप बोईडी कुल का अजगर (पाईथन मौल्यूरस) है। यह केवलादेव, भरतपुर में सेही की मांदों में मिलता है किंतु दक्षिणी राजस्थान में यह नालों के किनारे पाया जाता है। विशालाकाय अजगर के शरीर पर काले और सफेद चित्ते होने से इसे चित्ती सर्प भी कहते हैं। यह चट्टानों, बिलों, दरारों अथवा पेड़ों के खोखलों में आवास बनाता है तथा बहुत धीरे-धीरे रेंग कर चलता है। बोईडी कुल में दुमुँही नामक साँप को भी सम्मिलित किया गया है। राजस्थान में दुमुँही की दो जातियाँ मिलती हैं।

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  • अजमेर का इतिहास - 82

     02.06.2020
    अजमेर का इतिहास - 82

    अजमेर के साम्प्रदायिक दंगों पर नेहरू एवं पटेल में विवाद (2)


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    सरदार पटेल ने आयंगर की अजमेर यात्रा को पसंद नहीं किया। 23 दिसम्बर 1947 को पटेल ने आयंगर को पत्र लिखकर फटकारा कि इतने वरिष्ठ अधिकारी होने के नाते उसे यह सोचना चाहिये था कि उसकी इस यात्रा के क्या गंभीर प्रभाव होंगे ? उसकी इस यात्रा से अजमेर के चीफ कमिश्नर जैसे वरिष्ठ अधिकारी की कैसी विचित्र स्थिति हुई है जो कि एक प्रांत का मुखिया है ? ऐसी स्थिति में चीफ कमिश्नर को पूरा अधिकार है कि वह मंत्रियों अथवा अपने विभाग के सचिव के अतिरिक्त हर अधिकारी का विरोध करे।

    पटेल ने आयंगर की इस बात के लिये भी भर्त्सना की कि उसने अजमेर-मेरवाड़ा को लेकर प्रेस में वक्तव्य जारी किया। इन परिस्थितियों में दिये गये इस वक्तव्य से ऐसा लगा है कि चीफ कमिश्नर द्वारा अजमेर में परिस्थति को संभालने के कार्य को लेकर प्रधानमंत्री में असंतोष है। यदि प्रधानमंत्री स्वयं नहीं जा सकते थे तो वे सरदार पटेल को अथवा गोपालस्वामी को अथवा किसी अन्य मंत्री को जाने के लिये कह सकते थे। गोपालस्वामी प्राइम मिनिस्टर ऑफ कश्मीर (ई.1937-43), संविधान सभा के सदस्य; भारत सरकार में बिना विभाग के मंत्री (ई.1947-48); यूनाईटेड नेशन सुरक्षा परिषद में भारतीय प्रतिनिधि मण्डल के नेता रहे।

    23 दिसम्बर 1947 को सरदार पटेल ने नेहरू को सीधे ही एक पत्र लिखकर कहा कि आयंगर की अजमेर यात्रा आश्चर्य में डालने वाली एवं धक्का पहुँचाने वाली थी। इस यात्रा के दो ही अर्थ निकलते हैं। पहला यह कि प्रधानमंत्री, गृहमंत्री द्वारा अजमेर को लेकर दिये गये वक्तव्य से असंतुष्ट थे। दूसरा यह कि वे अजमेर के स्थानीय प्रशासन द्वारा की गई कार्यवाही से असंतुष्ट थे।

    इसलिये प्रधानमंत्री ने स्वतंत्र अभिमत जानने के लिये अपने प्रमुख निजी सचिव को अजमेर यात्रा पर भेजा। चीफ कमिश्नर या तो मंत्री के अधीन होता है या फिर सम्बन्धित विभाग के सचिव के अधीन होता है। पटेल ने चीफ कमिश्नर शंकर प्रसाद की प्रशंसा करते हुए लिखा कि वह यू पी का सबसे योग्यतम अधिकारी है जिसकी दक्षता, ईमानदारी एवं निष्पक्षता को चुनौती नहीं दी जा सकती। आयंगर की इस यात्रा ने शंकर प्रसाद को दुखी किया है तथा उसकी छवि को कमजोर किया है। कौल तथा भार्गव द्वारा चीफ कमिश्नर के विरुद्ध एक अभियान चलाया गया था। इस यात्रा से आयंगर को कौल तथा भार्गव के बारे में सही जानकारी हो गई होगी। अतः आशा की जानी चाहिये कि अजमेर की यह यात्रा, इस प्रकार की अंतिम यात्रा होगी।

    जवाहरलाल नेहरू ने उसी दिन पटेल को जवाब भिजवाया जिसमें उन्होंने लिखा कि यह यात्रा इन परिस्थितियों में व्यक्तिगत प्रकार की थी। इस यात्रा का उद्देश्य किसी अधिकारी अथवा उसके द्वारा किये गये कार्य पर कोई निर्णय देना नहीं था। यह जनता से सम्पर्क करने के लिये, विशेषतः पीड़ितों से सम्पर्क करने के लिये की गई ताकि उनका विश्वास जीता जा सके तथा उनके हृदय से भय को निकाला जा सके। नेहरू ने सहमति व्यक्त की कि शंकर प्रसाद एक अच्छे और निष्पक्ष अधिकारी हैं किंतु यह समझ से परे है कि प्रधानमंत्री द्वारा किसी व्यक्ति को अजमेर भेज देने से उसकी प्रतिष्ठा अथवा छवि को धक्का कैसे पहुँच गया!

    किसी भी परिस्थिति में जनता पर पड़ने वाला प्रभाव महत्वपूर्ण है न कि एक अधिकारी की प्रतिक्रिया। नेहरू ने लिखा कि जब लोगों के दिलों में घबराहट हो तथा मनोवैज्ञानिक परिस्थितियां उत्पन्न हो गई हों, तब केवल विशुद्ध प्रशासन कैसे काम कर सकता है! इससे तो कोई बड़ा हादसा घटित हो सकता है। किसी अधिकारी की प्रतिष्ठा अथवा हमारी स्वयं की प्रतिष्ठा एक द्वितीय मुद्दा है यदि अन्य बड़े मुद्दे दांव पर लगे हुए हों। यदि हम प्रजा के साथ सही आचरण करेंगे तो हमारी प्रतिष्ठा स्वयं ही बन जायेगी। अधिकारियों के मामले में भी ऐसा ही है।

    नेहरू ने सरदार को लिखा कि आपके और मेरे बीच में इस प्रकार की घटनाओं की प्रवृत्ति तथा कठिनाइयां उत्पन्न होने से मैं स्वयं बहुत अप्रसन्न हूँ। इससे ऐसा लगता है कि आपकी और मेरी कार्य करने की प्रवृत्ति अलग-अलग प्रकार की है। य़द्यपि आप और मैं एक दूसरे का बहुत आदर करते हैं तथापि हम दोनों के बीच जो विषय खड़ा हो गया है, इसे हम सबके द्वारा बहुत सावधानीपूर्वक लिया जाना चाहिये। यदि मुझे प्रधानमंत्री रहना है तो मुझ पर इस तरह के प्रतिबंध से मुक्ति होनी चाहिये। अन्यथा मेरे लिये यही उचित है कि मैं कुर्सी छोड़ दूं। मैं जल्दबाजी में कोई कदम नहीं उठाना चाहता और न यह चाहता हूँ कि आप ऐसा करें।

    इसलिये हम दोनों को इस परिस्थिति पर गहरा विचार करना चाहिये ताकि हमारे निर्णय राष्ट्र के लिये हितकारी हो सकें। हमने और आपने देश की लम्बी सेवा की है। यदि दुर्भाग्य से आपको अथवा मुझे सरकार से हटना पड़े तो इसे प्रतिष्ठापूर्ण एवं गरिमापूर्ण विधि से होने देना चाहिये। मैं प्रसन्नता पूर्वक त्यागपत्र देने और सत्ता आपको सौंपेने के लिये तैयार हूँ।

    सरदार पटेल ने नेहरू के इस पत्र का प्रत्युत्तर दिया जिसमें उन्होंने लिखा कि यह सही है कि विभिन्न विषयों एवं मुद्दों पर आपके और मेरे काम करने के ढंग में अंतर है किंतु निष्कर्षतः अथवा अंतिम निर्णय के रूप में यह कहा जा सकता है कि आपमें और मुझमें कोई भेद नहीं है। हम दोनों देश के भले के लिये एक समान उद्देश्य से काम कर रहे हैं। पटेल ने लिखा कि आयंगर का अजमेर भेजा जाना गलत था। मैं आपकी स्वतंत्रता को सीमित नहीं करना चाहता और न ही मैंने पहले कभी ऐसा किया है। न मेरा उद्देश्य आपके लिये किसी प्रकार की कोई समस्या खड़ी करना है किंतु जब यह हम दोनों को ही अपने उत्तरदायित्वों के क्षेत्र के आधारभूत प्रश्न, अधिकार तथा कार्यों में विरोधाभास स्पष्ट हों तब यह हमारे उन उद्देश्यों के लिये हितकारी नहीं होगा जो कि हम दोनों ही करना चाहते हैं।

    इस पत्र के मिलने के बाद जवाहर लाल नेहरू ने सरदार पटेल को गांधीजी के निवास पर मिलने का सुझाव दिया ताकि इस विषय पर आगे विचार-विमर्श किया जा सके। 6 जनवरी 1948 को नेहरू ने गांधीजी को एक नोट भिजवाया तथा उसकी एक प्रति सरदार पटेल को भिजवाई। सरदार ने नेहरू के निमंत्रण को स्वीकार कर लिया तथा उन्हें संदेश भिजवाया कि जो भी समय उन्हें उचित लगता हो, वे गांधीजी से तय कर लें। सरदार ने भी एक नोट गांधीजी को भिजवाया तथा उसकी प्रति नेहरू को दी।

    नेहरू ने अपने नोट में गांधीजी को अजमेर प्रकरण के सम्बन्ध में घटी घटनाओं के सम्बन्ध में जानकारी दी तथा कुछ प्रश्न उठाये। क्या प्रधानमंत्री इस प्रकार का कदम उठाने के लिये अधिकृत थे। इस बात का निर्णय किसे लेना था ? यदि प्रधानमंत्री को इस प्रकार का कदम उठाने का अधिकार नहीं था, और न ही इस सम्बन्ध में निर्णय लेने का अधिकार था तो वे इस पद पर ढंग से काम नहीं कर सकेंगे और न ही अपने दायित्वों का निर्वहन कर सकेंगे। नेहरू ने इस नोट में गांधी को लिखा कि यह तो पृष्ठभूमि है। किंतु निरंतर उठ रही व्यावहारिक कठिनाईयों के सम्बन्ध में सिद्धांत क्या रहेगा ?

    यदि सीधे शब्दों में कहें तो कैबीनेट में कुछ व्यवस्थायें करने की आवश्यकता है जो एक व्यक्ति पर उत्तरदायित्व का निर्माण कर सके। वर्तमान परिस्थितियों में या तो मैं जाऊँ या सरदार जायें। जहाँ तक मेरा प्रश्न है, मैं जाने को तैयार हूँ। मेरा या हम दोनों में से किसी एक का सरकार से बाहर जाने का अर्थ यह नहीं है कि हम आगे से एक दूसरे का विरोध करेंगे।

    हम सरकार के भीतर रहें अथवा बाहर, हम विश्वसनीय कांग्रेसी रहेंगे, विश्वसनीय साथी रहेंगे तथा हम अपने कार्यक्षेत्र में फिर से एक साथ आने के लिये कार्य करेंगे। सरदार पटेल ने अपने पत्र में प्रधानमंत्री के दायित्वों के सम्बन्ध में नेहरू की धारणा से असहमति व्यक्त की। यदि प्रधानमंत्री इसी प्रकार कार्य करेगा तो वह एक निरंकुश शासक बन जायेगा। प्रधानमंत्री, सरकार में, बराबर के मंत्रियों में सबसे पहला है।

    वह अपने साथियों पर कोई बाध्यकारी शक्तियां नहीं रखता। पटेल ने गांधी को लिखा कि प्रधानमंत्री ने अपने नोट में लिखा है कि यदि प्रधानमंत्री तथा गृहमंत्री के बीच सामंजस्य नहीं बनता है तो एक को जाना होगा। यदि ऐसा ही होना है तो मुझे जाना चाहिये। मैंने सक्रिय सेवा का दीर्घ काल व्यतीत किया है। प्रधानमंत्री देश के जाने-माने नेता हैं तथा अपेक्षाकृत युवा हैं। उन्होंने अपने लिये अंतर्राष्ट्रीय छवि स्थापित की है। मुझे कोई संदेह नहीं है कि मेरे और उनके बीच में निर्णय उनके पक्ष में होगा।

    इसलिये उनके कार्यालय छोड़ने का कोई प्रश्न ही नहीं है। इन दोनों नेताओं के मध्य, गांधीजी के समक्ष होने वाला विचार-विमर्श गांधीजी के उपवास के कारण स्थगित कर देना पड़ा। इसके अन्य कारण भी थे। कश्मीर समस्या अपने चरम पर पहुँच गई थी तथा देश में साम्प्रदायिक तनाव भी अपने उच्चतम स्तर पर था। भारत सरकार इस समय संक्रांति काल में थी। एक छोटा सा धक्का भी बहुत बड़ा नुक्सान पहुँचा सकता था। अंत में गांधी की हत्या ने नेहरू और पटेल को एक किया। इसी के साथ पटेल और नेहरू के बीच रहने वाला स्थाई विरोध और मतभेद काल के गर्त में समा गये।

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  • राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - रघुवर दयाल गोयल

     21.12.2021
    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - रघुवर दयाल गोयल

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 190

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - रघुवर दयाल गोयल

    1. प्रश्न -रघुवर दयाल का जन्म कब एवं कहाँ हुआ?

    उतर- 21 मार्च 1908 को बीकानेर में।

    2. प्रश्न -रघुवर दयाल के पिता क्या करते थे?

    उतर- उनके पिता वकील झमनलाल गोयल बीकानेर राज्य की एसेम्बली के सदस्य थे।

    3. प्रश्न -रघुवर दयाल स्वतंत्रता संग्राम में कब सक्रिय हुए?

    उतर- ई.1932 से।

    4. प्रश्न -बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना कब एवं किसकी अध्यक्षता में हुई?

    उतर- 22 जुलाई 1942 को रघुवरदयाल की अध्यक्षता में हुई।

    5. प्रश्न -बीकानेर राज्य परिषद की स्थापना का क्या उद्देश्य था?

    उतर- महाराजा गंगासिंह की छत्रछाया में बीकानेर राज्य में उत्तरदायी शासन की स्थापना करना।

    6. प्रश्न -रघुवरदयाल को बीकानेर राज्य से कब निर्वासित किया गया?

    उतर- 29 जुलाई 1942 को।

    7. प्रश्न -रघुवरदयाल बीकानेर कब लौटे?

    उतर- 29 सितम्बर 1942 को रघुवरदयाल फिर से बीकानेर लौट आये।

    8. प्रश्न -बीकानेर लौटने पर रघुवरदयाल के साथ किस तरह का व्यवहार किया गया?

    उतर- बीकानेर पुलिस ने उन्हें चीलो स्टेशन के पास रेल रुकवाकर गिरफ्तार कर लिया। उन्हें एक वर्ष की सख्त कैद दी गयी तथा एक हजार रुपये जुर्माना किया गया। 16 फरवरी 1943 को वे जेल से आजाद हुए।

    9. प्रश्न -जेल से रिहा होकर रघुवर दयाल ने किस संस्था की स्थापना की?

    उतर- उन्होंने बीकानेर में खादी मंदिर की स्थापना की।

    10. प्रश्न -खादी मंदिर क्यों बंद कर देना पड़ा?

    उतर- महाराजा सादूलसिंह ने खादी मंदिर बंद करने के आदेश दिये। रघुवर दयाल ने खादी मंदिर तो बंद कर दिया लेकिन कंधे पर खादी रखकर बेचने लगे।

    11. प्रश्न -रघुवर दयाल को राजस्थान सरकार में मंत्री कब बनाया गया?

    उतर- 30 मार्च 1949 को हीरालाल शास्त्री के नेतृत्व में बनी राजस्थान की पहली सरकार में रघुवर दयाल गोयल मंत्रिमण्डल में सम्मिलित किये गये। उन्हें खाद्य एवं आपूर्ति मंत्री बनाया गया।


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  • प्यार ! (हिन्दी कविता)

     02.06.2020
    प्यार ! (हिन्दी कविता)

    प्यार !

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    धूप छूकर

    चली जाती है

    जहां झूठे को

    और लौट कर नहीं आती

    फिर हफ्तों!

    पहाड़ियों की उन

    तमिस्र छाया में

    प्यार! तुम मुझे मिले

    झरना बनकर झूमते हुए।



    हिमाच्छादित शुभ्रवर्णा

    चोटियों के तले खड़े

    लम्बे देवदार की फुनगी पर

    प्यार! मैंने तुम्हें देखा

    किरण बनकर बिखरते हुए।



    विशाल, अनगढ़

    बेडौल चट्टानों के बीच

    दूर-दूर तक फैली

    झाड़ियों के किनारे किनारे

    मीलों चली गईं

    सर्पिलाकार पगडण्डियों पर

    प्यार! मैंने तुम्हें देखा

    खरगोश और मेमने बनकर

    डोलते हुए।



    आंखें फाड़-फाड़ कर

    देखा करता है हिमांशु

    रात-रात भर जागकर

    नदी के जिस उन्मुक्त प्रवाह को

    और विदा हो लेता है

    हर सवेरे अतृप्त ही,

    प्यार! मैंने तुम्हें देखा

    उर्मि बनकर फिसलते हुए।



    हजारों हाथ गहरी कन्दराओं में

    मारे तम के भय से

    वनैले हिंस्रक भी

    धरते नहीं पैर

    प्यार! मैंने तुम्हें वहां देखा

    हवा बनकर डोलते हुए।



    बड़ी-बड़ी चट्टानें खिसकती हैं

    प्रकृति के धनुष पर

    प्रत्यंचा बनकर

    और मुक्त कण्ठ से करती हैं

    ताण्डव का उद्घोष

    वहां पर प्यार! मैंने तुम्हें

    नदी बनकर

    उनका स्वागत करते देखा है

    छपाक की ध्वनि के साथ।

    मानों बोल उठी हों घाटियां

    घुंघरू बनकर।

    प्यार ! मैंने वह जलतरंग सुनी है।

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  • राजस्थान की पर्यावरणीय संस्कृति-19

     02.06.2020
    राजस्थान की पर्यावरणीय संस्कृति-19

    राजस्थान में वन्य जीवन (4)


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    वन्य जीव अभयारण्य


    राजस्थान में 3 राष्ट्रीय उद्यान, 25 वन्यजीव अभयारण्य, 32 आखेट निषिद्ध वन्यजीव प्राणी विचरण क्षेत्र, 6 मृगवन और 5 जंतुआलय स्थित हैं।

    राष्ट्रीय उद्यान

    राज्य में रणथंभौर राष्ट्रीय उद्यान (सवाईमाधोपुर, क्षेत्रफल 392 वर्ग किमी) एवं केवलादेव घना राष्ट्रीय उद्यान (भरतपुर, क्षेत्र 28.73 वर्ग किमी) को विधिवत् राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया गया है। राष्ट्रीय मरु उद्यान (जैसलमेर, क्षेत्रफल 3,162 वर्ग किमी), सरिस्का अभयारण्य (अलवर, क्षेत्र 800 वर्ग किमी) तथा नाहरगढ़ राष्ट्रीय उद्यान अभयारण्य (जयपुर, 50 वर्ग किमी) को राष्ट्रीय उद्यान घोषित करने की प्रारम्भिक घोषणा की जा चुकी है। इन क्षेत्रों में स्थित समस्त प्रकार के निजी अधिकारों को राज्य सरकार को समर्पित हो जाने के पश्चात् इन्हें विधिवत् रूप में राष्ट्रीय उद्यान घोषित किया जा सकेगा। 28 नवम्बर 2011 को राज्य सरकार ने कुम्भलगढ़ वन्यजीव अभयारण्य को राष्ट्रीय उद्यान का दर्जा देने का निर्णय लिया। इसका क्षेत्रफल 508.60 वर्ग किमी होगा जिसमें कुम्भलगढ़ अभयारण्य के 23 वनखण्डों की 401.51 वर्ग किमी तथा टॉडगढ़-रावली अभयारण्य के 5 वन खण्डों की 107.09 वर्ग किमी भूमि सम्मिलित होगी। इसमें पाली, उदयपुर और राजसमन्द जिलों के क्षेत्र आयेंगे।


    राजस्थान के अभयारण्य व क्षेत्रफल

    सीता माता अभयारण्य : चित्तौड़गढ़ जिले की बड़ी सादड़ी तथा प्रतापगढ़ जिले की प्रतापगढ़, छोटी सादड़ी एवं धरियावद तहसीलों मंर 400 वर्ग किमी क्षेत्र में है तथा दुर्लभजीव चौसिंगा तथा उड़नगिलहरी के लिये प्रसिद्ध है।

    गजनेर अभयारण्य : यह बीकानेर जिले में है तथा बटबड़ पक्षी के लिये प्रसिद्ध है जिसे रेत का तीतर भी कहते हैं।

    बस्सी अभयारण्य : यह चित्तौड़गढ़ जिले में है जो जंगली बाघों के विचरण के लिये प्रसिद्ध है।

    ताल छापर अभ्यारण्य : यह चूरू जिले में है तथा काले हिरणों एवं कुरजां के लिये प्रसिद्ध है।

    आबू अभयारण्य : सिरोही जिले में स्थित यह अभयारण्य जंगली मुर्गों के लिये प्रसिद्ध है।


    मृगवन

    प्रदेश में चीतल, चिंकारा, कृष्णमृग तथा अन्य मृगों के संरक्षण के लिये 6 प्रमुख मृगवन स्थापित किये गये हैं- (1) चित्तौड़गढ़ मृगवन चित्तौड़गढ़, (2) सज्जनगढ़ मृगवन उदयपुर, (3) माचिया सफारी पार्क जोधपुर, (4) संजय उद्यान शाहपुरा (भीलवाड़ा), (5) पुष्कर मृगवन (अजमेर), (6) अशोक विहार मृगवन जयपुर।


    जंतुआलय

    राज्य में पाँच जंतुआलय हैं जिनमें विभिन्न प्रकार के वन्य पशु एवं पक्षी रखे गए हैं। जयपुर जंतुआलय में वन्य पशुओं की 42 तथा पक्षियों की 75 प्रजातियाँ हैं। कोटा जंतुआलय में वन्य पशुओं की 17 तथा पक्षियों की 17 प्रजातियाँ हैं। बीकानेर जंतुआलय में वन्य पशुओं की 20 तथा पक्षियों की 22 प्रजातियाँ हैं। जोधपुर जंतुआलय में वन्य पशुओं की 7 तथा पक्षियों की 112 प्रजातियाँ हैं। उदयपुर जंतुआलय में वन्य पशुओं की 13 तथा पक्षियों की 25 प्रजातियाँ हैं।


    जैविक उद्यान

    राज्य में दो जैविक उद्यानों- उदयपुर में सज्जनगढ़ जैविक उद्यान एवं जयपुर में नाहरगढ़ जैविक उद्यान का विकास किया गया है। दोनों जैविक उद्यानों का मास्टर ले-आउट प्लान केन्द्रीय चिड़ियाघर प्राधिकरण द्वारा अनुमोदित किया गया है। इन दोनों उद्यानों में एलिफेन्ट सफारी की व्यवस्था है। जोधपुर में माचिया तथा कोटा में अभेड़ा में जैविक उद्यान विकसित करने हेतु योजना तैयार की गई है। कोटा में चम्बल के किनारे स्थित 'अभेड़ा'मगरमच्छों के लिये प्रसिद्ध है।


    राजस्थान में वन्य पशु संरक्षण

    राजस्थान में वन्य पशु संरक्षण अधिनियम 1972 के तहत वन्य पशुओं के शिकार पर पूर्ण प्रतिबंध लगा रखा है किंतु अवैध शिकार के कारण कई प्रजातियाँ लुप्त हो गयी हैं तथा कुछ प्रजातियां लुप्त होने के कगार पर हैं। वर्ष 2005 में राजस्थान में बाघों की संख्या अचानक ही घट कर लुप्त होने के कगार पर आ पहुँची।


    राजस्थान में 2,61,233 वन्यजीव

    राजस्थान में 42 बाघों सहित कुल 2,61,233 वन्यजीव हैं। इनमें से 1,25,858 वन्यजीव संरक्षित क्षेत्र में हैं। इनमें से 42 बाघ, 408 बघेरे, 645 भालू, 4,461 चिंकारा, 2,025 काले हरिण, 276 चौसिंगा हरिण, 16,509 सांभर, 365 भेड़िये, 20,098 चीतल एवं 1,517 लकड़बग्घे हैं। संरक्षित क्षेत्र में 622 बिज्जू, 1,011 जंगली बिल्ली, 9,788 जंगली सूअर, 34,008 लंगूर, 1,578 लोमड़ी, 2,118 नेवले, 22,772 नील गाय, 1,355 सेहली (सेही), 6,222 सियार तथा 38 स्याहगोश हैं। असंरक्षित क्षेत्र में 1,35,375 वन्यजीव विचरण कर रहे हैं। इन क्षत्रों में बाघ का निवास नहीं है। असंरक्षित क्षेत्र में 30,509 चिंकारा, 10,507 काले हरिण, 262 चीतल, 50 चौसिंघा हरिण, 119 बेघेरे, 112 भालू, 924 भेड़िये, 45,152 नीलगाय, 15,518 लंगूर, 1,548 लकड़बग्घे, 16,044 सियार, 1,725 सेही, 4,193 लोमड़ी, 2,862 जंगली सूअर एवं 349 स्याहगोश एवं अन्य वन्य जीव सम्मिलित हैं।

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  • अजमेर का इतिहास - 83

     02.06.2020
    अजमेर का इतिहास - 83

    अजमेर के स्वतंत्रता आंदोलन में प्रेस की भूमिका


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    अजमेर के स्वतंत्रता संग्राम के इतिहास में प्रेस का विशिष्ट स्थान रहा है। राजपूताना रियासतों में नागरिकों को आंदोलन करने तथा शासकों के विरुद्ध अपनी बात रखने के लिये नाम मात्र की भी स्वतंत्रता नहीं थी। जबकि अजमेर-मेरवाड़ा प्रांत में ब्रिटिश सत्ता होने से जनता को कुछ सीमा तक नागरिक अधिकार प्राप्त थे। यही कारण है कि स्वतंत्रता आंदोलन के दौरान अजमेर में कई संगठनों की स्थापना हुई तथा बड़ी संख्या में समाचार पत्रों का प्रकाशन हुआ जिन्होंने सम्पूर्ण राजपूताने में राजनीतिक चेतना का अलख जगाया।

    ई.1885 में भारत में कांग्रेस की स्थापना हुई। इसी वर्ष अजमेर से कुछ समाचार पत्र प्रारंभ हुए। इनमें सबसे पहला समाचार पत्र राजस्थान टाइम्स था। यह अंग्रेजी समाचार पत्र था। इसका हिन्दी संस्करण राजस्थान पत्रिका के नाम से निकला। दोनों पत्रों के सम्पादकीय लेखों में अंग्रेजी प्रशासन की खुलकर आलोचना की जाती थी। ई.1888 में इन समाचार पत्रों के प्रकाशन पर प्रतिबंध लगा दिया गया तथा इनके सम्पादक बक्शी लक्ष्मणदास को जेल में डालकर उन पर मुकदमा चलाया गया तथा डेढ़ साल के कारावास की सजा दी गई। ई.1907 में यह समाचार पत्र ब्रिटिश अधिकारियों द्वारा किये गये दमन के कारण बंद हो गया।

    ई.1885 में अजमेर से राजपूताना हेराल्ड नामक समाचार पत्र का प्रकाशन आरंभ हुआ। इसके सम्पादक हनुमानसिंह थे तथा यह अंग्रेजी भाषा में प्रकाशित होता था। इस पत्र में भारतीय राज्यों में अंग्रेज अधिकारियों के अनावश्यक हस्तक्षेप के विरुद्ध लेख एवं समाचार छपते थे। इस समाचार पत्र में इस विषय पर इतने लेख छपे कि ब्रिटिश संसद में इन लेखों के आधार पर अनेक प्रश्न उठे। विजयसिंह पथिक ने अजमेर से राजस्थान संदेश नामक साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन किया। आर्थिक अभाव के कारण इसे बंद करना पड़ा। पथिकजी ने नव संदेश नामक पत्र निकाला किंतु वह भी अर्थाभाव के कारण नियमित रूप से नहीं चल सका। इस समाचार पत्र ने जन साधारण में काफी लोकप्रियता प्राप्त कर ली थी।

    ई.1885 में ही अजमेर से राजपूताना मालवा टाईम्स नामक समाचार पत्र प्रारंभ हुआ। इसकी विषय वस्तु में भी देशी रियासतों में अंग्रेज अधिकारियों के अनावश्यक हस्तक्षेप का विरोध सम्मिलित था। ये समाचार पत्र अंग्रेजी में छपने के कारण आम पाठक से दूर थे किंतु इन्होंने प्रबुद्ध वर्ग को काफी सीमा तक प्रभावित किया।

    ई.1889 में अजमेर से अमृतदास चारण ने राजस्थान समाचार नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र प्रारम्भ किया। यह समाचार पत्र आर्यसमाज के विचारों से काफी प्रभावित था तथा इसमें राष्ट्रीय आंदोलन से सम्बन्धित सामग्री भी छपती थी। अजमेर से राजपूताना गजट नामक एक समाचार पत्र 19वीं सदी के अंतिम दशक में प्रारम्भ हुआ। इसने राजपूताना एवं अन्य क्षेत्रों के शासकों के अन्याय पूर्ण निर्णयों की भर्त्सना की तथा सामाजिक बुराइयों के विरुद्ध वकालात की। इन समाचार पत्रों ने अजमेर के नागरिकों में जन चेतना पैदा करने का प्रयास किया जिससे अजमेर राजनीतिक चेतना का गढ़ बन गया।

    ई.1919 के पश्चात् समाचार पत्रों के प्रकाशन में और अधिक प्रगति हुई। समाचार पत्रों के प्रचलन में आने से प्रांतों की दूरियां मिट गई थीं तथा राजनीतिक आंदोलन प्रांत की सीमाओं को पार करके राष्ट्रीय चरित्र प्राप्त करता चला गया था। ई.1919 के पश्चात् देश में क्रांतिकारी आंदोलन का स्थान कांग्रेस के अहिंसा आंदोलन ने ले लिया। गांधीजी द्वारा प्रारंभ असहयोग आंदोलन, राजस्थान में अजमेर से प्रारंभ हुआ। गांधीजी की प्रेरणा से अर्जुनलाल सेठी, केसरीसिंह बारहठ, विजयसिंह पथिक आदि ने शांतिपूर्ण तरीके से राजनीतिक चेतना जागृत करने और सामाजिक सुधारों के उद्देश्य से राजस्थान सेवा संघ की स्थापना की।

    ई.1920 में इसका कार्यालय वरधा से अजमेर में स्थानांतरित कर दिया गया। कोटा, जोधपुर, उदयपुर एवं बूंदी में इसकी शाखायें स्थापित की गईं। इस समय अजमेर में तीन दलों के नेतृत्व में स्वतंत्रता सम्बन्धी गतिविधियां संचालित की जा रही थीं- विजयसिंह पथिक प्रथम दल का नेतृत्व कर रहे थे, अर्जुनलाल सेठी दूसरे दल का और जमनालाल बजाज एवं हरिभाऊ उपाध्याय के हाथों में तीसरे दल का नेतृत्व था। ई.1919 के बाद राजस्थान केसरी व तरुण राजस्थान का प्रकाशन आरम्भ हुआ। ई.1918 में राजपूताना मध्य भारत सभा की स्थापना हुई तथा ई.1919 से राजस्थान केसरी नामक समाचार पत्र वरधा से प्रकाशित होने तक विजयसिंह पथिक को इसका सम्पादक तथा रामनारायण चौधरी को सहायक सम्पादक बनाया गया।

    ई.1922 में विजयसिंह पथिक राजस्थान केसरी के सम्पादन कार्य से मुक्त हो गये। इसी वर्ष उन्होंने अजमेर से नवीन राजस्थान नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र निकालना आरंभ किया। इस समाचार पत्र का उद्देश्य राजस्थान में राजनीतिक चेतना जागृत कर स्वतंत्रता आंदोलन को आगे बढ़ाना था। इसके माध्यम से मेवाड़ के किसान आंदोलन को भारी समर्थन मिला। मेवाड़ राज्य ने विजयसिंह पथिक के विरुद्ध कार्यवाही करते हुए मई 1923 में उन्हें गिरफ्तार कर लिया। इनकी गिरफ्तारी के बाद नवीन राजस्थान के सम्पादन का भार शोभालाल गुप्त पर आ गया। मेवाड़ राज्य में राजस्थान केसरी एवं नवीन राजस्थान का प्रवेश प्रतिबन्धित कर दिया गया था।

    जयपुर, अलवर और बूंदी राज्यों ने भी अपने यहाँ इन समाचार पत्रों का प्रवेश बंद कर दिया। बूंदी, बरड़, अलवर के किसान आंदोलनों के समर्थन में लेख लिखने के कारण ऐसा किया गया। तरुण राजस्थान पर राजा महेन्द्र प्रताप की एक चिट्ठी और अग्र लेख छापने के आधार पर राजद्रोह का मुकदमा चलाया गया। रामनारायण चौधरी और शोभालाल गुप्त अभियुक्त बनाये गये। इन्हें जेल भेज दिया गया। इनका मुकदमा अंग्रेज कमिश्नर हॉपकिन्स की अदालत में चला। मुकदमे में काफी धांधली हुई।

    अंत में रामनारायण चौधरी को बरी कर दिया गया और शोभालाल गुप्त को एक साल की सजा हुई। शंकरलाल शर्मा ने भी ई.1928 तक तरुण राजस्थान में कार्य किया। तत्कालीन समाचार पत्र समाज सुधार की भूमिका का निर्वाह करते थे। रामनारायण चौधरी ने कम दहेज लाने वाली पुत्रवधू के प्रति अन्याय को बंद करवाया और एक महिला की समस्या सुलझाई जिसके पति की, किशनगढ़ रियासत के दीवान बहादुर पौनस्कर ने हत्या कर दी थी।

    ई.1926 के बाद हरिभाऊ उपाध्याय की गतिविधियाँ मेरवाड़ा में बढ़ीं। उन्होंने अजमेर में सस्ता साहित्य मण्डल की स्थापना की एवं त्यागभूमि नामक समाचार पत्र आरंभ किया। इसके माध्यम से समाज सुधार, महिला उत्थान, छुआछूत विरोध, ग्रामीण उत्थान, चरखा व खादी तथा भारतीय परम्परा एवं संस्कृति के विकास को अपना ध्येय बनाया। जवाहरलाल नेहरू ने भी त्यागभूमि की भारी प्रशंसा की। यह समाचार पत्र आर्थिक अभाव के कारण ई.1931 में बंद हो गया।

    ई.1929 में रामनारायण चौधरी एवं शोभालाल गुप्त ने अजमेर से यंग राजस्थान नामक अंग्रेजी साप्ताहिक समाचार पत्र का प्रकाशन आरम्भ किया। यह समाचार पत्र एक वर्ष ही निकल पाया क्योंकि दिसम्बर 1929 में रामनारायण चौधरी वरधा चले गये। विजयसिंह पथिक उग्र विचारों के व्यक्ति थे, उन्होंने ई.1929 से ई.1932 तक राजस्थान संदेश हिन्दी साप्ताहिक समाचार पत्र अजमेर से प्रकाशित किया। इसके माध्यम से वे राजस्थान में क्रांतिकारी जन चेतना उत्पन्न करने में सफल रहे।

    ई.1934 में उदारवादी विचारों का दरबार नामक समाचार पत्र मदनमोहन लाल गुप्ता के सम्पादन में अजमेर से प्रकाशित होने लगा। यह व्यापारिक आधारों पर संचालित था। 2 अक्टूबर 1936 से राजस्थान सेवक मण्डल के अधीन अजमेर से नवज्योति नामक साप्ताहिक हिन्दी पत्र का प्रकाशन आरम्भ हुआ। प्रारंभ में शोभालाल गुप्त इसके सम्पादक थे तथा शीघ्र ही यह कार्य रामनारायण चौधरी को सौंप दिया गया। इस समाचार पत्र का उद्देश्य राष्ट्रीय चेतना व राष्ट्रीय आंदोलन को विकसित करना था। नवज्योति ने अंग्रेजों व सामंती शासकों की नीतियों का विरोध करते हुए जनता को राष्ट्रीय आंदोलन से जोड़ने का महत्त्वपूर्ण कार्य किया। ई.1942 में रामनारायण चौधरी के साबरमती आश्रम चले जाने के कारण दुर्गाप्रसाद चौधरी नवज्योति के सम्पादक बने। यह राजस्थान में राष्ट्रीय आंदोलन का मुखपत्र बन गया। ई.1948 से यह साप्ताहिक के स्थान पर दैनिक समाचार पत्र बन गया।

    ई.1937 में अजमेर से हिन्दी साप्ताहिक पत्र मीरा का प्रकाशन जगदीश प्रसाद माथुर 'दीपक' एवं उनके भाई अम्बालाल माथुर ने किया। यह समाचार पत्र कांग्रेस, किसान व श्रमिकों का पक्का समर्थक था। देशी रियासतों में महिलाओं के उत्पीड़न के विरुद्ध ही मीरा ने जमकर आवाज उठाई। मीरा का प्रकाशन ई.1964 तक होता रहा। ई.1938 में जगदीश प्रसाद माथुर 'दीपक' के सम्पादन में अजमेर से रियासती नामक साप्ताहिक हिन्दी समाचार पत्र प्रकाशित हुआ। यह समाचार पत्र राजस्थान के स्वतंत्रता आंदोलन का मुख पत्र बन गया। ई.1939 में ठाकुर नारायणसिंह एवं कनक मधुकर के सम्पादन में नवजीवन नामक साप्ताहिक हिन्दी पत्र प्रकाशित हुआ। ई.1942 के भारत छोड़ो आंदोलन में नवज्योति, मीरा, रियासती एवं नवजीवन नामक समाचार पत्रों की महत्त्वपूर्ण भूमिका रही।

    सिन्धी समाज के समाचार पत्र

    भारत पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान में चले गये सिन्ध क्षेत्र से, भारत में आये सिन्धी समाज ने बड़ी संख्या में अजमेर में निवास किया। इस कारण अजमेर से सर्वाधिक सिन्धी भाषा के समाचार पत्र निकले। इनमें दैनिक समाचार पत्र- हिन्दू (सं. किशन वरियाणी) तथा भारत भूमि (सं. टीकमदास खियलदास), साप्ताहिक समाचार पत्र- हिन्दवासी (सं. किशन मोटवाणी), हिन्दुभूमि (सं. नानकराम इसराणी), संत कंवरराम (सं. किशन वरियाणी), वीर विजय (सं. नथरमल नेशूमल), संत हाथीराम (सं. भैंरू पेंहलवाणी), पाक्षिक समाचार पत्र- सहयोग (सं. गुलाबराय रानी), मासिक समाचार पत्र- आर्यवीर (सं. दीपचंद्र तिलोकचंद्र), आत्म दर्शन (सं. दीपचंद्र तिलोकचंद्र), फुलवाड़ी (सं. दीपचंद्र तिलोकचंद्र), शेवा मार्ग (सं. दीपचंद्र तिलोकचंद्र), आदर्श (सं. एम आर बलेछा), आर्य प्रेमी (सं. मोहनलाल तेजवाणी) तथा मयार (सं. राधाकृष्ण विजलाणी) सम्मिलित हैं।

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  • राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - सागरमल गोपा

     30.12.2021
    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी  : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - सागरमल गोपा

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी - 191

    राजस्थान ज्ञानकोश प्रश्नोत्तरी : प्रजामण्डल आंदोलन के प्रमुख नेता - सागरमल गोपा

    1. प्रश्न -सागरमल गोपा का जन्म कब एवं कहाँ हुआ?

    उतर- 3 नवम्बर 1900 को जैसलमेर राजवंश के राजगुरुओं के गोपा परिवार में।

    2. प्रश्न -गोपा परिवार को जैसलमेर के राजवंश में क्या अधिकार मिला हुआ था?

    उतर- इन्हें राजाओं के राजतिलक का अधिकार मिला हुआ था जिससे गोपा ‘पाटवी’ कहलाते थे।

    3. प्रश्न -सागरमल के पिता अखैराज ने अपने पाँचों पुत्रों को क्या सलाह दी थी?

    उतर- कि वे कभी जैसलमेर रियासत की नौकरी न करें।

    4. प्रश्न -सागरमल जैसलमेर छोड़कर कहाँ चले गये थे?

    उतर- नागपुर।

    5. प्रश्न -सागरमल ने किस आयु में असहयोग आंदोलन में भाग लिया?

    उतर- 21 वर्ष की आयु में।

    6. प्रश्न -सागरमल गोपा का मुख्य कार्यक्षेत्र क्या था?

    उतर- पत्रकारिता, लेखन एवं स्वाधीनता संग्राम में भागीदारी।

    7. प्रश्न -सागरमल गोपा ने कौनसी प्रसिद्ध पुस्तक लिखी?

    उतर- जैसलमेर का गुण्डा राज।

    8. प्रश्न -सागरमल ने महारावल के चापलूस दरबारियों के विरोध में कौनसी कविता लिखी?

    उतर- ‘महारावल के नवरत्न’ शीर्षक से एक कविता लिखी- प्रथम रतन पूना जिण देश किया सूना चुगलखोरी का नमूना, भरे राज का कन्न है। चापलूस चानणमल, चूके नहीं एक पल्ल, जेल में दरोगा करनू खल खेल चुका फन्न है। डॉक्टर दूरगू पायो व्यभिचारी फल है नंदिये, नैपाले ने किया देश का पतन है। राजमल, गुमान महादान डाकू आदि भूपति? जवाहर के ऐसे रतन हैं।

    9. प्रश्न -सागरमल गोपा नागपुर से जैसलमेर कब आये?

    उतर- ई.1941 में।

    10. प्रश्न -सागरमल ने जैसलमेर में अपनी सुरक्षा के लिये क्या उपाय किये?

    उतर- उन्होंने जोधपुर आकर रेजीडेण्ड मेजर एलिंगटन से कहा कि मैं जैसलमेर जा रहा हूँ, मेरे साथ वहाँ किसी तरह की बदसलूकी नहीं की जाये। एलिंगटन ने जैसलमेर के दीवान को लिखित में आदेश भिजवाये कि सागरमल के साथ जैसलमेर में किसी तरह की बदसलूकी नहीं हो।

    11. प्रश्न -सागरमल गोपा को क्यों गिरफ्तार किया गया?

    उतर- 25 मई 1941 को पुलिस अधिकारी गुमानसिंह ने सागरमल को गिरफ्तार करके झूठे गवाहों के बल पर झूठे मुकदमे बनाये।

    12. प्रश्न -जेल में सागरमल गोपा के साथ क्या ज्यादतियां की गईं?

    उतर- उनके हाथों में हथकड़ियाँ और पांवों में डण्डा बेड़ियाँ लगाकर उन्हें जेल में बंद कर दिया। उनके साथ मार-पीट की गयी तथा अनेक अमानवीय यातनायें दी गयीं। उन्हें गीली बेंतों से पीटा जाता और उनके घावों पर मिरचें लगायी जातीं। चार साल तक सागरमल का कोई समाचार जेल से बाहर नहीं आ सका।

    13. प्रश्न -जेल में जाकर किन लोगों ने सागरमल से भेंट की?

    उतर- ई.1945 में बालकृष्ण व्यास और स्वरूपचंद जैन किसी तरह जेल के भीतर गये और उन्होंने सागरमल से भेंट की।

    14. प्रश्न -स्वरूपचंद जैन ने प्रजासेवक में कौनसा लेख छपवाया?

    उतर- 23 मई 1945 को स्वरूपचंद जैन ने ‘गोपाजी के जेल जीवन की दर्दनाक कहानी’ शीर्षक से एक लेख छपवाया।

    15. प्रश्न -जेल में रहकर गोपाजी ने कौनसी कविता लिखी?

    उतर- कूड़ी अदालत, कूड़ो शासन, कूड़ो कानून करे मन चायो कूड़ो गवाह, कूड़ कुरान को, आई की आन में कूड़ समायो। सैशन में जब केस गयो, तब लेश नहीं मैं सांच को पायो ढोल के तान पै नाचत पोल, मदारी गुमाने ज्यों ढोल बजायो। मुरादाबाद से कूड़ को लाद के, मोती को पूत यहाँ अब आयो जीवनलाल को जेल में डाल के, लाले जोशी को कूड़ फंसायो। सागरमल कियो न अमल, तब लाठी से कूड़ मंजूर करायो किससे कहूँ, कौन सुने, अन्याय को यहाँ पर शासन छायो।

    16. प्रश्न -गोपाजी की रिहाई के लिये जैसलमेर में किस संस्था की स्थापना की गयी?

    उतर- जैसलमेर राज्य प्रजामण्डल की।

    17. प्रश्न -गोपाजी ने जयनारायण व्यास को क्या पत्र लिखा?

    उतर- एक बार रेजीडेण्ट को जैसलमेर ले आओ।

    18. प्रश्न - गोपाजी को जेल में ही जलाकर क्यों मार डाला गया?

    उत्तर - व्यासजी के अनुरोध पर रेजीडेण्ट ने जैसलमेर जाने का कार्यक्रम बनाया। इस पर 3 अप्रेल 1946 को महारावल ने पुलिस अधिकारी गुमानसिंह द्वारा सागरमल को क्लारोफार्म सुंघवाकर उन पर मिट्टी का तेल डलवाया और जीवित ही जला दिया। जलने के आठ घंटे बाद गोपाजी को अस्पताल ले जाया गया जहाँ वे पूरी रात डॉक्टर-डॉक्टर चिल्लाते रहे किंतु उपचार नहीं किया गया। 4 अप्रेल 1946 को गोपाजी का निधन हो गया।

    19. प्रश्न -24 अप्रेल 1946 को जवाहरलाल नेहरू ने सागरमल गोपा की हत्या पर क्या वक्तव्य जारी किया?

    उतर- राजनीतिक कार्यकर्त्ता के साथ ऐसा व्यवहार जघन्य गुण्डागर्दी है।

    20. प्रश्न -भारत सरकार ने गोपाजी पर कौनसा डाक टिकट जारी किया?

    उतर- ई.1986 में गोपाजी के चित्र वाला 50 पैसे का डाक टिकट।


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